दिल्ली आबकारी नीति मामला: न्यायालय ने सिसोदिया की जमानत शर्तों में ढील दी |

दिल्ली आबकारी नीति मामला: न्यायालय ने सिसोदिया की जमानत शर्तों में ढील दी

दिल्ली आबकारी नीति मामला: न्यायालय ने सिसोदिया की जमानत शर्तों में ढील दी

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Modified Date: December 11, 2024 / 06:57 PM IST
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Published Date: December 11, 2024 6:57 pm IST

नयी दिल्ली, 11 दिसंबर (भाषा) आम आदमी पार्टी (आप) नेता एवं दिल्ली के पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया को दिल्ली आबकारी नीति से संबंधित भ्रष्टाचार एवं धन शोधन मामलों में सप्ताह में दो बार जांच अधिकारी के समक्ष उपस्थित होने की आवश्यकता नहीं होगी। उच्चतम न्यायालय ने सिसोदिया की जमानत शर्तों में बुधवार को ढील दे दी।

न्यायमूर्ति बी. आर. गवई और न्यायमूर्ति के. वी. विश्वनाथन की पीठ ने इन शर्तों को अनावश्यक बताते हुए इनमें ढील दे दी। पीठ ने कहा, ‘‘याचिकाकर्ता को सुनवाई में नियमित रूप से उपस्थित होना होगा।’’

उच्चतम न्यायालय ने 22 नवंबर को सिसोदिया की याचिका पर सुनवाई के लिए सहमति जतायी थी और केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) एवं प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) को नोटिस जारी करके उनसे जवाब मांगा था।

शीर्ष अदालत ने 9 अगस्त को कथित 2021-22 दिल्ली आबकारी नीति मामले से जुड़े दोनों मामलों में उन्हें जमानत दे दी थी और कहा था कि बिना मुकदमे के 17 महीने की लंबी कैद ने उन्हें त्वरित सुनवाई के उनके अधिकार से वंचित कर दिया।

इसके बाद उच्चतम न्यायालय ने शर्तें लगाईं, जिनमें प्रत्येक सोमवार और बृहस्पतिवार को सुबह 10 से पूर्वाह्न 11 बजे के बीच जांच अधिकारी के समक्ष उपस्थित होना भी शामिल था।

सिसोदिया के वकील ने 22 नवंबर को सुनवाई के दौरान दलील दी कि आप नेता जांच अधिकारियों के समक्ष 60 बार पेश हुए।

दिल्ली के पूर्व उपमुख्यमंत्री सिसोदिया को दिल्ली के कथित आबकारी नीति घोटाले से संबद्ध भ्रष्टाचार एवं धनशोधन मामलों में क्रमश: सीबीआई और ईडी ने गिरफ्तार किया था।

उन्हें अब रद्द कर दी गई दिल्ली आबकारी नीति 2021-22 को बनाने और उसे लागू करने में कथित अनियमितताओं के लिए 26 फरवरी, 2023 को सीबीआई ने गिरफ्तार किया था।

इसके अगले महीने, नौ मार्च 2023 को ईडी ने उन्हें सीबीआई की प्राथमिकी पर आधारित धनशोधन मामले में गिरफ्तार किया। सिसोदिया ने 28 फरवरी, 2023 को दिल्ली मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया था। उन्होंने खुद पर लगे आरोपों से इनकार किया है।

दोनों मामलों में सिसोदिया को जमानत देने के अपने नौ अगस्त के फैसले में उच्चतम न्यायालय ने कहा था कि अब समय आ गया है कि अधीनस्थ अदालतें और उच्च न्यायालय इस सिद्धांत को स्वीकार करें कि ‘‘जमानत नियम है और जेल अपवाद है।’’

उसने कहा, ‘‘हमारा मानना ​​है कि लगभग 17 महीने की लंबी अवधि तक कारावास में रहने और मुकदमा शुरू न होने के कारण अपीलकर्ता (सिसोदिया) को शीघ्र सुनवाई के अधिकार से वंचित किया गया है।’’

शीर्ष अदालत ने उन्हें 10 लाख रुपये का जमानती बॉण्ड और इतनी ही राशि की दो जमानतें देने का निर्देश दिया था।

भाषा प्रशांत अमित

अमित

 

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)

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