नयी दिल्ली, एक नवंबर (भाषा)दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि किसी निश्चित पद पर आसीन व्यक्ति के निर्णय कठोर हो सकते हैं और कर्मचारी पर प्रभाव डाल सकते हैं, लेकिन आपराधिक इरादे के अभाव में उसे कर्मचारी को आत्महत्या करने के लिए उकसाने का जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता।
न्यायमूर्ति अमित शर्मा ने यह टिप्पणी दिल्ली विश्वविद्यालय से संबद्ध बी आर आंबेडकर महाविद्यालय के पूर्व प्रधानाचार्य और प्रधानाचार्य कार्यालय में कार्यरत एक वरिष्ठ सहायक को संस्थान की एक महिला कर्मचारी को कथित तौर पर आत्महत्या के लिए उकसाने के 2013 के मामले में तलब करने के अधीनस्थ अदालत के आदेश को रद्द करते हुए की।
न्यायाधीश ने 29 अक्टूबर के अपने आदेश में लिखा,‘‘किसी निश्चित पद पर आसीन व्यक्ति फिर चाहे वह निजी क्षेत्र में हो या सार्वजनिक क्षेत्र में उसे अपने कर्तव्यों के दौरान कुछ ऐसे निर्णय लेने पड़ते हैं, जो कभी-कभी कठोर हो सकते हैं, जिससे कर्मचारी को परेशानी हो सकती है।’’
अदालत ने फैसले में कहा कि अपेक्षित आपराधिक मंशा के अभाव में, इस कार्रवाई को भारतीय दंड संहिता की धारा 306 के तहत उकसावे की कार्रवाई नहीं मानी जा सकती।
एकल पीठ ने कहा, ‘‘कोई निश्चित नियम नहीं हो सकता तथा प्रत्येक मामला उसके तथ्यों और परिस्थितियों पर निर्भर करेगा।’’
दोनों याचिकाकर्ताओं ने महाविद्यालय की पूर्व महिला कर्मचारी की मौत के संबंध में उन्हें तलब करने के अधीनस्थ अदालत के 2014 के आदेश को चुनौती देते हुए उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था। महिला कर्मचारी ने 2013 में दिल्ली सचिवालय के सामने खुद को आग लगा ली थी, जिसके बाद उसकी झुलसने से मौत हो गई थी।
अधिकारियों को जांच के दौरान एक कथित सुसाइड नोट मिला था जिसमें महिला ने आत्मदाह के कृत्य के लिए महाविद्यालय के प्रधानाचार्य, वरिष्ठ सहायक और अन्य लोगों द्वारा किए गए मानसिक और शारीरिक उत्पीड़न को जिम्मेदार ठहराया था।
भाषा धीरज रंजन
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