दिल्ली उच्च न्यायालय ने इंजीनियर रशीद की ‘अभिरक्षा पैरोल’ की याचिका पर फैसला सुरक्षित रखा
दिल्ली उच्च न्यायालय ने इंजीनियर रशीद की ‘अभिरक्षा पैरोल’ की याचिका पर फैसला सुरक्षित रखा
नयी दिल्ली, सात फरवरी (भाषा) दिल्ली उच्च न्यायालय ने जम्मू कश्मीर में अलगाववादियों और आतंकी समूहों का वित्त पोषण करने के आरोपी एवं जेल में बंद सांसद अब्दुल रशीद शेख उर्फ इंजीनियर रशीद की उस याचिका पर अपना आदेश सुरक्षित रख लिया जिसमें उन्होंने जारी संसद सत्र में भाग लेने के लिए ‘अभिरक्षा पैरोल’ का अनुरोध किया है।
न्यायमूर्ति विकास महाजन ने बारामूला से सांसद और राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (एनआईए) की ओर से पेश हुए वकीलों की दलीलें सुनीं और कहा, ‘‘फैसला सुरक्षित रखा जाता है।’’
एनआईए की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा और अक्षय मलिक ने अभिरक्षा पैरोल दिए जाने का विरोध करते हुए कहा कि रशीद को संसद के सत्र में शामिल होने का कोई निहित अधिकार नहीं है और उन्होंने अपने अनुरोध के लिए कोई विशिष्ट उद्देश्य नहीं दर्शाया है।
उन्होंने रशीद को संसद में प्रवेश की अनुमति दिए जाने पर सुरक्षा संबंधी चिंताओं का उल्लेख करते हुए कहा कि ‘अभिरक्षा पैरोल’ के लिए पुलिस सुरक्षा की आवश्यकता होती है तथा परिसर में सशस्त्र कर्मियों पर प्रतिबंध के कारण जटिलताएं उत्पन्न होती हैं।
लूथरा ने कहा, ‘‘अभिरक्षा पैरोल किसी सांसद का निहित अधिकार नहीं है।’’ उन्होंने इस मामले को उन मामलों से अलग बताया जिसमें अभिरक्षा पैरोल व्यक्तिगत कारणों जैसे विवाह या शोक के लिए दी जाती है।
वरिष्ठ अधिवक्ता लूथरा ने दलील दी, ‘‘उनके साथ सशस्त्र कर्मियों का होना जरूरी है। आप सशस्त्र कर्मियों को संसद में कैसे प्रवेश दे सकते हैं? (संसद में) हथियार लेकर कोई भी व्यक्ति प्रवेश नहीं कर सकता। वह एक अलग संस्था के मानदंडों के अधीन हैं।’’
उन्होंने कहा, ‘‘सुरक्षा संबंधी मुद्दे एनआईए के अधिकार क्षेत्र से बाहर हैं। अभिरक्षा पैरोल किसी सांसद का निहित अधिकार नहीं है।’’
न्यायमूर्ति महाजन ने कहा कि हालांकि हो सकता है कि सत्र में भाग लेना कोई निहित अधिकार नहीं है, फिर भी अदालत अपने विवेक का प्रयोग कर सकती है।
रशीद की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता एन. हरिहरन ने कहा कि उनके मुवक्किल को संसद के मौजूदा सत्र में भाग लेने की अनुमति दी जानी चाहिए क्योंकि बजट सत्र के दौरान उनके निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व नहीं हो पा रहा है, जबकि उनके राज्य को आवंटित धनराशि में 1,000 करोड़ रुपये की कमी की गई है।
हरिहरन ने सांसद पप्पू यादव के मामले का जिक्र किया जिन्हें 2009 में संसद सत्र में हिस्सा लेने की अनुमति दी गई थी।
सांसद रशीद की ओर से पेश हुए वकील ने उनके हवाले से दलील दी, ‘‘मैं (इंजीनियर रशीद) जम्मू कश्मीर के सबसे बड़े निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करता हूं। निर्वाचन क्षेत्र के प्रतिनिधित्व को नहीं रोकें… निर्वाचन क्षेत्र की आवाज को न दबाएं।’’
रशीद के वकीलों हरिहरन और विख्यात ओबेरॉय ने कहा कि रशीद को पहले भी लोकसभा चुनाव के लिए प्रचार करने और सांसद पद की शपथ लेने की छूट दी गई थी, ऐसे में अब वह संसद में सुरक्षा के लिए खतरा कैसे बन सकते हैं।
हालांकि, लूथरा ने कहा कि इस समय रशीद को सत्र में शामिल होने देने का कोई ठोस उद्देश्य नहीं है और पिछले संसद सत्र में शामिल होने की उनकी पिछली याचिका भी खारिज कर दी गई थी।
लूथरा ने कहा, ‘‘आज क्या उद्देश्य है? बजट पेश किया जा चुका है। क्या उन्होंने कुछ किया है… सिवाय इसके कि वह अनशन पर बैठे और उन्हें आरएमएल भेज दिया गया।’’
एनआईए के वकील ने रशीद के पिछले आचरण को लेकर चिंता जताई और आरोप लगाया कि रशीद ने तिहाड़ जेल में टेलीफोन सुविधा का दुरुपयोग किया जिससे उनके संचार पर पाबंदी लगा दी गई।
एनआईए ने कहा कि दुरुपयोग के कारण रशीद को तीन सप्ताह में केवल दो बार कॉल करने की अनुमति दी गई।
उच्च न्यायालय रशीद की उस याचिका पर सुनवाई कर रहा है, जिसमें दावा किया गया है कि पिछले वर्ष लोकसभा के लिए उनके निर्वाचित होने के बाद उनकी जमानत याचिका पर सुनवाई कर रही एनआईए अदालत द्वारा कोई निर्णय नहीं लिए जाने के बाद उनके पास कोई विकल्प नहीं बचा था।
रशीद ने अपनी याचिका में उच्च न्यायालय से अनुरोध किया है कि या तो वह निचली अदालत द्वारा उनकी लंबित जमानत याचिका का शीघ्र निपटारा करने का निर्देश दे या उन्हें अंतरिम जमानत दे।
रशीद की जमानत याचिका पर सुनवाई के लिए अदालत के निर्धारण के मुद्दे पर उच्च न्यायालय प्रशासन के वकील ने कहा कि मामले पर उच्चतम न्यायालय में 10 फरवरी को सुनवाई होने की संभावना है।
मुख्य याचिका के जवाब में, एनआईए ने कहा कि सांसद होने के नाते, रशीद एक ‘‘अत्यधिक प्रभावशाली व्यक्ति’’ हैं जो गवाहों को प्रभावित कर सकते हैं और मुकदमे में बाधा डाल सकते हैं।
रशीद को 2019 में धनशोधन के एक मामले में शामिल होने और देश के खिलाफ युद्ध छेड़ने के आरोपों के बाद गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम के तहत गिरफ्तार किया गया था। उनका मामला जम्मू कश्मीर में अलगाववादी गतिविधियों को वित्तपोषित करने से जुड़ा है और उनके संबंध आतंकवादी हाफिज सईद से हैं।
एनआईए ने आरोप लगाया कि रशीद ने अलगाववादी विचारधारा को बढ़ावा देने के लिए सार्वजनिक मंचों का इस्तेमाल किया और क्षेत्र में सुरक्षाबलों के खिलाफ हिंसा भड़काने में भूमिका निभाई। मुकदमा चल रहा है, जिसमें कुल कुल 248 में से अभियोजन पक्ष के 21 गवाहों से जिरह की गई है।
एजेंसी द्वारा दर्ज की गई प्राथमिकी के अनुसार, व्यवसायी और सह-आरोपी जहूर वटाली से पूछताछ के दौरान रशीद का नाम सामने आया।
इसने कहा कि आरोपी पाकिस्तान द्वारा युवाओं को भड़काने और अशांति का माहौल बनाने के लिए तैयार की गई ‘‘सुनियोजित’’ रणनीति में शामिल रहा है।
अक्टूबर 2019 में आरोपपत्र दाखिल किए जाने के बाद, एक विशेष एनआईए अदालत ने मार्च, 2022 में उनके खिलाफ आरोप तय किए थे।
रशीद और अन्य के खिलाफ 2022 में भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 120बी (आपराधिक साजिश), 121 (सरकार के खिलाफ युद्ध छेड़ना), 124ए (राजद्रोह) और आतंकवादी कृत्यों के तहत आरोप तय किए गए थे।
विधायक के रूप में रशीद का कार्यकाल विवादों में घिरा रहा। अक्टूबर 2015 में, तत्कालीन जम्मू कश्मीर विधानसभा के अंदर भाजपा विधायकों ने उन पर हमला किया था, क्योंकि उन्होंने एक पार्टी आयोजित की थी, जिसमें उन्होंने कथित तौर पर विधायक हॉस्टल के लॉन में गोमांस परोसा था।
भाषा अमित नेत्रपाल
नेत्रपाल

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