दिल्ली मेट्रो ने स्तन कैंसर पर विज्ञापन हटाया; संतरे की उपमा दिये जाने से छिड़ा विवाद

दिल्ली मेट्रो ने स्तन कैंसर पर विज्ञापन हटाया; संतरे की उपमा दिये जाने से छिड़ा विवाद

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  • Publish Date - October 24, 2024 / 05:41 PM IST,
    Updated On - October 24, 2024 / 05:41 PM IST

(माणिक गुप्ता)

नयी दिल्ली, 24 अक्टूबर (भाषा) दिल्ली मेट्रो ने बृहस्पतिवार को कहा कि उसने स्तन कैंसर के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए लगाये गए उस पोस्टर को हटा दिया है जिसपर लिखा था कि ‘‘अपने संतरों की जांच कराएं’’। लेकिन यह सवाल बना हुआ है कि क्या यह उपमा संदेश को अस्पष्ट करती है, क्या यह समाज में महिलाओं को सहज महसूस करने में मदद करती है या यह उन्हें और असहज बनाती है।

दिल्ली मेट्रो ने यह कदम सोशल मीडिया और इसके बाहर एक गैर-लाभकारी संगठन ‘यूवीकैन फाउंडेशन’ के पोस्टर को लेकर चली बहस के एक दिन बाद उठाया है।

अक्टूबर में स्तन कैंसर जागरूकता माह के दौरान शुरू किए गए इस अभियान में, कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) से निर्मित महिलाओं को बस में संतरे लिए दिखाया गया था, जिसके शीर्षक में महिलाओं से अनुरोध किया गया था कि वे (स्तन कैंसर) रोग का पता लगाने के लिए समय रहते ‘महीने में एक बार अपने संतरे की जांच कराएं।’

हालांकि, यह पोस्टर केवल एक ट्रेन पर था लेकिन यात्रियों ने इसकी तस्वीरें खींच ली, इसे व्यापक रूप से साझा किया और यह मुद्दा शीघ्र ही सोशल मीडिया सहित विभिन्न मंचों पर गंभीर चर्चा का विषय बन गया।

कलाकार और स्तन कैंसर से पीड़ित सुनैना भल्ला ने इस पोस्टर को लेकर नाराजगी जताते हुए पूछा, ‘‘क्या (पोस्टर) निर्माताओं में मानवीय शालीनता की इतनी कमी है कि वे शरीर के एक महत्वपूर्ण अंग की तुलना एक फल से कर रहे हैं? यदि आपमें शरीर के अंग की परिभाषा का सम्मान करने की शालीनता नहीं है, तो आप महिलाओं को इसके बारे में सहजता से बात करना कैसे सिखा रहे हैं, जांच करवाना तो दूर की बात है?’’

भल्ला ने इस अभियान को ‘‘अप्रभावी, निरर्थक और आपत्तिजनक’’ करार दिया।

भल्ला ने सिंगापुर से पीटीआई-भाषा से कहा, ‘‘यह स्तन है – पुरुषों और महिलाओं दोनों में यह होता है और हां, दोनों को कैंसर हो सकता है। यह पोस्टर विज्ञापन उद्योग का एक नया निम्न स्तर है।’’

‘‘अनुचित सामग्री’’ के खिलाफ लोगों की कड़ी आपत्ति के कारण दिल्ली मेट्रो रेल कॉरपोरेशन (डीएमआरसी) ने त्वरित प्रतिक्रिया दी और बुधवार रात पोस्टर हटा दिया।

डीएमआरसी ने बृहस्पतिवार को ‘एक्स’ पर पोस्ट किया, ‘‘डीएमआरसी हमेशा लोगों की भावनाओं के प्रति संवेदनशील रहने का प्रयास करता है और ऐसे किसी भी तरह के अभियान/गतिविधि/प्रदर्शन विज्ञापन को बढ़ावा नहीं देता है जो सही नहीं है या सार्वजनिक स्थानों पर विज्ञापन के प्रचलित दिशानिर्देशों का उल्लंघन करता हो। दिल्ली मेट्रो यह सुनिश्चित करने का प्रयास करेगी कि अनुचित विज्ञापन की ऐसी घटनाएं उसके परिसर में न हों।’’

जागरूकता अभियान ने भले ही संदेश का प्रसार किया हो, लेकिन इसकी आलोचना करने वाले लोग अपनी टिप्पणियों में बिल्कुल स्पष्ट थे।

कुछ ही समय में, सोशल मीडिया मंचों पर ऐसे पोस्ट की बाढ़ आ गई, जिसमें पूर्व क्रिकेटर एवं कैंसर से पीड़ित रह चुके युवराज सिंह द्वारा स्थापित गैर-लाभकारी संस्था द्वारा चलाए जा रहे अभियान को ‘‘लोगों की भावनाएं समझने में असमर्थ’’, ‘‘ प्रतीक का मूर्खतापूर्ण इस्तेमाल’’, ‘‘मानवीय शालीनता की कमी’’ वाला करार दिया गया है।

चिकित्सकों और कार्यकर्ताओं सहित विशेषज्ञों ने इस बहस में शामिल होकर कहा कि स्तन कैंसर जैसे महत्वपूर्ण मुद्दे पर संदेश ‘‘सीधा और सार्थक’’ होना चाहिए।

कार्यकर्ता योगिता भयाना, जो पहले ‘यूवीकैन’ फाउंडेशन से जुड़ी थीं, ने स्वीकार किया कि गैर सरकारी संगठन से ‘‘गलती’’ हुई है।

द्वारका स्थित मणिपाल अस्पताल की डॉ. दिव्या सेहरा ने कहा, ‘‘संतरों का दृश्य चित्रण लक्षित वर्ग के अनुकूल है, लेकिन स्तन शब्द को फलों या अन्य वस्तुओं से प्रतिस्थापित नहीं किया जाना चाहिए, क्योंकि इससे मुद्दा कमजोर पड़ सकता है या इसकी गलत व्याख्या हो सकती है।’’

स्त्री रोग संबंधी कैंसर विशेषज्ञ ने कहा कि हालांकि, यह अभियान कुछ लोगों को पसंद नहीं आ सकता है और जब ऐसे महत्वपूर्ण संदेश देना हो, तो जानकारी प्रत्यक्ष और सार्थक होनी चाहिए।

तमिलनाडु के एक प्रसिद्ध यूरोलॉजिस्ट डॉ. जेसन फिलिप, जिनकी मां स्तन कैंसर से पीड़ित थीं, ने ‘एक्स’ पर एक भावुक पोस्ट लिखी।

उन्होंने पोस्ट में लिखा, ‘‘मेरी मां की मृत्यु स्तन कैंसर के कारण हुई। विडंबना यह है कि उनका बेटा (मैं) उस समय एक स्तन सर्जन था, लेकिन संकोचवश उन्होंने अपने बेटे को भी इस बारे में नहीं बताया, जब यह एक छोटी सी गांठ थी। जबकि, उस समय वह ठीक हो सकती थीं। इसलिए कृपया स्तन कैंसर को यौनिक न बनाएं, जो कि दुनिया भर में सबसे आम कैंसर है।’’

यूवीकैन फाउंडेशन ने अपने विवादित अभियान का बचाव किया और स्तन के लिए उपमा के रूप में संतरे के उपयोग का समर्थन किया।

एनजीओ ने कहा कि इसने 3 लाख से ज़्यादा महिलाओं को स्तन कैंसर के बारे में जागरूक किया है और 1.5 लाख की जांच की है।

यूवीकैन फाउंडेशन की ट्रस्टी पूनम नंदा ने पीटीआई-भाषा से कहा, ‘‘अगर संतरे के उपयोग से लोग स्तन स्वास्थ्य के बारे में बात करने लगते हैं और इससे एक भी जान बचती है, तो यह मायने रखता है।’’

लैंसेट पत्रिका के अनुसार, स्तन कैंसर अब दुनिया का सबसे आम कैंसर रोग है। 2040 तक इसके कारण हर साल 10 लाख लोगों की मौत होने की संभावना है।

भाषा सुभाष मनीषा

मनीषा