नयी दिल्ली, नौ जनवरी (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण फैसले में बृहन्मुंबई महानगरपालिका (बीएमसी) को मुंबई के वर्ली में पांच एकड़ भूमि का स्वामित्व ‘सेंचुरी टेक्सटाइल्स एंड इंडस्ट्रीज लिमिटेड’ को हस्तांतरित करने का निर्देश देने संबंधी बंबई उच्च न्यायालय का फैसला पलट दिया है।
‘सेंचुरी टेक्सटाइल्स एंड इंडस्ट्रीज लिमिटेड’ को अब ‘आदित्य बिड़ला रियल एस्टेट लिमिटेड’ के नाम से जाना जाता है।
न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति प्रसन्न बी. वराले की पीठ ने सात जनवरी को बीएमसी के पक्ष में फैसला सुनाते हुए ‘सेंचुरी टेक्सटाइल्स’ की याचिका खारिज कर दी।
बंबई उच्च न्यायालय के फैसले को खारिज करते हुए पीठ ने कहा कि बीएमसी कानूनी रूप से भूमि हस्तांतरित करने के लिए बाध्य नहीं है और वह भूमि विलेख निष्पादित न करने के लिए भी दोषी नहीं है।
फैसले के जवाब में कंपनी ने एक बयान में कहा, ‘‘आदित्य बिड़ला रियल एस्टेट लिमिटेड इस मामले में आवश्यक अगला कदम उठाने के लिए कानूनी सलाह ले रहा है। आदित्य बिड़ला रियल एस्टेट यह स्पष्ट करना चाहता है कि उक्त भूमि… वर्ली में बिड़ला नियारा परियोजना से अलग और भिन्न है तथा उस पर इसका कोई प्रभाव नहीं है।’’
फैसले में निजी कंपनी की इस बात के लिए आलोचना की गई कि उसने कल्याणकारी योजना के तहत आवंटित संपत्ति को व्यावसायिक लाभ के साधन में बदलने का कथित प्रयास किया।
अदालत ने कहा, ‘‘जब किसी विशेष योजना खास तौर पर ‘गरीब वर्ग’ के आवास योजना के तहत आवंटित भूमि का व्यावसायिक रूप से दोहन किया जाता है, तो यह सीधे सीधे अधिनियम की मूल भावना का अपमान है। आवास की कमी को दूर करने और जरूरतमंद लोगों के लिए शहरी जीवन को बेहतर बनाने के बजाय संसाधन को उन लोगों के लिए लाभ कमाने वाले उपक्रमों में बदल दिया गया, जिन्होंने वंचितों की स्थिति को बेहतर बनाने के लिए कुछ नहीं किया। यह आचरण लाभकारी कानून का दुरुपयोग है।’’
यह मामला 23,000 वर्ग गज भूमि के एक भूखंड से संबंधित है, जो मूल रूप से बंबई नगर सुधार अधिनियम, 1898 के प्रावधानों के तहत सेंचुरी टेक्सटाइल्स को पट्टे पर दिया गया था।
यह पट्टा समझौता, 1918 में शुरू की गई गरीब वर्ग आवास योजना का हिस्सा था, जिसके तहत पट्टेदार कंपनी को श्रमिकों के लिए आवास का निर्माण करना आवश्यक था।
सेंचुरी टेक्सटाइल्स ने 1925 तक 476 आवास और 10 दुकानें बनाकर अपने दायित्वों को पूरा किया।
हालांकि, 1955 में पट्टे की अवधि समाप्त होने के बाद कंपनी ने 2006 में कानूनी नोटिस जारी होने तक भूमि के हस्तांतरण का प्रयास नहीं किया।
बंबई उच्च न्यायालय ने 2016 में दायर एक याचिका को स्वीकार करते हुए बीएमसी को भूमि का स्वामित्व सेंचुरी टेक्सटाइल्स को हस्तांतरित करने का निर्देश दिया था।
न्यायमूर्ति विक्रम नाथ द्वारा लिखित 81 पन्नों के फैसले में दो मुख्य मुद्दों पर विचार किया गया, क्या बीएमसी पट्टे की अवधि समाप्त होने के बाद सेंचुरी टेक्सटाइल्स को पट्टे पर दी गई भूमि हस्तांतरित करने के लिए कानूनी रूप से बाध्य है और क्या छह दशकों से अधिक की देरी के बाद दायर याचिका विचारणीय है।
पीठ ने कहा, ‘‘पहला मुख्य प्रश्न अपीलकर्ताओं (बीएमसी और उसके अधिकारियों) के पक्ष में है कि वे ब्लॉक-ए वाले परिसर को प्रतिवादी संख्या एक (निजी कंपनी) को हस्तांतरित करने के लिए न तो बाध्य हैं और न ही किसी कानूनी दायित्व के अधीन हैं।’’
दूसरे मुद्दे पर, सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि याचिका दायर करने में ‘‘गंभीर विलंब’’ हुआ है तथा केवल इसी आधार पर इसे खारिज किया जा सकता है।
अदालत ने कहा कि 51 वर्षों की अवधि के दौरान कंपनी ने हस्तांतरण दस्तावेज के निष्पादन के लिए कोई मांग नहीं की।
पीठ ने कहा कि 1925 के अधिनियम के तहत वैधानिक ढांचे और पट्टा समझौते की शर्तों के तहत बीएमसी को सेंचुरी टेक्सटाइल्स के पक्ष में हस्तांतरण दस्तावेज निष्पादित करने का अधिकार नहीं है।
अदालत ने कहा कि मूल पट्टा और वैधानिक प्रावधानों का उद्देश्य व्यापक सामाजिक उद्देश्यों की पूर्ति करना था, जिसमें आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए आवास प्रदान करना भी शामिल है।
भाषा सुरभि पवनेश
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