नयी दिल्ली, 24 जनवरी (भाषा) कश्मीर के मुत्तहिदा मजलिस-ए-उलेमा के संरक्षक मीरवाइज उमर फारूक ने जहां संयुक्त संसदीय समिति के समक्ष वक्फ (संशोधन) विधेयक का विरोध किया, वहीं भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के कई सदस्यों ने संवैधानिक प्रक्रिया का हिस्सा बनने के उनके फैसले का समर्थन किया।
मीरवाइज कश्मीर घाटी में अलगाववादी राजनीति से जुड़े रहे हैं। यह पहली बार है जब लगभग निष्क्रिय हो चुके अलगाववादी समूह हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के प्रमुख मीरवाइज ने पूर्ववर्ती जम्मू कश्मीर राज्य का विशेष दर्जा समाप्त होने के बाद कश्मीर घाटी से बाहर कदम रखा है।
वक्फ संशोधन विधेयक पर विचार कर रही संयुक्त संसदीय समिति के सदस्य और भाजपा सांसद संजय जायसवाल ने कहा, ‘‘सबसे अच्छी बात यह थी कि उन्होंने अपनी बात मजबूती से रखी और विधेयक के विभिन्न प्रावधानों पर अपनी आपत्तियां व्यक्त करने के अपने संवैधानिक अधिकार का हवाला दिया।’’
उन्होंने दावा किया कि विपक्षी सदस्यों ने जानबूझकर इस बैठक में हंगामा किया ताकि मीरवाइज के नेतृत्व में मुस्लिम धर्मगुरुओं का प्रतिनिधि मंडल समिति के समक्ष अपने विचार नहीं रख सके।
मीरवाइज, भाजपा सांसद जगदंबिका पाल के नेतृत्व वाली समिति के समक्ष मुताहिदा मजलिस-ए-उलेमा के संरक्षक के तौर पर पेश हुए लेकिन वह अलगाववादी समूह हुर्रियत के उदारवादी धड़े के नेता भी हैं जो केंद्र सरकार की सख्त कार्रवाई के बाद लगभग निष्क्रिय हो गया है।
मीरवाइज का घाटी से बाहर निकलकर संवैधानिक प्रक्रिया का हिस्सा बनना राजनीति पर नजर रखने वाले कई लोगों के लिए महत्वपूर्ण माना गया।
भाजपा सांसद और समिति के सदस्य राधामोहन दास अग्रवाल ने कहा, ‘‘यह अच्छी बात है कि वह लोकतांत्रिक प्रक्रिया का हिस्सा बन गए।’’
जायसवाल ने हालांकि इस बात पर जोर दिया कि संसदीय प्रक्रिया में शामिल होने वाले किसी भी व्यक्ति के लिए ‘अलगाववादी’ जैसे शब्दों का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए। संसदीय समितियों को ‘मिनी संसद’ माना जाता है।
समिति के समक्ष अपनी लिखित दलील में मीरवाइज ने वक्फ अधिनियम में प्रस्तावित संशोधनों को मुस्लिम पर्सनल लॉ का उल्लंघन बताते हुए कहा कि यह ‘भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25’ के तहत संरक्षित है।
सूत्रों ने बताया कि उन्होंने मसौदा कानून के खिलाफ बहस करने के लिए अनुच्छेद 26 का भी इस्तेमाल किया, जो धार्मिक मामलों के प्रबंधन की स्वतंत्रता प्रदान करता है।
कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, द्रविड़ मुनेत्र कषगम (द्रमुक) समेत अन्य दलों के विपक्षी सदस्यों के लगातार विरोध प्रदर्शन के कारण समिति की कार्यवाही में देरी हुई। विपक्षी सदस्य चाहते थे कि 27 जनवरी को खंडवार चर्चा के लिए होने वाली अगली बैठक को स्थगित कर दिया जाए।
वे मामले का अध्ययन करने और देश भर के हितधारकों द्वारा प्रस्तुतियों के लिए अधिक समय चाहते थे।
पाल ने हालांकि कहा कि वे जानबूझकर बैठक को बाधित करने की कोशिश कर रहे हैं जबकि उन्हें अपना पक्ष रखने के लिए पर्याप्त समय दिया गया था। सभी 10 विपक्षी सांसदों को बाद में निलंबित कर दिया गया था, जिसके बाद कार्यवाही शुरू हुई थी।
भाषा ब्रजेन्द्र ब्रजेन्द्र माधव
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