अदालत ने आतिशी के खिलाफ भाजपा नेता का मानहानि मामला खारिज किया

अदालत ने आतिशी के खिलाफ भाजपा नेता का मानहानि मामला खारिज किया

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  • Publish Date - January 28, 2025 / 09:54 PM IST,
    Updated On - January 28, 2025 / 09:54 PM IST

नयी दिल्ली, 28 जनवरी (भाषा) दिल्ली की एक अदालत ने मंगलवार को कहा कि मुख्यमंत्री आतिशी की ओर से लगाए गए आरोप राजनीतिक भ्रष्टाचार के संबंध में अभिव्यक्ति की आजादी के अधिकार के इस्तेमाल के समान हैं और इनसे मानहानि नहीं होती। इसी के साथ अदालत ने आतिशी के खिलाफ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के एक नेता की मानहानि याचिका खारिज कर दी।

विशेष न्यायाधीश विशाल गोगने ने कहा, ‘आतिशी की ओर से लगाए गए आरोप वास्तव में एक संभावित आपराधिक कृत्य के संबंध में विशिष्ट जानकारी की प्रकृति के थे…।’

यह आदेश आम आदमी पार्टी (आप) की वरिष्ठ नेता आतिशी द्वारा मजिस्ट्रेट अदालत के आदेश के खिलाफ दायर याचिका पर आया। मजिस्ट्रेट अदालत ने भाजपा की दिल्ली इकाई के प्रवक्ता प्रवीण शंकर कपूर की शिकायत पर आतिशी को समन जारी किया था।

न्यायमूर्ति गोगने ने कहा, ‘आतिशी की ओर से लगाए गए आरोप राजनीतिक भ्रष्टाचार के संबंध में अभिव्यक्ति की आजादी के अधिकार के इस्तेमाल के समान हैं और भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 500 के तहत मानहानि नहीं करते। आतिशी के उक्त आरोप चुनावी बांड मामले और उच्च न्यायालय के अन्य फैसलों में स्वीकृत नागरिकों के वोट के अधिकार के एक हिस्से के रूप में जानने के अधिकार को भी सक्रिय करते हैं।’

अदालत ने कहा कि आतिशी एक ‘व्हिसलब्लोअर’ की भूमिका में थीं और यह नहीं माना जा सकता कि उन्होंने भाजपा को बदनाम किया। उसने कहा कि कपूर की शिकायत ‘आपराधिक जांच को विफल करने और अभिव्यक्ति की आजादी के साथ-साथ जानने के अधिकार को दबाने का प्रयास’ थी।

न्यायमूर्ति गोगने ने कहा, ‘आतिशी की ओर से ट्वीट और संवाददाता सम्मेलन के माध्यम से लगाए गए आरोप एक आपराधिक कृत्य का खुलासा करने और गुण-दोष आधारित जांच की मांग करने की प्रकृति के थे। आतिशी की भूमिका व्हिसिलब्लोअर की थी और यह नहीं माना जा सकता कि उन्होंने भाजपा को बदनाम किया।’

उन्होंने कहा, ‘अगर उनकी ओर से लगाए गए आरोपों में साक्ष्य जितना दम होता, तो जांच अधिकारियों को इनकी जांच करनी होती। लेकिन इसके विपरीत ये राजनीतिक प्रकृति के आरोप हैं, जिनका जवाब अदालतों के कठघरे के बजाय चुनावी सभाओं के दौरान दिया जाना ज्यादा उचित है।’

न्यायमूर्ति गोगने ने कहा कि यह पता लगाना जांच अधिकारियों का काम है कि क्या आतिशी द्वारा लगाए गए आरोपों में सबूतों जितना दम है। उन्होंने कहा कि वैसे ये ‘राजनीतिक प्रकृति के आरोप हैं, जिनका जवाब अदालतों के कठघरे के बजाय चुनावी सभा में दिया जाना चाहिए।’

कपूर ने अपनी शिकायत में आरोप लगाया था कि आतिशी ने पिछले साल 27 जनवरी को और फिर दो अप्रैल को भाजपा के खिलाफ बेबुनियाद आरोप लगाए थे कि पार्टी ‘आप’ के विधायकों से संपर्क कर रही है और पाला बदलने के लिए उन्हें 20-25 करोड़ रुपये की पेशकश कर रही है।

शिकायत में पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को भी आरोपी बनाया गया था। हालांकि, मजिस्ट्रेट अदालत ने 28 मई 2024 को पारित आदेश में कहा था कि केजरीवाल के खिलाफ सुनवाई के लिए पर्याप्त आधार नहीं मिला है।

न्यायमूर्ति गोगने ने कहा कि आतिशी ने केजरीवाल के ट्वीट के आधार पर संवाददाता सम्मेलन बुलाया था। उन्होंने कहा, ‘यह काफी चौंकाने वाली बात है कि जिन आरोपों में केजरीवाल को तलब न किए जाने का फैसला लिया गया, उन्हीं आरोपों को दोबारा पोस्ट किए जाने पर उनकी सहयोगी आतिशी को समन जारी कर दिया गया।’

न्यायमूर्ति गोगने ने कहा, ‘परिणामस्वरूप विवादित आदेश मौजूदा मुद्दे की जड़ यानी कथित मानहानिकारक बयान की प्रकृति तक जाने के बजाय भौतिक त्रुटि और असंगति से ग्रस्त है।’

उन्होंने कहा कि इससे भी अधिक चौंकाने वाली बात है कपूर का रुख, जिन्होंने केजरीवाल को तलब न करने के फैसले को चुनौती नहीं दी।

न्यायाधीश ने कहा कि समन-पूर्व साक्ष्य आतिशी को आरोपी के रूप में तलब करने के लिए पर्याप्त आधार प्रस्तुत नहीं करते हैं।

अदालत ने भाजपा की आधिकारिक प्रतिक्रिया पर भी गौर किया, जो पार्टी की दिल्ली इकाई के अध्यक्ष वीरेंद्र सचदेवा की दिल्ली पुलिस आयुक्त से की गई शिकायत से साफ होती है, जिसमें आतिशी द्वारा लगाए गए आरोपों को लेकर भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत प्राथमिकी दर्ज करने की मांग की गई थी।

भाषा पारुल अविनाश

अविनाश