नयी दिल्ली, 21 जनवरी (भाषा) दिल्ली की एक अदालत ने कथित तौर पर कुख्यात गिरोह का सदस्य होने के कारण महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम (मकोका) के तहत आरोपी बनाने के बाद हिरासत में लिए गए एक व्यक्ति को जमानत दे दी। अदालत ने कहा कि आरोपी राहत पाने की दो शर्तों को पूरा करता है।
मकोका के प्रावधानों के अनुसार, जमानत तभी दी जा सकती है जब अदालत के पास यह मानने का उचित आधार हो कि आरोपी दोषी नहीं है और जमानत पर रहते हुए उसके द्वारा कोई अन्य अपराध करने की संभावना नहीं है।
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश समीर बाजपेयी ने वाजिद उर्फ नेता की जमानत याचिका पर सुनवाई कर रहे थे, जिसके खिलाफ अपराध शाखा ने मामला दर्ज किया था।
अदालत ने 16 जनवरी के अपने आदेश में मुख्य आरोपी नासिर और दो अन्य सह-आरोपियों के बयानों पर गौर करने के बाद कहा कि संगठित अपराध गतिविधियों में वाजिद की ‘स्पष्ट संलिप्तता’ साबित करने के लिए कुछ भी नहीं था।
अदालत ने कहा, ‘‘जांच एजेंसी द्वारा रिकॉर्ड में प्रस्तुत सामग्री कमजोर है और यह कथित गिरोह की गतिविधियों में आवेदक की संलिप्तता को स्पष्ट रूप से नहीं दर्शाती है।’’
अदालत ने कहा कि ऐसी एक भी प्राथमिकी नहीं है जिसमें वाहिद गिरोह के अन्य सदस्यों के साथ संगठित अपराध गतिविधियों में शामिल रहा हो और यह माना जा सकता है कि वह भविष्य में किसी अपराध में शामिल नहीं होगा।
अदालत ने व्यक्ति को 50,000 रुपये का निजी मुचलका भरने और इतनी ही राशि का जमानतदार पेश करने का निर्देश दिया।
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