महिला और पुरुष के लिए क्रूरता का अर्थ अलग-अलग हो सकता है: उच्चतम न्यायालय

महिला और पुरुष के लिए क्रूरता का अर्थ अलग-अलग हो सकता है: उच्चतम न्यायालय

महिला और पुरुष के लिए क्रूरता का अर्थ अलग-अलग हो सकता है: उच्चतम न्यायालय
Modified Date: September 7, 2023 / 07:23 pm IST
Published Date: September 7, 2023 7:23 pm IST

नयी दिल्ली, सात सितंबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि महिला और पुरुष के लिए क्रूरता का अर्थ अलग-अलग हो सकता है तथा अदालतों को उन मामलों में व्यापक दृष्टिकोण अपनाना चाहिए जिनमें पत्नी तलाक चाहती है।

न्यायालय ने कहा कि किसी मामले में एक महिला के लिए जो क्रूरता है वह एक पुरुष के लिए क्रूरता नहीं हो सकती और जब कोई अदालत इस तरह के मामले की सुनवाई करती है जिसमें पत्नी तलाक चाहती है, तो व्यापक दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता होती है।

इसने महिला को तलाक की डिक्री देते हुए यह टिप्पणी की।

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न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति एम. एम. सुंदरेश की पीठ ने कहा कि हिंदू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 13(1)(आईए) के तहत ‘क्रूरता’ शब्द का कोई निश्चित अर्थ नहीं है, इसलिए यह न्यायालय को इसे ‘‘उदारतापूर्वक और प्रासंगिक रूप से’’ लागू करने का व्यापक दृष्टिकोण देता है।

पीठ ने कहा कि हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13(1) और 13(1ए) तलाक देने के लिए क्रूरता सहित विभिन्न आधार प्रदान करती है।

इसने कहा कि एक के लिए जो क्रूरता है, वह दूसरे के लिए समान नहीं हो सकती। पीठ ने कहा, ‘‘इसलिए, किसी मामले में एक महिला के लिए जो क्रूरता है वह एक पुरुष के लिए क्रूरता नहीं हो सकती, और जब हम उस मामले से निपटते हैं जिसमें कोई पत्नी तलाक चाहती है तो अपेक्षाकृत अधिक लचीलापूर्ण और व्यापक दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता होती है।’’

बुधवार को फैसला सुनाने वाली पीठ ने महिला की ओर से पेश वकील दुष्यन्त पाराशर की दलील पर गौर किया, जिसमें क्रूरता के आधार पर तलाक का अनुरोध किया गया था और दावा किया गया था कि उसके पति ने उसके चरित्र पर संदेह जताया।

पाराशर ने दलील दी कि उच्च न्यायालय और निचली अदालत दोनों ने तलाक देने से इनकार करके गलती की है।

पीठ ने कहा कि मामले के तथ्य खुद बयां करते हैं।

इस दंपती की शादी साल 2002 में हुई थी। उनके बच्चे के जन्म के बाद रिश्ते में खटास आ गई। वर्ष 2006 से दोनों के बीच विवाद शुरू हो गया।

पीठ ने कहा कि महिला के पति ने दावा किया था कि उसकी पत्नी ने उसके घर को छोड़ दिया और उसने पत्नी की चिकित्सीय जांच का अनुरोध किया था।

इसने कहा कि उसने आरोप लगाया गया था कि उसकी पत्नी परपुरुष के साथ संबंध में थी और उसने गैर-सहवास की अवधि के दौरान एक बच्चे को जन्म दिया।

पीठ ने कहा कि इस अनुरोध को उच्च न्यायालय ने खारिज कर दिया और दंपती डेढ़ दशक से अलग रह रहा है।

इसने कहा कि निचली अदालत और उच्च न्यायालय ने तलाक की डिक्री को अस्वीकार करने में ‘अति-तकनीकी दृष्टिकोण’’ अपनाया।

उच्चतम न्यायालय ने निचली अदालत और छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के आदेश को रद्द करते हुए पत्नी को तलाक की डिक्री दे दी।

शीर्ष अदालत ने कहा कि अदालतों को यह भी ध्यान में रखना चाहिए कि जिस घर को रहने के लिए एक खुशहाल और प्यारी जगह माना जाता है, वह उस वक्त दुख और पीड़ा का एक स्रोत बन जाता है जहां दंपती आपस में लड़ते हैं।

भाषा

देवेंद्र नेत्रपाल

नेत्रपाल


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