नयी दिल्ली, 13 दिसंबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) के सत्यापन के लिए नीति बनाने की मांग वाली याचिका उसी पीठ के पास भेजी जानी चाहिए जिसने अप्रैल में मतपत्र की पुरानी पद्धति वापस लाने के अनुरोध संबंधी याचिका को खारिज करते हुए फैसला सुनाया था।
ईवीएम से जुड़ी यह याचिका न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति पी बी वराले की पीठ के समक्ष सुनवाई के लिए आई। इस पर पीठ ने याचिकाकर्ता के वकील वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन से कहा, ‘‘यह मामला उसी पीठ के समक्ष क्यों नहीं भेजा जाता?’’
शंकरनारायणन ने अदालत को ईवीएम से संबंधित याचिकाओं पर अप्रैल में दिए गए फैसले के बारे में जानकारी दी।
इस पर न्यायमूर्ति नाथ ने दोहराया, ‘‘ मैं यही कह रहा हूं। इसे (याचिका को) उसी पीठ के समक्ष जाना चाहिए।’’
पीठ ने कहा, ‘‘ हमारी समझ से, भारत के संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत इस याचिका के माध्यम से जिस राहत का दावा किया गया है उसके लिए 26 अप्रैल 2024 के फैसले के तहत इस अदालत द्वारा जारी निर्देशों की व्याख्या /संशोधन /कार्यान्वयन की आवश्यकता होगी …।’’
उच्चतम न्यायालय ने 26 अप्रैल के अपने फैसले में ईवीएम में हेरफेर के संदेह को ‘‘निराधार’’ बताया था और कहा था कि मतदान उपकरण ‘‘सुरक्षित’’ है और इसने ‘बूथ कैप्चरिंग’ तथा फर्जी मतदान की आशंका को समाप्त किया है।
पीठ ने उच्चतम न्यायालय की रजिस्ट्री से मामले के कागजात प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना के समक्ष प्रस्तुत करने को कहा ताकि इस बारे में उचित आदेश पारित किया जा सके कि याचिका को उसी पीठ के पास सूचीबद्ध किया जाएगा या किसी अन्य पीठ के समक्ष।
यह याचिका हरियाणा के पूर्व मंत्री और पांच बार विधायक रहे करण सिंह दलाल और लखन कुमार सिंगला ने दायर की थी।
दलाल और सिंगला अपने-अपने निर्वाचन क्षेत्रों में दूसरे स्थान पर रहे और उन्होंने निर्वाचन आयोग को ईवीएम के चार घटकों – नियंत्रण इकाई, मतपत्र इकाई, वीवीपीएटी और प्रतीक लोडिंग इकाई – की मूल ‘‘बर्न मेमोरी’’ या ‘माइक्रोकंट्रोलर’ की जांच के लिए एक प्रोटोकॉल लागू करने का निर्देश देने का अनुरोध किया था।
याचिकाकर्ताओं ने कहा कि उनकी याचिका में चुनाव परिणामों को चुनौती नहीं दी गई है बल्कि ईवीएम सत्यापन के लिए एक मजबूत तंत्र का अनुरोध किया गया है।
भाषा शोभना मनीषा
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