(गुंजन शर्मा)
महाकुम्भनगर, 21 जनवरी (भाषा) प्रयागराज में आयोजित किए जा रहे महाकुम्भ में किन्नर अखाड़े में भारी संख्या में श्रद्धालु आशीर्वाद लेने के लिए पहुंच रहे हैं।
किन्नर वर्ग के लिए दस साल पहले ‘अखाड़ा’ पंजीकृत कराने के दौरान समुदाय को कड़े विरोध का सामना करना पड़ा था, लेकिन उनका आशीर्वाद लेने पहुंची रही श्रद्धालुओं की भीड़ ने उम्मीद जगाई है कि आखिरकार समाज उन्हें स्वीकार करेगा।
तीन हजार से अधिक किन्नर लोग अखाड़े में रह रहे हैं और संगम में डुबकी लगा रहे हैं। इनमें अधिकांश ऐसे हैं जिनके परिवार ने उन्हें छोड़ दिया था।
खुद की पहचान महिला के रूप में करने वालीं किन्नर अखाड़े की महामंडलेश्वर पवित्रा नंदन गिरि ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा कि समाज ने हमेशा किन्नरों का तिरस्कार किया है।
उन्होंने कहा, ‘‘हमें हमेशा से हीन भावना से देखा जाता रहा है। जब हमने अपने लिए अखाड़ा पंजीकृत कराना चाहा, तो हमारे धर्म को लेकर सवाल उठाए गए। हमसे पूछा गया कि हमें इसकी क्या जरूरत है? विरोध के बावजूद, हमने 10 साल पहले इसे पंजीकृत कराया और यह हमारा पहला महाकुम्भ है।’’
अखाड़े ऐसी संस्थाएं हैं जो विशिष्ट आध्यात्मिक परंपराओं और प्रथाओं के तहत संतों (तपस्वियों) को एक साथ लाती हैं।
गिरि ने कहा, ‘‘आज हम भी संगम में डुबकी लगा सकते हैं, अन्य अखाड़ों की तरह शोभा यात्रा निकाल सकते हैं और अनुष्ठान कर सकते हैं। अखाड़े में भारी संख्या में श्रद्धालु पहुंच रहे हैं और हमारा आशीर्वाद लेने के लिए लंबी कतार लग रही है। उम्मीद है कि समाज में भी हमें स्वीकारा जाएगा।’’
नर्सिंग स्नातक कर चुकीं गिरि ने कहा कि जैसा कि कई ट्रांसजेंडर लोगों के साथ होता है उसी तरह उनके परिवार ने भी उन्हें छोड़ दिया।
उन्होंने कहा, ‘‘हमारे लिए जीवन कठिन है। बचपन में मैं अपने भाई-बहनों के साथ खेलती थी, इस बात से अनजान कि मैं उनमें से नहीं हूं। एक बार जब मुझे पता चला तो सभी ने मेरे साथ ऐसा व्यवहार किया जैसे मैं हीन या अछूत हूं। मैंने अपनी शिक्षा भी पूरी की, लेकिन फिर भी भेदभाव का दंश झेलना पड़ा।’’
अखिल भारतीय किन्नर अखाड़ा महाकुम्भ में 14वां अखाड़ा है।
महाकुम्भ में 13 अखाड़ों को तीन समूहों में विभाजित किया गया है, संन्यासी (शैव), बैरागी (वैष्णव) और उदासीन। प्रत्येक अखाड़े को कुछ अनुष्ठानों के लिए विशिष्ट समय दिया जाता है।
जूना अखाड़ा 13 अखाड़ों में सबसे पुराना और सबसे बड़ा है।
महामंडलेश्वर लक्ष्मीनारायण त्रिपाठी ने कहा कि महाकुम्भ में उनके साथ अन्य संतों जैसा ही व्यवहार किया जाता है।
उन्होंने कहा, ‘‘हम प्रार्थना में भाग ले रहे है, भजन गा रहे हैं और यज्ञ कर रहे हैं। लोग हमसे एक रुपये के सिक्के लेने के लिए कतार में खड़े हैं। जब कोई किन्नर आशीर्वाद देता है तो इसे शुभ माना जाता है। हालांकि यह बात सभी लोग जानते हैं फिर भी समाज हमें स्वीकार करने से कतराता है। अखाड़े ने अब आध्यात्मिकता के हमारे अधिकार को पुख्ता कर दिया है।’’
भाषा खारी वैभव
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