चालक की ओर से महिला यात्री का यौन उत्पीड़न : ओला से मुआवजा दिलाने के आदेश पर रोक

चालक की ओर से महिला यात्री का यौन उत्पीड़न : ओला से मुआवजा दिलाने के आदेश पर रोक

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  • Publish Date - October 5, 2024 / 06:19 PM IST,
    Updated On - October 5, 2024 / 06:19 PM IST

बेंगलुरु, पांच अक्टूबर (भाषा) कर्नाटक उच्च न्यायालय ने एकल पीठ के उस आदेश पर रोक लगा दी जिसमें 2019 में ओला चालक द्वारा कथित तौर पर यौन उत्पीड़न की शिकार महिला यात्री को पांच लाख रुपये का मुआवजा देने का आदेश ऐप आधारित कैब संयोजक ओला को दिया था।

न्यायमूर्ति एस. आर. कृष्ण कुमार और न्यायमूर्ति एम. जी. उमा की पीठ ने 30 सितंबर के एकल न्यायाधीश के फैसले के खिलाफ एएनआई टेक्नोलॉजीज प्राइवेट लिमिटेड (ओला) की अपील पर अंतरिम आदेश पारित किया।

एकल पीठ ने अपने फैसले में कहा था कि एएनआई टेक्नोलॉजीज प्राइवेट लिमिटेड (ओला) और उसके चालकों के बीच संबंध नियोक्ता-कर्मचारी का था।

पीठ ने अपने मूल आदेश में ओला और इसकी आंतरिक शिकायत समिति (आईसीसी) को उस महिला को पांच लाख रुपये का मुआवजा और 50,000 रुपये कानूनी खर्च देने का निर्देश दिया था, जिसने ओला चालक के खिलाफ यौन उत्पीड़न की शिकायत दर्ज कराई थी।

अदालत ने व्यवस्था दी कि ओला द्वारा इस दलील के आधार पर शिकायत पर कार्रवाई करने से इनकार करना कि चालक कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 (पीओएसएच अधिनियम) के तहत कर्मचारी नहीं हैं, ‘अनुचित’ था।

एकल पीठ के फैसले के खिलाफ कंपनी ने अपील दायर की, जिसमें ओला को अपने चालकों से संबंधित यौन उत्पीड़न की शिकायतों का समाधान करने के लिए कहा गया था।

ओला का पक्ष रखते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता ध्यान चिन्नप्पा ने शुक्रवार को पीठ के समक्ष दलील दी कि पहले के फैसले में नियोक्ता-कर्मचारी संबंध स्थापित करने में त्रृटि की गई है।

उन्होंने दलील दी कि चालक केवल कैब सेवाएं देने के लिए ओला के मंच का इस्तेमाल करते हैं और वे कंपनी के प्रत्यक्ष कर्मचारी नहीं हैं।

भाषा धीरज रंजन

रंजन