पुरी। ओडिसा के पुरी में मनाया जाने वाला जगन्नाथ रथ यात्रा उत्सव का बहुत ही अधिक महत्व है। इस रथ यात्रा को ‘गुंडीचा महोत्सव’ भी कहा जाता है। भगवान जगन्नाथ का मंदिर ‘श्री जगन्नाथ पुरी’ भारत ही नहीं, बल्कि पूरे विश्व में जाना जाता है। यह मंदिर भगवान विष्णु के 8वें अवतार ‘श्री कृष्ण’ को समर्पित है। पुरी के जगन्नाथ मंदिर भगवान विष्णु के चार धामों में से एक है। जिसे हिंदू पुराणों में ‘धरती का बैकुंठ’ कहा गया है।
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रथ यात्रा में भगवान जगन्नाथ, भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा की प्रतिमाओं को तीन अलग-अलग रथों में विराजित किया जाता है। मान्यताओं के अनुसार गुंडीचा मंदिर को भगवान जगन्नाथ की मौसी का घर माना जाता है। साल में एक बार रथयात्रा के दौरान भगवान अपने भाई बहनों के साथ जगन्नाथ मंदिर से निकलकर गुंडीचा मंदिर में रहने के लिए आते हैं। गुंडीचा मंदिर यानि भगवान जगन्नाथ की मौसी के घर उनका खूब आदर सत्कार किया जाता है। भगवान यहां पूरे सात दिनों तक रहते हैं।
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भगवान विष्णु ने पुरी में ‘पुरुषोत्तम नीलमाधव’ के रूप में अवतार लिया था और सभी के परम पूज्य देवता बन गए। भगवान जगन्नाथ का स्वरूप कबीलाई है। क्योंकि वो सभी जनजाति के इष्ट देवता हैं। भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा के रथ नारियल की लकड़ी से बनाए जाते हैं। ये लकड़ी वजन में भी अन्य लकड़ियों की तुलना में हल्की होती है और इसे आसानी से खींचा जा सकता है। भगवान जगन्नाथ के रथ का रंग लाल और पीला होता है, और यह अन्य रथों से आकार में बड़ा भी होता है। ये रथ बलभद्र और सुभद्रा के रथ के पीछे होता है।
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रथ का निर्माण अक्षय तृतीय से शुरू होता है। इस दिन को रथ अनुकूला कहा जाता है। करीब 58 दिनों तक स्थानीय मंदिरों के 200 कारीगर मिलकर रथ को तैयार करते हैं। इसकी शुरुआत मंदिर के पुजारी कुल्हाड़ी को लकड़ी से छुआकर करते हैं। लकड़ी की पूजा की जाती और उस पर माला चढ़ाई जाती हैं। यहां की मान्यताओं के मुताबिक, अक्षय तृतीया के दिन शुरु किया गया काम बेहद शुभ माना जाता है।
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इस दिन से ही जगन्नाथ मंदिर में 42 दिन तक चलने वाले चंदन महोत्सव की शुरुआत भी होती है। एक रथ 34 अलग-अलग हिस्सों से मिलकर बना होता है। नारियल की रस्सी से श्रद्धालु रथ को खींचते हैं। हर रथ में 9 पार्श्व देवता, दो द्वारपाल, एक सारथी और एक ध्वज देवता को होना अनिवार्य है। ये भी लकड़ी से तैयार किए जाते हैं। इसके अलावा रथ 18 पिलर होते हैं। भगवान जगन्नाथ जी के रथ को नंदीघोष और कपिल ध्वज के नाम से भी जानते हैं। बहन सुभ्रदा के रथ को देवदलन और पद्मध्वज कहते हैं। वहीं, भगवान बलभद्र के रथ को तालध्वज के नाम से जानते हैं। यात्रा के लिए 3 रथ का निर्माण होता है इनमें 42 चक्र लगाए जाते हैं। कपिलध्वज में 16, पद्मध्वज में 12 और तालध्वज में 14 चक्र होते हैं।
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