नयी दिल्ली, 17 नवंबर (भाषा) उड़ीसा उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश एस मुरलीधर ने यहां कहा कि बीआर आंबेडकर ने जिस संवैधानिक नैतिकता की कल्पना की थी, वह सिर्फ कानून के मुताबिक चलने में नहीं, बल्कि रोजमर्रा की जिंदगी में उन सिद्धांतों के अनुसार जीवन जीने के बारे में है।
न्यायमूर्ति मुरलीधर ने शनिवार को न्यायमूर्ति अजय कुमार त्रिपाठी की स्मृति में आयोजित वार्षिक कार्यक्रम के तीसरे संस्करण को संबोधित करते हुए यह टिप्पणी की।
उन्होंने बढ़ती लोकप्रियता के समक्ष संवैधानिक मूल्यों को बनाए रखने के महत्व और सार्वजनिक जीवन में नैतिक मूल्यों की आवश्यकता पर भी जोर दिया।
भूटान में भारत के पूर्व राजदूत पवन वर्मा और वरिष्ठ अधिवक्ता महेश जेठमलानी ने भी कार्यक्रम को संबोधित किया।
इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में ‘‘शक्तियों का पृथक्करण और भारत के विचार’’ विषय पर ‘संवाद’ कार्यक्रम में भारतीय संवैधानिक ढांचे के भीतर शक्तियों के पृथक्करण की उभरती गतिशीलता पर चर्चा हुई।
वर्मा ने लोकतांत्रिक मूल्यों के घटते महत्व की ओर इशारा करते हुए कहा कि ‘शक्तियों का पृथक्करण अन्याय से सुरक्षा के रूप में किया गया था’।
उन्होंने कहा, “लेकिन फिर भी पिछले कुछ वर्षों में हमने कार्यकारी और विधायी शक्तियों के बीच चिंताजनक सम्मिलन देखा है, जिसके कारण अक्सर सत्ता पर एकाधिकार हो जाता है।”
न्यायमूर्ति मुरलीधर ने भारत में लोकतंत्र और संवैधानिक नैतिकता की अवधारणाओं पर विचार व्यक्त किया।
उन्होंने इस बात के आत्मनिरीक्षण की आवश्यकता पर बल दिया कि लोकतंत्र के स्तंभों और उसकी संस्थाओं से अपेक्षा करने से पहले ‘‘हम यह देखें कि हम अपने परिवारों और समुदायों में कितने लोकतांत्रिक’’ हैं।
न्यायमूर्ति मुरलीधर ने कहा, “डॉ. आंबेडकर ने जिस संवैधानिक नैतिकता की परिकल्पना की थी वह केवल कानून के मुताबिक चलने को लेकर नहीं, बल्कि रोजमर्रा की जिंदगी में उन सिद्धांतों के अनुसार जीवन जीने के बारे में है।”
उन्होंने कहा, “अगर मीडिया और निर्वाचन आयोग सहित सरकार के सभी निकाय ठीक उसी तरह काम करें, जिस तरह से उनसे काम करने की अपेक्षा की जाती है तो हम एक बेहतर लोकतंत्र और एक बेहतर भारत बन सकेंगे।”
भाषा जितेंद्र सुरेश
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