नयी दिल्ली, 19 नवंबर (भाषा) दिल्ली उच्च न्यायालय ने दिल्ली सरकार और पुलिस को राष्ट्रीय राजधानी में बम रखे होने की धमकियों और संबंधित आपात स्थितियों से निपटने के लिए विस्तृत मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) के साथ एक व्यापक कार्य योजना बनाने का निर्देश दिया है।
उच्च न्यायालय ने कहा कि एसओपी में कानून प्रवर्तन एजेंसियों, स्कूल प्रबंधन और नगर निगम अधिकारियों सहित सभी हितधारकों की भूमिकाओं और जिम्मेदारियों को स्पष्ट रूप से रेखांकित किया जाए ताकि निर्बाध समन्वय और कार्यान्वयन सुनिश्चित हो सके।
न्यायमूर्ति संजीव नरूला ने कहा कि फर्जी धमकियां, खासकर से डार्क वेब और वीपीएन जैसे तरीकों के माध्यम से दी जाने वाली धमकियां, सिर्फ दिल्ली या भारत तक ही सीमित नहीं हैं, बल्कि ये एक वैश्विक समस्या हैं, जो दुनिया भर में कानून प्रवर्तन एजेंसियों के लिए चुनौती बनी हुई हैं।
उच्च न्यायालय ने अधिकारियों को कई निर्देश जारी किए और शहर भर के विभिन्न स्कूलों को ईमेल के जरिए बम रखे होने की सूचनाएं बार-बार मिलने को लेकर दिल्ली सरकार और दिल्ली पुलिस की कथित निष्क्रियता और लापरवाह रवैये पर गंभीर चिंता जताने वाली याचिका का निस्तारण कर दिया।
याचिकाकर्ता एवं वकील अर्पित भार्गव की ओर से पेश अधिवक्ता बीनाशॉ एन सोनी ने कहा कि प्राधिकारियों द्वारा पर्याप्त एवं समय पर उपाय न किए जाने के कारण इन शैक्षणिक संस्थानों में बच्चों, शिक्षकों, कर्मचारियों एवं अन्य हितधारकों की सुरक्षा खतरे में पड़ गई।
अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता की यह उम्मीद कि ऐसे खतरों को पूरी तरह से समाप्त किया जा सकता है, एक आदर्शवाद को दर्शाती है जो आधुनिक दुनिया की वास्तविकताओं से मेल नहीं खाती।
पीठ ने कहा, “ इसके अलावा, कानून प्रवर्तन एजेंसियों को न सिर्फ घटनाओं की जांच करने का काम सौंपा गया है, बल्कि उभरते खतरों का पूर्वानुमान लगाने और उनसे आगे रहने की भी जिम्मेदारी दी गई – जो आज के डिजिटल युग में एक बड़ी चुनौती है।”
अदालत ने कहा, “ हालांकि इसमें कोई संदेह नहीं है कि एजेंसियों को अपराधियों का पता लगाने और कानून के तहत उन्हें जवाबदेह ठहराने का प्रयास करना चाहिए, लेकिन ऐसी धमकियों को पूरी तरह से रोकने के लिए एक अचूक तंत्र की उम्मीद करना अवास्तविक और अव्यावहारिक दोनों है।”
उच्च न्यायालय ने कहा, “ प्रतिवादी संख्या एक और दो को निवारण पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए तथा यह प्रदर्शित करना चाहिए कि ऐसे कृत्य करने वाले दण्डित होने से बचे नहीं, जिससे संभावित अपराधियों को यह स्पष्ट संदेश मिल सके कि उनके कृत्यों के गंभीर परिणाम होंगे।”
अदालत ने कहा, “इससे जनता का विश्वास बढ़ेगा और अन्य लोग ऐसी गतिविधियों में शामिल होने से बचेंगे।”
हालांकि, उच्च न्यायालय ने दोहराया कि ऐसी परिचालन रणनीतियों को कार्यपालिका के विवेक पर छोड़ देना ही बेहतर है, क्योंकि ऐसे तौर-तरीकों को निर्देशित करना अदालत के अधिकार क्षेत्र से बाहर है।
अदालत ने कहा, “ प्रतिवादियों को सभी संबंधित हितधारकों के परामर्श से तथा कानून प्रवर्तन, नगर निकाय के अधिकारियों और स्कूल प्रशासन के प्रतिनिधि निकायों सहित विभिन्न एजेंसियों के बीच समन्वित प्रयासों के माध्यम से बम की धमकियों से निपटने और संभावित आपदाओं को रोकने के लिए एक प्रभावी रणनीति तैयार करनी चाहिए।”
अदालत ने प्राधिकारियों से एक व्यापक कार्य योजना विकसित करने को कहा, जिसमें बम की धमकियों और संबंधित आपात स्थितियों से निपटने के लिए एक विस्तृत एसओपी शामिल हो।
इसने कहा कि एसओपी को शामिल करते हुए कार्ययोजना को अधिकारियों द्वारा स्कूलों, कानून प्रवर्तन एजेंसियों, संबंधित नगर निगम अधिकारियों और राज्य के अन्य विभागों के प्रतिनिधियों सहित सभी संबंधित हितधारकों के परामर्श से अंतिम रूप दिया जाएगा।
अदालत ने याचिकाकर्ता को अधिकारियों के समक्ष एक विस्तृत प्रतिवेदन प्रस्तुत करने की अनुमति दी, जिस पर कार्य योजना और एसओपी को अंतिम रूप देते समय अधिकारा विचार करेंगे।
इसने कहा कि अंतिम कार्ययोजना और एसओपी को सभी संबंधित पक्षों को दिया जाए। साथ ही प्रभावी कार्यान्वयन के लिए स्कूल के कर्मचारियों, छात्रों और अन्य हितधारकों को नियमित रूप से प्रशिक्षण भी दिया जाए।
दिल्ली पुलिस ने पहले अदालत को बताया था कि यहां 4,600 से अधिक स्कूलों के लिए कुल पांच बम निरोधक दस्ते (बीडीएस) और बम का पता लगाने वाली 18 टीम हैं।
शुरू में, याचिकाकर्ता ने 2023 में दिल्ली पब्लिक स्कूल (डीपीएस), मथुरा रोड में बम रखने होने की झूठी सूचना के मद्देनजर याचिका दायर की थी।
भाषा
नोमान माधव
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