नयी दिल्ली, 17 जनवरी (भाषा) दिल्ली की एक अदालत ने नाबालिग से दुष्कर्म कर उसे गर्भवती करने के दोषी 60 वर्षीय सरकारी कर्मचारी को 12 वर्ष सश्रम कारावास की सजा सुनाई।
अदालत ने कहा कि अनुचित नरमी बरतने से पीड़िता का आपराधिक न्याय प्रणाली में विश्वास कम हो जाएगा।
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश सुशील बाला डागर ने यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम की धारा छह (गंभीर यौन उत्पीड़न) और दुष्कर्म के दंडात्मक प्रावधान के तहत दोषी ठहराये गये व्यक्ति के खिलाफ सजा पर दलीलें सुनने के बाद यह फैसला सुनाया।
अदालत ने कहा कि पितृसत्तात्मक समाज में हर कोई नाबालिग से यौन उत्पीड़न की घटना में पीड़िता को दोषी ठहराने की जल्दबाजी दिखाता है लेकिन इस तरह के मामलों में अपराधी को पूरी तरह से दोषी ठहराया जाना चाहिए।
अदालत ने कहा कि दंडात्मक सजा की गंभीरता बढ़ाने से इस तरह के अपराधों पर रोक लगने की संभावना नहीं है लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि दोषियों के प्रति ‘अनुचित नरमी’ बरती जाए, जिससे पीड़ित महिलाओं व नाबालिगों का आपराधिक न्याय प्रशासन में विश्वास कम होगा।
नाबालिग लड़की के पड़ोस में रहने वाले दोषी ने 2017 में बहला-फुसलाकर उससे शारीरिक संबंध बनाये, जिसके बाद वह गर्भवती हो गई।
पीड़िता ने जन्म देने के बाद शिशु को छोड़ दिया लेकिन बाद में उसे ढूंढकर अनाथालय में भर्ती किया गया।
अदालत ने 16 जनवरी को पारित आदेश में दोषी को 12 वर्ष सश्रम कारावास की सजा सुनाई और उसपर पांच लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया।
अतिरिक्त लोक अभियोजक योगिता कौशिक दहिया ने दलील दी कि शिशु को बिना किसी कारण के ‘सड़क पर फेंक दिया गया’ और दोषी को इस जघन्य कृत्य के लिए कोई रियायत नहीं मिलनी चाहिए।
भाषा जितेंद्र धीरज
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