अदालत ने तीन ब्रिटिश नागरिकों की हत्या के मामले में छह लोगों को बरी करने के फैसले को बरकरार रखा

अदालत ने तीन ब्रिटिश नागरिकों की हत्या के मामले में छह लोगों को बरी करने के फैसले को बरकरार रखा

अदालत ने तीन ब्रिटिश नागरिकों की हत्या के मामले में छह लोगों को बरी करने के फैसले को बरकरार रखा
Modified Date: April 2, 2025 / 03:50 pm IST
Published Date: April 2, 2025 3:50 pm IST

अहमदाबाद, दो अप्रैल (भाषा) गुजरात उच्च न्यायालय ने गोधरा ट्रेन अग्निकांड के बाद भड़के 2002 के दंगों के दौरान तीन ब्रिटिश नागरिकों की हत्या के मामले में छह लोगों को बरी करने संबंधी सत्र न्यायालय के आदेश को बरकरार रखा है।

न्यायमूर्ति ए वाई कोगजे और न्यायमूर्ति समीर जे दवे की खंडपीठ ने छह मार्च को यह आदेश पारित किया और यह हाल में उपलब्ध हुआ।

उच्च न्यायालय ने गवाहों और जांच अधिकारी के बयानों पर विचार किया और पाया कि उसे 27 फरवरी, 2015 को हिम्मतनगर में साबरकांठा के प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीश द्वारा पारित फैसले और बरी करने के आदेश में हस्तक्षेप करने का कोई कारण नजर नहीं आया।

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इसने कहा कि सत्र न्यायालय ने बचाव पक्ष की इस दलील को स्वीकार करने से पहले साक्ष्य और प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफआईआर) पर विचार किया था कि गवाह द्वारा आरोपियों का दिया गया विवरण केवल उसकी ऊंचाई, कपड़ों और अनुमानित उम्र के बारे में था।

अदालत ने कहा, ‘‘यहां तक ​​कि प्राथमिकी में भी आरोपियों का कोई विवरण नहीं दिया गया था। इसलिए, सत्र न्यायालय ने सही निष्कर्ष निकाला है कि ऐसी पहचान दोषसिद्धि का एकमात्र आधार नहीं हो सकती।’’

साबरकांठा जिले के हिम्मतनगर में सत्र न्यायालय ने आरोपियों को बरी किये जाने के खिलाफ अपील को खारिज करते हुए कहा कि प्रत्येक आरोपी पर एफएसएल (फोरेंसिक विज्ञान प्रयोगशाला) रिपोर्ट का निष्कर्ष उन्हें संदिग्ध होने से दोषमुक्त करता है। साथ ही, जांच की शुरूआत एक गुमनाम फैक्स संदेश पर आधारित थी, न कि किसी प्रत्यक्षदर्शी के साक्ष्य के आधार पर।

उच्चतम न्यायालय द्वारा नियुक्त विशेष जांच दल (एसआईटी) ने 2002 में भारत दौरे पर आए तीन ब्रिटिश नागरिकों की हत्या के लिए छह व्यक्तियों मिठनभाई चंदू उर्फ ​​प्रहलाद पटेल, रमेश पटेल, मनोज पटेल, राजेश पटेल और कलाभाई पटेल पर मुकदमा चलाया था।

शिकायतकर्ता इमरान मोहम्मद सलीम दाऊद के अनुसार, 28 फरवरी, 2002 को वह और उसके दो रिश्तेदार सईद सफीक दाऊद और सकील अब्दुल हई दाऊद, तथा एक अन्य व्यक्ति मोहम्मद नल्लाभाई अब्दुलभाई असवार (सभी ब्रिटिश नागरिक), अपने चालक यूसुफ के साथ आगरा और जयपुर की यात्रा पूरी करने के बाद कार से वापस आ रहे थे, तभी शाम लगभग छह बजे भीड़ ने उनके वाहन को रोक लिया और उन पर हमला कर दिया।

शिकायतकर्ता के अनुसार जब वे भागने की कोशिश कर रहे थे तो भीड़ ने असवार और स्थानीय चालक पर हमला कर दिया और उनके वाहन में आग लगा दी।

उनके अनुसार चालक की मौके पर ही मौत हो गई, जबकि असवार को अस्पताल में मृत घोषित कर दिया गया। शिकायतकर्ता के रिश्तेदारों सईद सफीक दाऊद और सकील अब्दुल हई दाऊद की भी मौत हो गई।

इसके बाद, ब्रिटेन से उनके रिश्तेदारों ने तत्कालीन ब्रिटिश उप-उच्चायुक्त और प्रांतिज पुलिस थाने के पुलिसकर्मियों के साथ उस स्थान का दौरा किया जहां वाहन जलाया गया था, और वहां हड्डियों के छोटे-छोटे टुकड़े पाए, जिन्हें मुंबई में ब्रिटिश उप-उच्चायोग और वहां से हैदराबाद में फोरेंसिक प्रयोगशाला भेजा गया।

तत्कालीन ब्रिटिश उप उच्चायुक्त को 24 मार्च 2002 को एक ‘‘ गुमनाम फैक्स’’ प्राप्त हुआ, जिसमें प्रवीणभाई जीवाभाई पटेल नामक व्यक्ति का नाम ‘‘50-100 व्यक्तियों की भीड़’’ में शामिल बताया गया था, जिसने कथित तौर पर शिकायतकर्ता के रिश्तेदारों की हत्या की थी।

तत्कालीन ब्रिटिश उप उच्चायुक्त ने अपीलकर्ता के रिश्तेदारों की हत्या की जांच के लिए गुजरात के तत्कालीन पुलिस महानिदेशक को पत्र लिखा था।

इसके बाद, उच्चतम न्यायालय ने 2003 में गुजरात सरकार को 2002 के नौ दंगों के मामलों में विशेष जांच दल गठित करने का निर्देश दिया था जिसमें यह मामला भी शामिल था।

भाषा

देवेंद्र नरेश

नरेश


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