(शेख सुहैल)
गांदरबल (जम्मू कश्मीर), 22 सितंबर (भाषा) नेशनल कांफ्रेंस के उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला के लिए अपने परिवार का गढ़ माने जाने वाली गांदरबल विधानसभा सीट को फिर से हासिल करना प्रतिष्ठा की लड़ाई बन गया है। अतीत में इस सीट का प्रतिनिधित्व उनके दादा शेख अब्दुल्ला, पिता फारूक अब्दुल्ला और वह खुद कर चुके हैं।
बारामूला निर्वाचन क्षेत्र से 2024 का लोकसभा चुनाव हारने के कारण पूर्व मुख्यमंत्री कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहे हैं और उन्होंने जम्मू कश्मीर विधानसभा चुनाव में गांदरबल तथा बडगाम दोनों सीटों से नामांकन भरा है।
अब्दुल्ला गांदरबल सीट को फिर से हासिल करने को कितना महत्व दे रहे हैं, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने नामांकन भरते वक्त लोगों से एक भावुक अपील की थी। अब्दुल्ला मुख्यमंत्री रहने के दौरान गांदरबल सीट का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं।
गांदरबल में पार्टी कार्यालय में कार्यकर्ताओं की एक बैठक को संबोधित करते हुए नेकां उपाध्यक्ष ने अपनी टोपी उतार दी और उसे अपनी हथेलियों में पकड़कर लोगों से उन्हें वोट देने का आग्रह किया और कहा कि उनका ‘‘सम्मान उनके (लोगों के) हाथों में है।’’
जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री के बेटे जहीर और जमीर अपने पिता के लिए प्रचार कर रहे हैं। नेकां अध्यक्ष फारूक अब्दुल्ला ने भी अपने बेटे के समर्थन में रैलियों को संबोधित किया।
जब उमर अब्दुल्ला ने 2002 में अपने पिता से नेकां की कमान संभाली थी तो उन्होंने गांदरबल से विधानसभा चुनाव लड़ा था लेकिन पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) के काजी मोहम्मद अफजल ने उन्हें हरा दिया था। हालांकि, उन्होंने 2008 के चुनाव में अफजल से यह सीट कब्जा ली थी और पूर्ववर्ती जम्मू कश्मीर राज्य के सबसे युवा मुख्यमंत्री बने थे।
उमर अब्दुल्ला ने 2014 के विधानसभा चुनाव में गांदरबल छोड़ने और इशफाक जब्बार को प्रत्याशी बनाने का फैसला किया था। जब्बार ने चुनाव जीत लिया था लेकिन अप्रैल 2023 में पार्टी विरोधी गतिविधियों के लिए उन्हें नेकां से निष्कासित कर दिया गया था।
इस सीट पर हालांकि, नेकां का मजबूत आधार है लेकिन पीडीपी उम्मीदवार बशीर मीर के मुकाबले में शामिल होने से गांदरबल की लड़ाई मुश्किल हो गयी है।
मीर ने पड़ोसी कंगन सीट से दो बार असफल विधानसभा चुनाव लड़ा है। हालांकि, कई पीडीपी कार्यकर्ता उन्हें गांदरबल से प्रत्याशी बनाने से खुश नहीं हैं।
मीर गांदरबल जिले की स्थानीय आबादी के लिए एक नायक हैं क्योंकि उन्होंने सिंध नदी से कई लोगों को बचाया है और कई बार ऐसे बचाव कार्यों में पुलिस की मदद की है।
वहीं, उमर अब्दुल्ला ने ‘‘बाहरी’’ होने की चुनौती का सामना किया है। इस सीट से निर्दलीय के तौर पर चुनाव लड़ रहे जब्बार ने भी इसे अपने प्रचार अभियान का प्रमुख मुद्दा बनाया है।
जेल में बंद मौलवी सरजन वागे, जिन्हें सरजन बरकती के नाम से जाना जाता है और बारामूला के सांसद इंजीनियर रशीद की अवामी इत्तेहाद पार्टी के उम्मीदवार शेख आशिक के मैदान में उतरने से चुनावी जंग और रोमांचक हो गई है।
नेकां उपाध्यक्ष ने बरकती और रशीद दोनों को भाजपा का एजेंट और वोट काटने वाला बताया।
इस सीट पर 25 सितंबर को दूसरे चरण के तहत मतदान होगा और नतीजों की घोषणा आठ अक्टूबर को की जाएगी। इस निर्वाचन क्षेत्र में करीब 1.30 लाख मतदाता हैं।
भाषा
गोला नेत्रपाल
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