Chandipura Virus: गुजरात में चांदीपुरा वायरस (Chandipura Virus) के बढ़ते मामलों और इससे हो रही मौतों ने चिंता बढ़ा दी है। 1965 में पहली बार सामने आया चांदीपुरा वायरस एक बार फिर कहर बरपा रहा है। इस वायरस से पिछले दो सप्ताह में अब तक 15 मौत हो गई हैं। ये वायरस गुजरात के 12 जिलों में फैल चुका है। सबसे ज्यादा मामले साबरकांठा और अरावली में मिले हैं। चांदीपुर वायरस के कारण अरावली साबरकांठा के ग्रामीण इलाकों में दहशत का माहौल है।
चांदीपुरा वायरस एक RNA वायरस है, जो सबसे ज्यादा मादा फ्लेबोटोमाइन मक्खी से फैलता है। यह मच्छरों, मक्खियों, कीट-पतंगों द्वारा फैलता है। इसके फैलने के पीछे मच्छर में पाए जाने वाले एडीज जिम्मेदार हैं। साल 1966 में पहली बार महाराष्ट्र में इससे जुड़ा केस मिला था। नागपुर के चांदीपुर में इस वायरस की पहचान हुई थी, इसलिए इसका नाम चांदीपुरा वायरस पड़ गया। इसके बाद इस वायरस को साल 2004 से 2006 और 2019 में आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात में रिपोर्ट किया गया। चांदीपुरा वायरस से 15 साल से कम उम्र के बच्चे सबसे ज्यादा शिकार होते हैं। इस उम्र के बच्चों में ही सबसे ज्यादा मृत्यु दर देखी गई है। चांदीपुरा के इलाज के लिए अभी तक कोई भी दवा या वैक्सीन नहीं है।
चांदीपुरा वायरस के लक्षण क्या हैं?
चांदीपुरा वायरस से सबसे पहले बुखार होता है, जिसके लक्षण फ्लू की तरह होते हैं। चांदीपुरा वायरस होने से रोगी को बुखार, सिरदर्द, बदन दर्द और ऐंठन की शिकायत होती है. इससे तेज एन्सेफलाइटिस होती है। एन्सेफलाइटिस एक ऐसी बीमारी है, जिससे दिमाग में सूजन की शिकायत होती है। कुछ मरीजों में सांस की समस्या और खून की कमी जैसे लक्षण भी देखे जा चुके हैं। इस बीमारी के चपेट में आने वाले बच्चे के मस्तिष्क में सूजन आ जाती है।
बेहद खतरनाक है चांदीपुरा वायरस
चांदीपुरा वायरस की चपेट में आने से 100 में से 70 बच्चों की मौत हो सकती है। इसमें मोर्टेलिटी 56 से 70 फीसदी तक है। इस वायरस में बहुत कम समय में यानी की 24 से 48 घंटे में मृत्यु हो सकती है। यह ब्रेन पर बहुत जल्दी असर डालता है। इससे बच्चा कोमा में जा सकता है और मौत तक हो सकती है।
चांदीपुरा वायरस का इलाज
चांदीपुरा वायरस का कोई खास एंटीवायरल इलाज या वैक्सीन नहीं है। बचाव और सूझबूझ से ही चांदीपुरा को रोका जा सकता है। शरीर को हाइड्रेट करना सबसे अहम है, खासकर उल्टी होने की स्थिति में बुखार को कम करने के लिए दवाएं ले सकते हैं। लक्षण दिखने पर डॉक्टर से जरूर सलाह लें। गंभीर लक्षणों वाले मरीजों को बिना देरी किए अस्पताल में भर्ती कराया जाना बेहद जरूरी है।