दिल्ली उच्च न्यायालय ने रुश्दी की ‘द सैटेनिक वर्सेज’ पर प्रतिबंध के खिलाफ याचिका बंद की

दिल्ली उच्च न्यायालय ने रुश्दी की 'द सैटेनिक वर्सेज' पर प्रतिबंध के खिलाफ याचिका बंद की

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  • Publish Date - November 7, 2024 / 06:40 PM IST,
    Updated On - November 7, 2024 / 06:40 PM IST

नयी दिल्ली, सात नवंबर (भाषा) दिल्ली उच्च न्यायालय ने 1988 में सलमान रुश्दी के विवादास्पद उपन्यास “द सैटेनिक वर्सेज” के आयात पर प्रतिबंध लगाने के तत्कालीन राजीव गांधी सरकार के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका का निस्तारण कर दिया। न्यायालय ने कहा कि चूंकि अधिकारी संबंधित अधिसूचना पेश करने में विफल रहे हैं, इसलिए यह माना जाना चाहिए कि वह मौजूद ही नहीं है।

5 नवंबर को पारित आदेश में, न्यायमूर्ति रेखा पल्ली की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि याचिका, जो 2019 से लंबित थी, इसलिए निष्फल थी और याचिकाकर्ता कानून में उपलब्ध पुस्तक के संबंध में सभी कार्रवाई करने का हकदार होगा।।

केंद्र ने 1988 में कानून-व्यवस्था का हवाला देते हुए बुकर पुरस्कार विजेता लेखक की पुस्तक “द सैटेनिक वर्सेज” के आयात पर प्रतिबंध लगा दिया था, क्योंकि दुनिया भर के मुसलमानों ने इसे ईशनिंदा वाला माना था।

याचिकाकर्ता संदीपन खान ने अदालत में तर्क दिया था कि वह पुस्तक का आयात करने में असमर्थ हैं, क्योंकि 5 अक्टूबर 1988 को केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर एवं सीमा शुल्क बोर्ड द्वारा एक अधिसूचना जारी की गई थी, जिसमें सीमा शुल्क अधिनियम के अनुसार देश में इसके आयात पर प्रतिबंध लगा दिया गया था, लेकिन यह अधिसूचना न तो किसी आधिकारिक वेबसाइट पर उपलब्ध थी और न ही किसी संबंधित प्राधिकारी के पास थी।

पीठ ने कहा, “जो बात सामने आई है वह यह है कि कोई भी प्रतिवादी दिनांक 05-10-1988 की उक्त अधिसूचना प्रस्तुत नहीं कर सका, जिससे याचिकाकर्ता कथित रूप से व्यथित है और वास्तव में, उक्त अधिसूचना के कथित लेखक ने भी वर्तमान रिट याचिका के लंबित रहने के दौरान, इसके 2019 में दायर होने के बाद से, उक्त अधिसूचना की एक प्रति प्रस्तुत करने में अपनी असमर्थता जताई है।”

पीठ में न्यायमूर्ति सौरभ बनर्जी भी शामिल थे।

अदालत ने कहा, “उपर्युक्त परिस्थितियों के मद्देनजर, हमारे पास यह मानने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं है कि ऐसी कोई अधिसूचना मौजूद नहीं है, और इसलिए, हम इसकी वैधता की जांच नहीं कर सकते और रिट याचिका को निष्फल मानकर उसका निपटारा करते हैं।”

भाषा प्रशांत नरेश

नरेश