गुवाहाटी: teenage gang-rape victim abortion गुवाहाटी उच्च न्यायालय ने असम के तिनसुकिया की सामूहिक बलात्कार की पीड़िता 15 वर्षीय एक किशोरी को उसके ‘सर्वोत्तम हित में’ 26 हफ्ते के गर्भ को गिराने की अनुमति दी है।
मीडिया की खबर का स्वत: संज्ञान लेते हुए न्यायमूर्ति कल्याण राय सुराना और न्यायमूर्ति सुष्मिता फूकन खांड की खंडपीठ ने सोमवार को राज्य सरकार को अवांछित भ्रूण का ‘चिकित्सीय रूप से गर्भपात करने’ और 19 दिसंबर तक स्थिति रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया।
चिकित्सीय गर्भपात अधिनियम, 1971 (एमटीपीए) के अनुसार 24 सप्ताह से अधिक के गर्भ को गिराने की अनुमति नहीं है।
अदालती आदेश में कहा गया है कि 29 नवंबर को छपी खबर के अनुसार पीड़िता जब महज 14 साल की थी तब तिनसुकिया में चार नाबालिगों समेत सात लोगों ने सामूहिक बलात्कार किया था।
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पांच दिसंबर को स्वत: संज्ञान के तहत सुनवाई करते हुए उच्च न्यायालय ने एमटीपीए के अनुसार एक चिकित्सा बोर्ड और जिला स्तरीय समिति बनायी थी तथा उन्हें इस बात के लिए पीड़िता का परीक्षण करने को कहा कि क्या अवांछनीय गर्भ को गिराना उपयुक्त रहेगा। उच्च न्यायालय ने उनसे खासकर इस प्रक्रिया से जुड़े जोखिम के बारे में उसे बताने को कहा था।
चिकित्सा बोर्ड ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि लड़की ‘किसी भी प्रसूति प्रक्रिया से गुजरने के लिए फिट है’, लेकिन बोर्ड ने एमटीपीए के मद्देनजर गर्भ गिराने का सुझाव देने से परहेज किया।
उच्च न्यायालय ने कहा, ‘‘अदालत इस तथ्य से अवगत है कि लड़की नाबालिग है और फिलहाल उसके पेट में 26 सप्ताह से अधिक का अवांछित गर्भ है। अदालत इस तथ्य से भी अवगत है कि इस स्तर पर, यदि गर्भ गिरा दिया जाता है, तो पीड़िता के जीवन को खतरा है।’’
उच्च न्यायालय ने कहा, ‘‘हालांकि, वर्तमान स्थिति की तुलना गर्भावस्था के पूर्ण-अवधि पर प्रसव के समय पीड़िता को होने वाले जोखिम से करने पर, वर्तमान चरण में जोखिम कारक समान प्रतीत होता है। साथ ही गर्भावस्था के पूर्ण-अवधि में प्रसव के समय होने वाला जोखिम भी समान है।’’
महाराष्ट्र के इसी तरह के एक मामले के संबंध में इस वर्ष अप्रैल में उच्चतम न्यायालय द्वारा दिये गये एक फैसले का हवाला देते हुए गुवाहाटी उच्च न्यायालय ने कहा कि उसे भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत चिकित्सकीय ढंग से गर्भ गिराने का आदेश देने का अधिकार है।
गुवाहाटी उच्च न्यायालय ने 15 वर्षीय किशोरी को उसके सर्वोत्तम हित में 26 हफ्ते के गर्भ को गिराने की अनुमति दी, क्योंकि वह एक सामूहिक बलात्कार का शिकार हुई थी और इस निर्णय का उद्देश्य उसकी शारीरिक और मानसिक भलाई सुनिश्चित करना था।
चिकित्सा बोर्ड ने गर्भपात की अनुमति देने से परहेज किया, हालांकि उन्होंने यह माना कि लड़की किसी भी प्रसूति प्रक्रिया से गुजरने के लिए शारीरिक रूप से सक्षम है। अदालत ने अंतिम निर्णय लिया और किशोरी के सर्वोत्तम हित में गर्भपात की अनुमति दी।
सामान्यत: चिकित्सा गर्भपात अधिनियम, 1971 (एमटीपीए) के तहत 24 सप्ताह से अधिक के गर्भ को गिराने की अनुमति नहीं है। हालांकि, अदालत ने विशेष परिस्थितियों में किशोरी के लिए यह निर्णय लिया, जिसमें उसका स्वास्थ्य और जीवन जोखिम में था।
अदालतों में इस प्रकार के मामलों में, पीड़िता की शारीरिक और मानसिक स्थिति को ध्यान में रखते हुए निर्णय लिया जाता है। अगर गर्भ के गिराने से पीड़िता के जीवन को खतरा हो सकता है, तो अदालत स्थिति के हिसाब से गर्भपात की अनुमति देती है।
हां, उच्चतम न्यायालय ने अप्रैल 2024 में महाराष्ट्र के एक समान मामले में चिकित्सकीय रूप से गर्भपात करने के आदेश देने का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत अदालत को दिया था।