कोच्चि: केरल उच्च न्यायालय ने डॉक्टर दंपति के तलाक को मंजूर करते हुए कहा कि ऐसे मामले में जवाबी बयान में एक जीवनसाथी पर नपुंसकता या शारीरिक संबंध बनाने में अक्षमता का आरोप लगाना मानसिक क्रूरता के समान है। न्यायमूर्ति ए मोहम्मद मुश्ताक और न्यायमूर्ति कौसर एडप्पागथ की पीठ ने डॉक्टर दंपति के बीच तलाक के मामले पर विचार करते हुए कहा कि एक जीवनसाथी के खिलाफ अनावश्यक आरोप लगाना मानसिक क्रूरता के समान है।
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अदालत ने अपने आदेश में कहा, ‘‘वैवाहिक मामलों से जुड़ी कार्यवाही में जवाबी बयान में एक जीवनसाथी द्वारा नपुंसकता या शारीरिक संबंध बनाने में अक्षमता का आरोप लगाना निश्चित तौर पर क्रूरता है। इसलिए हम प्रतिवादी के इस कृत्य को अपील करने वाले के खिलाफ अनावश्यक आरोप लगाकर मानसिक क्रूरता करने के समान मानते हैं।’’
अदालत ने 31 मई को अपने आदेश में कहा कि महिला ने आरोप लगाया था कि उसका पति नपुंसक है लेकिन अपने द्वारा लगाए गए आरोप को प्रमाणित करने में पूरी तरह असफल रही। अदालत ने कहा कि जवाबी बयान में बेबुनियाद आरोप लगाने के सिवा रिकॉर्ड पर प्रतिवादी ने किसी तरह के प्रमाण नहीं पेश किए।
अदालत ने कहा कि पति दलीलों को खारिज करने के लिए चिकित्सकीय परीक्षण कराने को लेकर तैयार था लेकिन प्रतिवादी (पत्नी) ने इस तरह का कोई कदम नहीं उठाया। अदालत ने 2008 में शादी करने वाले जोड़े के बीच तलाक का आदेश सुनाते हुए यह टिप्पणी की।
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