कांग्रेस ने सेबी प्रमुख के खिलाफ हितों के टकराव के नए आरोप लगाए, प्रधानमंत्री से मांगा स्पष्टीकरण

कांग्रेस ने सेबी प्रमुख के खिलाफ हितों के टकराव के नए आरोप लगाए, प्रधानमंत्री से मांगा स्पष्टीकरण

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  • Publish Date - September 2, 2024 / 04:01 PM IST,
    Updated On - September 2, 2024 / 04:01 PM IST

नयी दिल्ली, दो सितंबर (भाषा) कांग्रेस ने भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) की अध्यक्ष माधवी बुच के खिलाफ हितों के टकराव के नए आरोप लगाते हुए सोमवार को दावा किया कि इस बाजार नियामक की पूर्णकालिक सदस्य होते हुए भी वह आईसीआईसीआई बैंक से नियमित वेतन ले रही थीं और यह कुल राशि 16.80 करोड़ रुपये के करीब है।

पार्टी ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मंत्रिमंडल की नियुक्ति समिति (एसीसी) के प्रमुख के रूप में बुच की नियुक्ति के मामले में स्पष्टीकरण देने की भी मांग की।

यहां कांग्रेस मुख्यालय में एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए कांग्रेस के मीडिया और प्रचार विभाग के प्रमुख पवन खेड़ा ने कहा कि बुच 5 अप्रैल, 2017 से 4 अक्टूबर, 2021 तक सेबी की पूर्णकालिक सदस्य थीं और 2 मार्च, 2022 से इसकी अध्यक्ष हैं।

उन्होंने कहा, ‘‘माधबी पुरी बुच सेबी की पूर्णकालिक सदस्य होते हुए रेगुलर इनकम आईसीआईसीआई बैंक से ले रही थीं, जो कि 16.80 करोड़ रुपए था। वह आईसीआईसीआई प्रूडेंशियल, ईएसओपी और ईएसओपी का टीडीएस भी बैंक से ले रही थीं।’’

उन्होंने कहा, ‘‘यह सीधे-सीधे सेबी के सेक्शन-54 का उल्लंघन है। इसलिए अगर माधवी पुरी बुच में थोड़ी भी शर्म होगी तो उन्हें अपने पद से इस्तीफा दे देना चाहिए।’’

खेड़ा ने कहा कि यही नहीं, सेबी अध्यक्ष के हितों के टकराव के और भी कई मामले सामने आए हैं।

उन्होंने कहा कि 2021-2023 के बीच, वर्तमान सेबी अध्यक्ष को ईएसओपी पर टीडीएस भी प्राप्त हुआ था, जिसका भुगतान आईसीआईसीआई बैंक द्वारा 1.10 करोड़ रुपये किया गया था।

उन्होंने कहा कि टीडीएस की राशि वेतन के तहत ली जाती है और यह एक बार फिर सेबी की आचार संहिता का उल्लंघन है।

उन्होंने कहा, ‘‘यह आयकर चोरी का मामला है क्योंकि आईसीआईसीआई बैंक द्वारा ईएसओपी पर टीडीएस के रूप में भुगतान किया जाना एक शर्त है और इस पर भी कर लगाया जाना चाहिए। यह कर चोरी 50 लाख रुपये है।’’

खेड़ा ने आरोप लगाया कि साल 2017-2024 के बीच, पूर्णकालिक सदस्य के रूप में और बाद में सेबी अध्यक्ष के रूप में, उन्हें आईसीआईसीआई प्रूडेंशियल से 22.41 लाख रुपये की आय भी मिली।

उन्होंने कहा कि यह भी सेबी (कर्मचारी सेवा) नियमन, 2001 की धारा 54 का उल्लंघन है।

खेड़ा ने आरोप लगाया कि साल 2021-2023 के बीच, वर्तमान सेबी अध्यक्ष को आईसीआईसीआई बैंक से 2.84 करोड़ रुपये का ईएसओपी भी प्राप्त हुआ।

खेड़ा ने आरोप लगाया और कहा कि यह आईसीआईसीआई कर्मचारी स्टॉक स्वामित्व योजना 2000 की धारा दस का उल्लंघन है।

ईएसओपी पूर्ण रूप से कर्मचारी स्टॉक स्वामित्व योजना है। यह अनिवार्य रूप से एक प्रकार की प्रोत्साहन या मुआवजा योजना है जिसमें व्यक्ति किसी भी संगठन के कर्मचारी के रूप में, एक निर्धारित अवधि में अपनी कंपनी से इक्विटी अर्जित करने का विकल्प रखते हैं।

उन्होंने कहा, ‘‘सेबी को भारतीय मध्यम वर्ग की कड़ी मेहनत की कमाई की सुरक्षा का काम सौंपा गया है, जो सुरक्षित भविष्य की आशा में निवेश करने के लिए कड़ी मेहनत से हर पैसा बचाता है। फिर भी, जब लोग सेबी पर अपनी उम्मीदें लगाते हैं, जिसके अध्यक्ष की नियुक्ति सीधे भारत के प्रधानमंत्री द्वारा की जाती है, तो ऐसा लगता है कि वे हमें हमेशा धोखा देते रहे हैं।’’

कांग्रेस ने एक बयान में आरोप लगाया कि 2017 में सेबी में शामिल होने के समय से अब तक आईसीआईसीआई से सेबी अध्यक्ष को प्राप्त कुल राशि 16,80,22,143 रुपये है, जो इसी अवधि के दौरान सेबी से प्राप्त आय का 5.09 गुना अर्थात 3,30,28,246 रुपये है।

कांग्रेस के प्रभारी महासचिव जयराम रमेश ने कहा कि अदाणी समूह द्वारा प्रतिभूति कानूनों के उल्लंघन की नियामक संस्था की उच्चतम न्यायालय की जांच में सेबी अध्यक्ष के हितों के टकराव को लेकर गंभीर सवाल उठाए गए हैं।

उन्होंने ‘एक्स’ पर एक पोस्ट में कहा, ‘‘ऐसा लगता है कि इन सवालों को भारत सरकार ने यूं ही नजरअंदाज कर दिया है। अब चौंकाने वाले कदाचार का यह ताज़ा खुलासा हुआ है।’’

उन्होंने कहा, ‘‘नॉन बायोलॉजिकल प्रधानमंत्री, जो अपनी चुप्पी के माध्यम से सेबी अध्यक्ष को बचाने में लगे हैं, को स्पष्ट रूप से सामने आकर निम्न सवालों का जवाब देना चाहिए कि नियामक निकायों के प्रमुखों की नियुक्ति के लिए योग्यता के उपयुक्त मानदंड क्या हैं?’’

उन्होंने सवाल किया कि क्या प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली एसीसी ने सेबी अध्यक्ष को लेकर सामने आए इन चौंकाने वाले तथ्यों की जांच की है या एसीसी पूरी तरह से प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) को आउटसोर्स कर दी गई है?

उन्होंने कहा, ‘‘क्या प्रधानमंत्री को पता था कि सेबी के पूर्णकालिक सदस्य के रूप में मौजूदा सेबी अध्यक्ष आईसीआईसीआई और उसके संबद्ध संस्थाओं के खिलाफ शिकायतों का निपटारा कर रही थी और साथ ही साथ आईसीआईसीआई से आय भी प्राप्त कर रही थीं? मौजूदा सेबी अध्यक्ष को आईसीआईसीआई से ईएसओपी लाभ क्यों मिलते रहे, जबकि वे बहुत पहले ही खत्म हो चुके थे?’’

कांग्रेस नेता ने पूछा कि सेबी अध्यक्ष को कौन बचा रहा है और क्यों बचा रहा है?

उन्होंने कहा, ‘‘नॉन-बायोलॉजिकल प्रधानमंत्री यूं ही सवालों का जवाब दिए बिना नहीं बचे रह सकते हैं। वे आख़िर कब तक इन सवालों पर चुप्पी साधे रहेंगे। पूंजी बाजार में करोड़ों भारतीय अपना निवेश करते हैं। वे इसके नियामक से पूर्ण पारदर्शिता और इमानदारी की मांग करते हैं।’’

कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने आरोप लगाया कि प्रधानमंत्री मोदी ने 10 वर्षों से ‘अपने चंद पूंजीपति मित्रों’ की मदद के लिए भारत के संस्थानों की स्वायत्तता व स्वतंत्रता को ‘कुचलने’ की भरपूर कोशिश की है।

उन्होंने कहा, ‘‘हमने सीबीआई, ईडी, आरबीआई, सीईसी – ये सब में देखा, अब हम सेबी में भी यही झेल रहे हैं।’’

खरगे ने आरोप लगाया कि बिना किसी तफ्तीश के बुच की इस पद पर नियुक्ति से सेबी की साख पर ‘बदनुमा धब्बा’ लग गया है।

उन्होंने उच्चतम न्यायालय से इन नये खुलासों का संज्ञान लेने और सरकार से बुच को तत्काल बर्ख़ास्त करने तथा ‘अदाणी महाघोटाले’ की जेपीसी जांच की मांग की।

कांग्रेस के नए आरोप हिंडनबर्ग रिसर्च की उस रिपोर्ट के मद्देनजर आए हैं जिसमें आरोप लगाया गया था कि सेबी की अध्यक्ष बुच और उनके पति की कथित अदाणी धन हेराफेरी घोटाले में इस्तेमाल किए गए अस्पष्ट ‘विदेशी फंड’ में हिस्सेदारी थी।

सेबी अध्यक्ष बुच और उनके पति ने अपने खिलाफ लगाए गए आरोपों को निराधार बताया और जोर देकर कहा है कि उनका वित्तीय कामकाज एक खुली किताब है।

अदाणी समूह ने भी इन सभी आरोपों को सिरे से नकार दिया है।

भाषा ब्रजेन्द्र

ब्रजेन्द्र नरेश

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