नयी दिल्ली, चार नवंबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को कहा कि अगर केंद्र पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री बेअंत सिंह की हत्या के मामले में मौत की सजा का सामना कर रहे बलवंत सिंह राजोआना की दया याचिका पर फैसला नहीं करता है तो शीर्ष अदालत इस पर विचार करेगी।
चंडीगढ़ में सिविल सचिवालय के प्रवेश द्वार पर 31 अगस्त 1995 को विस्फोट कर पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री बेअंत सिंह और 16 अन्य लोगों की हत्या कर दी गई थी। इस मामले में जुलाई 2007 में एक विशेष अदालत ने राजोआना को मौत की सजा सुनाई थी।
न्यायमूर्ति बी आर गवई, न्यायमूर्ति पी के मिश्रा और न्यायमूर्ति के वी विश्वनाथन की पीठ ने पंजाब पुलिस के पूर्व कांस्टेबल की दया याचिका पर निर्णय लेने में ‘‘अत्यधिक देरी’’ के कारण उसकी मौत की सजा को उम्रकैद में बदलने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई दो सप्ताह के लिए टाल दी।
केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत से कहा कि राजोआना की दया याचिका राष्ट्रपति के पास लंबित है।
न्यायालय ने इस पर कहा, ‘‘इस पर किसी भी तरह से फैसला करें, अन्यथा हम इस पर (राजोआना की याचिका पर) विचार करेंगे।’’
राजोआना की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने कहा कि वह 29 साल से लगातार हिरासत में है और उसकी दया याचिका पर फैसला होने तक उसे रिहा किया जाना चाहिए।
रोहतगी ने कहा, ‘‘उसकी (राजोआना) दया याचिका पिछले 12 वर्षों से राष्ट्रपति भवन में लंबित है। कृपया उसे छह या तीन महीने के लिए रिहा कर दें। कम से कम उसे देखने दें कि बाहरी दुनिया कैसी दिखती है।’’
पंजाब सरकार ने पीठ को सूचित किया कि उसे मामले में अपना जवाबी हलफनामा दाखिल करने के लिए कुछ समय चाहिए।
मेहता ने यह भी कहा कि राजोआना को पंजाब के मुख्यमंत्री की हत्या के मामले में दोषी ठहराया गया था और उन्हें इस मुद्दे पर निर्देश लेने की जरूरत है।
पीठ ने रोहतगी से कहा, ‘‘हम उन्हें जवाबी हलफनामा दाखिल करने के लिए दो सप्ताह का समय देंगे। हमें उनका जवाब देखना होगा।’’
शीर्ष अदालत ने 25 सितंबर को राजोआना की याचिका पर केंद्र, पंजाब सरकार और केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़ के प्रशासन से जवाब मांगा था।
चंडीगढ़ में सिविल सचिवालय के प्रवेश द्वार पर 31 अगस्त 1995 को हुए विस्फोट में पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री और 16 अन्य लोग मारे गए थे।
जुलाई 2007 में एक विशेष अदालत ने राजोआना को मौत की सजा सुनाई थी।
राजोआना ने कहा है कि मार्च 2012 में उसकी ओर से शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक समिति (एसजीपीसी) द्वारा संविधान के अनुच्छेद 72 के तहत दया याचिका दायर की गई थी।
पिछले साल 3 मई को शीर्ष अदालत ने उसकी मौत की सजा को कम करने से इनकार कर दिया था और कहा था कि सक्षम प्राधिकार उसकी दया याचिका पर विचार कर सकता है।
भाषा नेत्रपाल मनीषा
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