नयी दिल्ली, 14 अक्टूबर (भाषा) जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाली अत्यधिक गर्मी और उमस अमेजन वर्षावन की ग्रीनहाउस गैस मीथेन को सोखने की क्षमता में 70 फीसदी कमी ला सकती है। ब्राजील स्थित साओ पाउलो विश्वविद्यालय के हालिया शोध में यह दावा किया गया है।
शोधकर्ताओं ने कहा कि गर्म जलवायु के कारण दक्षिण अमेरिका के अमेजन वर्षावन के कुछ हिस्सों में अत्यधिक बारिश होने, जबकि कुछ में सूखा पड़ने का अनुमान है, जिससे ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन और अवशोषण की उसकी क्षमता प्रभावित हो सकती है।
“पृथ्वी के फेफड़े” कहलाने वाले अमेजन वर्षावन का अधिकांश भाग ब्राजील में है, जबकि कुछ हिस्सा पेरू, कोलंबिया, इक्वाडोर और अन्य दक्षिण अमेरिकी देशों में पड़ता है। इन वर्षावनों को हवा में मौजूद ग्रीनहाउस गैसों को सोखने के लिहाज से काफी अहम माना जाता है।
शोधकर्ता ने कहा कि हालांकि, अमेजन वर्षावन का 20 फीसदी हिस्सा साल के लगभग छह महीने बाढ़ग्रस्त रहने के कारण मीथेन का उत्सर्जन करता है, जिससे ग्रीनहाउस गैसों को सोखने की उसकी क्षमता प्रभावित होती है। अध्ययन के नतीजे एक पत्रिका में प्रकाशित किए गए हैं।
पूर्व में हुए कुछ अध्ययनों से पता चला है कि वैश्विक स्तर पर आर्द्रभूमि से होने वाले कुल मीथेन उत्सर्जन में अमेजन वर्षावन के बाढ़ग्रस्त क्षेत्रों की लगभग 30 फीसदी हिस्सेदारी होती है।
प्रमुख शोधकर्ता जूलिया गोंटिजो ने कहा, “भले ही यह पहले भी देखा चुका है कि वायु तापमान और मौसमी बाढ़ जैसे कारक ऐसे क्षेत्रों में मीथेन के प्रवाह पर असर डालने वाले सूक्ष्मजीव समुदायों की आबादी को प्रभावित कर सकते हैं। लेकिन जलवायु परिवर्तन और अनुमानित चरम मौसम परिस्थितियों के संदर्भ में हमें क्या उम्मीद करनी चाहिए?”
शोध के लिए शोधकर्ताओं ने अमेजन के दो बाढ़ग्रस्त क्षेत्र और ऊंचाई वाले एक वन क्षेत्र से मिट्टी के नमूने लिए, जो मीथेन को अवशोषित करने के लिए जाने जाते हैं। इन नमूनों को अत्यधिक तापमान (27 डिग्री सेल्सियस और 30 डिग्री सेल्सियस) और तेज उमस के संपर्क में रखा गया।
शोधकर्ताओं ने पाया कि ऊंचाई वाले वन क्षेत्र से प्राप्त मिट्टी के नमूनों में गर्म और शुष्क परिस्थितियों में मीथेन सोखने की क्षमता में 70 फीसदी की कमी आई, जबकि भारी वर्षा की स्थिति में मीथेन उत्पादन में वृद्धि हुई, क्योंकि मिट्टी अत्यधिक उमस को झेलने में सक्षम नहीं थी।
उन्होंने कहा, “ऊंचाई वाले वन क्षेत्र में शुष्क परिस्थितियों में तापमान में वृद्धि के साथ (मीथेन) अवशोषण की क्षमता में औसतन 70 प्रतिशत की कमी देखी गई।”
गोंजिटो के मुताबिक, इसका मतलब यह है कि बाढ़ क्षेत्र का माइक्रोबायोम (किसी क्षेत्र में पाई जाने वाली सूक्ष्म जीवों की आबादी) खुद को जलवायु परिवर्तन के अनुकूल ढाल सकता है, लेकिन ऊंचाई वाले वन क्षेत्रों का माइक्रोबायोम इसके प्रभावों के प्रति संवेदनशील है, जिससे भविष्य में अमेजन वर्षावन की ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन और अवशोषण की क्षमता प्रभावित हो सकती है।
भाषा पारुल रंजन
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