नयी दिल्ली, 10 नवंबर (भाषा) राष्ट्रीय हरित अधिकरण को गंगा में प्रदूषण पर उत्तराखंड सरकार की रिपोर्ट के हवाले से सूचित किया गया कि इस नदी का ‘‘उद्गम स्थल’ भी जलमल शोधन संयंत्र (एसटीपी) से छोड़े जा रहे जल से प्रदूषित हो गया है।
उत्तराखंड में गंगा में प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण को लेकर अधिकरण में हो रही सुनवाई के दौरान यह जानकारी दी गई। एनजीटी ने पहले राज्य और अन्य से रिपोर्ट तलब की थी।
एनजीटी अध्यक्ष न्यायमूर्ति प्रकाश श्रीवास्तव की पीठ ने सुनवाई में हस्तक्षेप के लिए याचिका दाखिल करने वाले आवेदकों में से एक के वकील की दलीलों पर संज्ञान लिया। उन्होंने राज्य सरकार की रिपोर्ट का हवाला देते हुए बताया कि गंगोत्री स्थित 10 लाख लीटर प्रतिदिन (एमएलडी) क्षमता वाले एसटीपी से एकत्र नमूने में सर्वाधिक संभावित संख्या (एमपीएन) 540/100 मिली वाला ‘फिकल कोलीफॉर्म’ पाया गया था।
फिकल कोलीफॉर्म (एफसी) का स्तर मनुष्यों और जानवरों के मलमूत्र से निकलने वाले सूक्ष्मजीवों से होने वाले प्रदूषण को दर्शाता है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के जल गुणवत्ता मानदंडों के अनुसार,नदी में स्नान करने के लिए जल में 500/100 मिली से कम एमपीएन वांछनीय है।
एनजीटी की पीठ द्वारा पांच नवंबर को पारित आदेश में कहा गया, ‘‘उन्होंने (वकील ने) कहा है कि गंगा नदी का उद्गम स्थल भी एसटीपी द्वारा छोड़े जा रहे जल से प्रदूषित हो गया है।’’ इस पीठ में न्यायिक सदस्य न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल और विशेषज्ञ सदस्य ए सेंथिल वेल भी शामिल थे।
अधिकरण अब इस मामले पर अगली सुनवाई 13 फरवरी को करेगा।
भाषा
धीरज वैभव
वैभव