रायपुरः Cheetah in India चीता हजारों बरसों से भारत के जंगलों में पाए जाते रहे हैं। चीता शब्द संस्कृत के चित्रक से आया है, जिसका अर्थ होता है चित्तीदार। भोपाल और गांधीनगर में नवपाषाण युग के गुफा चित्रों में भी चीते नजर आते हैं। आइए जानते हैं चीते के बारे में वो बातें जो शायद आप नहीं जानते होंगे।
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Cheetah in India चीता एक शानदार वन्यजीव है, जो बना है रफ्तार के लिए, लेकिन साल 1952 में आधिकारिक तौर पर भारत से चीते विलुप्त हो गए। कहते हैं 1556 से 1605 तक शासन करने वाले मुगल बादशाह अकबर के पास 1 हजार चीते थे। इनका इस्तेमाल वो काले हिरण और चिकारे के शिकार के लिएकिया जाता थे। किस्सा ये भी है कि अकबर के बेटे जहांगीर नेभी पाला के परगना में चीते के जरिये 400 से अधिक मृग पकड़े थे। शिकार के लिएचीतों को पकड़ने और कैद में रखने के कारण प्रजनन में आने वाली दिक्कतों केचलते इनकी आबादी में गिरावट आई। बीसवीं सदी की शुरुआत तक जब भारत से चीते तेजी से गायब होने लगे, तो देसी रियासतों ने पहली बार अफ्रीका के जंगलों से उनका आयात शुरू किया । 1918 से 1945 के बीच करीब 200 चीते यहां लाए गए, पर वो यहां फल-फूल पाते उससे पहले ही वो शिकार के भेट चढ़ गए ।
स्वतंत्र भारत में वन्यजीव बोर्ड नेअपनी पहली ही बैठक में चीतों को दोबारा लाने पर जोर लगाया । 1970 के दशक में एशियाई शेरों के बदले में एशियाई चीतों को भारत लाने केलिए ईरान के शाह के साथ बातचीत भी शुरू हुई पर वो परवान नहीं चढ़ पाया । चीतों को देश में लाने की कोशिशें साल 2009 में फिर से जिंदा हुईं। साल 2010 और 2012 के बीच दस जंगलों का सर्वे किया गया। आखिर में मध्य प्रदेश में कुनोराष्ट्रीय उद्यान को चीतों के नए घर के रूप में मंजूरी दी गई । चीतों की भारत वापसी इस लिहाज से बेहद अहम है..कि पिछले सवा सौ साल में चीता अकेला जंगली जानवर है, जो भारत सरकार के दस्तावेज़ों में विलुप्त घोषित किया गया। पंद्रहवीं-सोलहवीं सदी को भारत में चीतों का सुनहरा दौर माना जाता है। इस दौरान भारतकी छोटी-छोटी रियासतों में भी शिकार के लिये चीतों को पाला जाता था।
कोल्हापुर, बड़ौदा, भावनगर जैसी रियासतें चीते पालने में सबसे आगे रही हैं। कोल्हापुर रियासत में छत्रपति साहू महाराज के बाद राजाराम महाराज ने चीतों को शिकार के लिए इस्तेमाल करने के शौक को बढ़ावा दिया था। कोल्हापुर में एक समुदाय हुआ करता था जो चीतों को पालने और उन्हें शिकार करना सीखाने में माहिर था। इस समुदाय के लोगों को श्चित्तेवानश कहा जाता था।
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फर्राटाभरते हुए चीतों कोदेखकर अफ्रीका के जंगल याद आते हैंपर शुक्र है। एशिया अब भी चीतों की रफ्तार से महरूम नहीं हुआ है। हालांकि एक वक्त वो भी था जब भारत-पाकिस्तान और रूस के साथ-साथ मध्य-पूर्व के देशोंमें भी चीते पाए जाते थे। लेकिन अब एशिया में सिर्फ़ ईरान में ही चीते रह गएहैं। ईरान में आज भी 60 से 100 के बीचचीते पाए जाते हैं, जो मध्य ईरान के पठारी इलाक़ों में रहते हैं ।
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एशियाई नस्ल के चीते सिर और पैर छोटे होते हैं। उनकी चमड़ी और रोएं मोटे होते हैं। अफ्रीकी चीतों के मुक़ाबले उनकी गर्दन भी मोटी होती है। एशियाई चीते बहुत बड़े दायरे में बसर करते हैं। जबकि आम तौर पर चीते एक छोटे से इलाक़े तक ही सीमित रहते हैं।