नयी दिल्ली, तीन दिसंबर (भाषा) दिल्ली उच्च न्यायालय ने विभिन्न वर्गों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देने के कथित मामले में कार्यकर्ता नदीम खान को छह दिसंबर तक गिरफ्तारी से संरक्षण प्रदान करते हुए मंगलवार को रेखांकित किया कि राष्ट्र की सद्भावना इतनी कमजोर नहीं है।
न्यायमूर्ति जसमीत सिंह ने मौखिक रूप से टिप्पणी की कि राष्ट्र की सद्भावना “कमजोर” नहीं है और आम आदमी की बुद्धिमत्ता पर “विश्वास” किया जाना चाहिए।
न्यायमूर्ति सिंह ने कहा, “हम एक लोकतांत्रिक देश में हैं। देश की सद्भावना इतनी कमजोर नहीं है। आम आदमी इतना कमजोर नहीं है कि महज एक प्रदर्शन से उसका विश्वास डगमगा जाए।”
न्यायाधीश ने कहा,“देश को अपने मौलिक अधिकारों पर बहुत गर्व है। अनुच्छेद 19(1)(ए) की रक्षा की जानी चाहिए। अगर आपको लगता है कि इससे आम आदमी भड़क जाएगा, तो आम आदमी के पास यह पहचानने के लिए समझ (आईक्यू) नहीं है कि उसके लिए क्या सही है… कृपया आम आदमी पर थोड़ा भरोसा रखें।”
खान की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल उपस्थित हुए और दलील दी कि प्राथमिकी दुर्भावनापूर्ण है।
उन्होंने कहा कि प्राथमिकी में किसी संज्ञेय अपराध के बारे में जानकारी नहीं दी गई है और यह बिना किसी आधार के केवल अनुमान पर आधारित है।
पुलिस के वकील ने आरोप लगाया कि याचिकाकर्ता “देश के अंदर युद्ध छेड़ने की कोशिश कर रहा है” और अगर वह गिरफ्तारी से सुरक्षा चाहता है तो उसे अग्रिम जमानत याचिका दायर करनी चाहिए थी।
इसके बाद न्यायाधीश ने 30 नवंबर को दर्ज प्राथमिकी को रद्द करने की मांग वाली खान की याचिका पर दिल्ली पुलिस को नोटिस जारी किया और उनसे जांच में शामिल होने तथा जांच अधिकारी की अनुमति के बिना राष्ट्रीय राजधानी नहीं छोड़ने को कहा।
अदालत ने आदेश दिया, “प्राथमिकी शिकायतकर्ता की राय पर आधारित है। राय का आधार बनने वाली सामग्री मेरे सामने नहीं रखी गई है और इसे प्रतिवादी द्वारा दायर किए जाने वाले जवाब और आज तक एकत्र की गई सामग्री के साथ रखा जाएगा। उक्त कारण से और सुनवाई की अगली तारीख तक याचिकाकर्ता को गिरफ्तार नहीं किया जाएगा।”
अदालत ने मामले की सुनवाई की अगली तारीख छह दिसंबर तय की है।
पुलिस ने खान के खिलाफ एक “वायरल वीडियो” को लेकर प्राथमिकी दर्ज की, जो कथित तौर पर दुश्मनी पैदा कर रहा था और कभी भी हिंसा का कारण बन सकता था।
भाषा नोमान नरेश
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