लोकपाल को उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों के खिलाफ मामले सुनने के क्षेत्राधिकार पर न्यायालय करेगा पड़ताल

लोकपाल को उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों के खिलाफ मामले सुनने के क्षेत्राधिकार पर न्यायालय करेगा पड़ताल

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  • Publish Date - March 18, 2025 / 08:04 PM IST,
    Updated On - March 18, 2025 / 08:04 PM IST

नयी दिल्ली, 18 मार्च (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को कहा कि वह उच्च न्यायालय के वर्तमान न्यायाधीशों के खिलाफ शिकायतों पर विचार करने में भ्रष्टाचार रोधी संस्था लोकपाल के अधिकार क्षेत्र के मुद्दे की पड़ताल करेगा।

न्यायमूर्ति बी आर गवई, न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति अभय एस ओका की तीन न्यायाधीशों की विशेष पीठ इस मुद्दे पर 27 जनवरी के आदेश पर स्वतः संज्ञान लेकर शुरू की गई कार्यवाही पर विचार कर रही है।

पीठ ने मामले की सुनवाई 15 अप्रैल के लिए निर्धारित करते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता रंजीत कुमार को इस मामले में न्यायमित्र के रूप में सहायता करने को कहा। केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि मुद्दा यह है कि क्या लोकपाल को अधिकार क्षेत्र है।

न्यायमूर्ति गवई ने कहा, ‘‘हम केवल लोकपाल अधिनियम के तहत अधिकार क्षेत्र के संबंध में ही इस मुद्दे पर विचार करेंगे।’’

उच्चतम न्यायालय ने 20 फरवरी को लोकपाल के आदेश पर रोक लगाते हुए कहा था कि यह ‘‘कुछ बहुत ही परेशान करने वाला’’ है और न्यायपालिका की स्वतंत्रता से संबंधित है।

इसने नोटिस जारी करके केंद्र, लोकपाल रजिस्ट्रार और शिकायतकर्ता से जवाब मांगा था।

मेहता ने पहले कहा था कि उच्च न्यायालय के न्यायाधीश लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम, 2013 के दायरे में नहीं आते।

लोकपाल ने एक उच्च न्यायालय के वर्तमान अतिरिक्त न्यायाधीश के खिलाफ दायर दो शिकायतों पर यह आदेश पारित किया था।

मंगलवार को शिकायतकर्ता उच्चतम न्यायालय के समक्ष पेश हुए और कहा कि उन्होंने अपनी दलीलों के समर्थन में हलफनामा दाखिल किया है। उन्होंने कहा, ‘मैं चाहता हूं कि लोकपाल और न्यायपालिका का सम्मान हो।’

पीठ ने शिकायतकर्ता से सवाल किया कि क्या वह कानूनी सहायता वकील की सेवा लेंगे।

शिकायतकर्ता ने किसी भी तरह की कानूनी सहायता से इनकार किया और कहा कि हलफनामे में उनके बयानों का पहले ही उल्लेख किया जा चुका है।

मामले में कानून के एक महत्वपूर्ण प्रश्न की ओर इशारा करते हुए मेहता ने कहा, ‘‘मेरे विचार से, लोकपाल अधिनियम की केवल एक धारा की पड़ताल की जानी है।’

जब पीठ ने कहा कि लोकपाल के रजिस्ट्रार द्वारा जवाबी हलफनामा दाखिल किया गया है, तो मेहता ने कहा कि यह लगभग ‘आदेश का दोहराव’ है।

पीठ ने कहा कि न्यायाधीशों के खिलाफ शिकायतों से निपटने के लिए पहले से ही एक तंत्र मौजूद है।

वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल अदालत की सहायता भी कर रहे हैं। उन्होंने कहा, ‘मूल मुद्दा यह होगा कि क्या संवैधानिक प्राधिकार के अधिकार क्षेत्र से बाहर कभी भी शिकायत दर्ज की जा सकती है।’

पीठ ने कहा कि मामले पर निर्णय से पहले कुमार शिकायतकर्ता के बयानों और अन्य सामग्रियों को समग्र दृष्टिकोण से देखेंगे।

मेहता ने अपने लिखित बयान दाखिल किए और दलील दी कि किसी भी उच्च न्यायालय को संसद के अधिनियम द्वारा ‘स्थापित’ नहीं कहा जा सकता है क्योंकि भारत के संविधान द्वारा अनिवार्य संवैधानिक योजना के तहत प्रत्येक उच्च न्यायालय को अस्तित्व में लाया गया।

सॉलिसिटर जनरल ने इसलिए लोकपाल के आदेश को रद्द करने का अनुरोध किया। उन्होंने कहा कि सभी उच्च न्यायालयों को संविधान के अनुच्छेद 214 के तहत स्थापित संवैधानिक अदालत माना जाना चाहिए।

मेहता ने कहा कि यह कानून का एक स्थापित प्रस्ताव है कि किसी उच्च न्यायालय का न्यायाधीश संवैधानिक पद का धारक होता है और उसे सरकार का ‘कर्मचारी’ नहीं माना जा सकता।

उच्चतम न्यायालय के एक फैसले का हवाला देते हुए मेहता ने कहा कि यह माना गया था कि किसी उच्च न्यायालय का न्यायाधीश एक विशिष्ट पद पर होता है और एक संवैधानिक पद पर होता है।

लोकपाल के आदेश में कहा गया था कि उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश लोकपाल के अधिकार क्षेत्र के अधीन नहीं हैं क्योंकि उच्चतम न्यायालय का गठन संविधान के अनुच्छेद 124 द्वारा किया गया था, न कि संसद के अधिनियम के तहत।

मेहता ने कहा, ‘‘यही समानता उच्च न्यायालयों के मामले में भी लागू होनी चाहिए, न केवल अनुच्छेद 214 के कारण बल्कि उच्च न्यायालय के संबंध में संविधान के अन्य प्रावधानों के कारण भी, जो उच्चतम न्यायालय के संबंध में प्रावधान के समान हैं।’’

उन्होंने कहा कि उच्च न्यायालय का न्यायाधीश 2013 अधिनियम के दायरे में नहीं आ सकता।

उच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश पर आरोप लगाया गया था कि उन्होंने एक निजी कंपनी द्वारा शिकायकर्ता के खिलाफ दायर मुकदमे की सुनवाई कर रहे उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को और निचली अदालत के न्यायाधीश को उस कंपनी के पक्ष में प्रभावित किया।

लोकपाल ने अपने आदेश में कहा था कि इन दोनों मामलों में रजिस्ट्री में प्राप्त विषयगत शिकायतें और संबद्ध सामग्री भारत के प्रधान न्यायाधीश के कार्यालय को उनके विचारार्थ भेजी जाए।

भाषा अमित सुभाष

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