Gama Pehelwan… which was impossible to beat : नई दिल्ली। भारत में कई ऐसे पहलवान हुए जिन्होंने देश का नाम पूरी दुनिया में रोशन किया और खुद भी बहुत प्रसिद्ध हुए। ऐसे ही एक पहलवान थे जिनका नाम ‘गामा पहलवान’ था। लोग इन्हे ‘द ग्रेट गामा’ और रुस्तम-ए-हिंद नाम से भी जानती थी। गामा पहलवान का आज 22 मई को 144वां जन्मदिन है। गूगल ने डूडल बनाकर उनको श्रद्धांजलि अर्पित की है। गामा पहलवान ने अपने जीवन के लगभग 50 वर्ष कुश्ती को दिए और कई खिताब जीते।
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गामा पहलवान का पूरा नाम गुलाम मोहम्मद बख्श बट था। उनका जन्म 22 मई 1878 को अमृतसर के जब्बोवाल गांव में हुआ था। इनके जन्म को लेकर विवाद है क्योंकि कुछ रिपोर्ट बताती हैं कि उनका जन्म मध्यप्रदेश के दतिया में हुआ था। गामा पहलवान की लंबाई 5 फीट 7 इंच और वजन लगभग 113 किलो था। उनके पिता का नाम मुहम्मद अजीज बक्श था और पहलवानी के शुरुआती गुर गामा पहलवान को उनके पिताजी ने ही सिखाए थे।
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कुश्ती के लिए शौक रखने वाले गामा पहलवान ने बचपन से ही पहलवान बनने का सपना देख लिया था। उन्होंने कम उम्र से ही कुश्ती लड़ना शुरू किया और देखते ही देखते एक से बढ़कर एक पहलवानों को मात देना शुरू कर दिया और कुश्ती की दुनिया में उन्होंने अपना नाम बना लिया। भारत में सभी पहलवानों को धूल चटाने के बाद उन्होंने 1910 में लंदन का रुख किया।
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1910 में वे अपने भाई इमाम बख्श के साथ इंटरनेशन कुश्ती चैंपियनशिप में भाग लेने इंग्लैंड गए। उनकी हाइट केवल 5 फीट और 7 इंच की हाइट होने के कारण उन्हें इंटरनेशनल चैंपियनशिप में शामिल नहीं किया। इसके बाद उन्होंने वहां के पहलवानों को खुली चुनौती दी थी कि वे किसी भी पहलवान को 30 मिनिट में हरा सकते हैं, लेकिन उनकी चुनौती किसी ने स्वीकार नहीं की थी।
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अपने करियर में उन्होंने कई खिताब जीते, जिसमें वर्ल्ड हैवीवेट चैम्पियनशिप (1910) और वर्ल्ड कुश्ती चैम्पियनशिप (1927) भी जीता, जहां उन्हें ‘टाइगर’ की उपाधि से सम्मानित किया गया। बताया जाता है कि उन्होंने मार्शल आर्ट आर्टिस्ट ब्रूस ली को भी चैलेंज किया था। जब ब्रूस ली गामा पहलवान से मिले तो उन्होंने उनसे ‘द कैट स्ट्रेच’ सीखा, जो योग पर आधारित पुश-अप्स का वैरिएंट है। 20 वीं शताब्दी की शुरुआत में गामा पहलवान रुस्तम-ए-हिंद बने।
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गामा पहलवान के गांव के रहने वाले थे और उनका खान-पान भी देसी हुआ करता था। एक रिपोर्ट के मुताबिक उनकी डाइट काफी हैवी हुआ करती थी। वे रोजाना 10 लीटर दूध पिया करते थे। इसके साथ ही 6 देसी मुर्गे भी उनकी डाइट में शामिल थे। वो 100 रोटियां खाते थे। साथ ही वे एक ड्रिंक बनाते थे जिसमें लगभग 200 ग्राम बादाम डालकर पिया करते थे। इससे उन्हें ताकत मिलती थी और बड़े-बड़े पहलवानों को मात देने में मदद मिलती थी।
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गामा पहलवान रोजाना अपने 40 साथियों के साथ कुश्ती किया करते थे। उनकी एक्सरसाइज में 5 हजार हिंदू स्क्व़ॉट्स या बैठक, 3 हजार हिंदू पुश-अप या डंड हुआ करते थे। सयाजीबाग में बड़ौदा संग्रहालय में एक 2.5 फीट क्यूबिकल पत्थर रखा हुआ है, जिसका वजन लगभग 1200 किलो है। बताया जाता है कि 23 दिसंबर 1902 को गामा ने 1200 किलो के इस पत्थर को गामा पहलवान ने उठा लिया था।
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विभाजन से पहले गामा पहलवान अमृतसर में ही रहा करते थे लेकिन सांप्रदायिक तनाव बढ़ने के कारण वे लाहौर रहने चले गए। गामा पहलवान ने अपने जीवन की आखिरी कुश्ती 1927 में स्वीडन के पहलवान जेस पीटरसन से लड़ी थी। उन्होंने अपनी जीवन में 50 से अधिक कुश्ती लड़ी थीं और एक भी नहीं हारे। कुश्ती छोड़ने के बाद उन्हें अस्थमा और हृदय रोग की शिकायत हुई और उनकी हालत खराब होती गई। बताया जाता है कि उनके पास इतनी आर्थिक तंगी आ गई थी कि आखिरी समय में उन्हें अपने मेडल तक बेचना पड़े थे। लंबी बीमारी के बाद आखिरकार 1960 में 82 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया।