निर्धारित समयसीमा के भीतर वक्फ विधेयक पर संसदीय समिति की रिपोर्ट आने की उम्मीद: रीजीजू

निर्धारित समयसीमा के भीतर वक्फ विधेयक पर संसदीय समिति की रिपोर्ट आने की उम्मीद: रीजीजू

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  • Publish Date - September 25, 2024 / 01:47 PM IST,
    Updated On - September 25, 2024 / 01:47 PM IST

नयी दिल्ली, 25 सितंबर (भाषा) संसदीय कार्य मंत्री किरेन रीजीजू ने बुधवार को कहा कि वक्फ संशोधन विधेयक पर विचार कर रही संसद की संयुक्त समिति जिस तेज गति से काम कर रही है उससे उन्हें उम्मीद है कि इसकी रिपोर्ट तय समयसीमा के भीतर संसद में रख दी जाएगी।

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सांसद जगदंबिका पाल की अध्यक्षता वाली इस समिति को शीतकालीन सत्र के पहले सप्ताह के अंतिम दिन तक रिपोर्ट देने के लिए कहा गया है।

रीजीजू ने यहां संवाददाताओं से कहा, ‘‘वक्फ संशोधन विधेयक संसद की संयुक्त समिति के पास भेजा गया है…एक करोड़ से भी ज्यादा प्रतिवेदन जेपीसी के पास आ चुके हैं। जेपीसी व्यापक रूप से सुनवाई कर रही है। सबको अपनी बातें कहने का मौका दिया जा रहा है। समिति अध्यक्ष और सदस्यो को बधाई देता हूं। हमारे संसदीय इतिहास में इतना गहन और व्यापक विचार-विमर्श कभी नहीं हुआ है।’’

उनका कहना था कि वक्फ संशोधन पहले भी आए, लेकिन इतना व्यापक विचार-विमर्श कभी किसी सरकार ने नहीं किया।

रीजीजू ने एक सवाल के जवाब में कहा कि समिति में शामिल लोग जिस गति से काम कर रहे हैं उससे उम्मीद है कि रिपोर्ट तय समयसीमा के भीतर आ जाएगी।

संसदीय समिति के पास आए एक करोड़ से अधिक प्रतिवेदनों की जांच संबंधी भाजपा सांसद निशिकांत दुबे की मांग पर रीजीजू ने कहा कि वह जेपीसी के कामकाज के बारे में कुछ नहीं कह सकते तथा कितने मेल आए हैं, उसे समिति ही देखेगी।

यह विधेयक वक्फ संपत्तियों के पंजीकरण की प्रक्रिया में सुधार के उद्देश्य से भाजपा नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) सरकार की पहली बड़ी पहल है।

विधेयक में कई सुधारों का प्रस्ताव है, जिसमें मुस्लिम महिलाओं और गैर-मुस्लिम प्रतिनिधियों के प्रतिनिधित्व के साथ राज्य वक्फ बोर्डों समेत एक केंद्रीय वक्फ परिषद की स्थापना शामिल है।

विधेयक का एक विवादास्पद प्रावधान, जिलाधिकारी को यह निर्धारित करने के लिए प्राथमिक प्राधिकरण के रूप में नामित करने का प्रस्ताव करता है कि क्या संपत्ति को वक्फ या सरकारी भूमि के रूप में वर्गीकृत किया गया है।

विधेयक को गत आठ अगस्त को लोकसभा में पेश किया गया था और चर्चा के बाद संसद की एक संयुक्त समिति को भेजा गया था।

सरकार ने इस बात पर जोर दिया था कि प्रस्तावित कानून मस्जिदों के कामकाज में हस्तक्षेप करने का इरादा नहीं रखता जबकि विपक्ष ने इसे मुसलमानों को निशाना बनाने के लिए उठाया गया कदम और संविधान पर हमला बताया था।

भाषा हक हक नरेश

नरेश