भविष्य में वाम दलों के विलय की संभावना को खारिज नहीं कर सकता: दीपांकर भट्टाचार्य

भविष्य में वाम दलों के विलय की संभावना को खारिज नहीं कर सकता: दीपांकर भट्टाचार्य

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  • Publish Date - June 21, 2024 / 08:18 PM IST,
    Updated On - June 21, 2024 / 08:18 PM IST

नयी दिल्ली, 21 जून (भाषा) भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) लिबरेशन के महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य ने कहा है कि भविष्य में वाम दलों के विलय की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है, लेकिन तत्काल ऐसी कोई स्थिति नहीं बनी है।

उन्होंने यह भी कहा कि आने वाले दिनों में जब जलवायु संकट एक प्रमुख राजनीतिक मुद्दा बन जाएगा, तो वामपंथी एकबार फिर लोगों के केंद्रबिंदु में होंगे।

भाकपा (माले) के नेता ने ‘पीटीआई-भाषा’ के साथ साक्षात्कार में कहा कि विभिन्न वाम दलों के बीच मतभेद बने हुए हैं, लेकिन साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि भारत को एक मजबूत वामपंथी गठजोड़ की जरूरत है।

वाम दलों के विलय की संभावना के बारे में पूछे जाने पर भट्टाचार्य ने कहा, ‘‘मैं इसे खारिज नहीं करूंगा, लेकिन मुझे वास्तव में तत्काल कोई संभावना नहीं दिख रही है।’’

उन्होंने कहा, ‘‘भारत में 1964 तक एक ही कम्युनिस्ट पार्टी थी। इतिहास में ऐसा होता आया है कि मतभेद होते रहे हैं और मतभेदों के कारण अलग-अलग पार्टियां बनीं।’’

भट्टाचार्य ने कहा, ‘‘शायद भविष्य में ऐसा हो, क्योंकि भारत को एक मजबूत वामपंथी गठजोड़ की जरूरत है… राजनीतिक और वैचारिक मतभेद हैं। बहुत बड़े मतभेद नहीं हो सकते हैं, लेकिन जब तक मतभेद दूर नहीं हो जाते, पूर्ण एकीकरण की उम्मीद करना मुश्किल है।’’

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) की स्थापना 26 दिसंबर, 1925 को हुई थी। वर्ष 1964 में यह विभाजित हो गई और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) का गठन हुआ। पार्टियों के विलय को लेकर चर्चाएं समय-समय पर होती रही हैं। हालांकि, कोई समझौता नहीं हुआ है।’’

इस बीच, भाकपा (माले) का गठन 1964 के नक्सलबाड़ी आंदोलन से हुआ और इसकी स्थापना 1969 में हुई। वर्ष 1974 में इस पार्टी के विभाजन के बाद भाकपा (माले) लिबरेशन का गठन हुआ था।

भट्टाचार्य ने कहा कि वाम दलों के बीच नीतियों के साथ-साथ अभिव्यक्ति संदर्भ में भी मतभेद बने हुए हैं।

यह पूछे जाने पर कि क्या वह भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) जैसे वामपंथी दलों को मुख्यधारा में आने की सलाह देंगे, उन्होंने कहा, ‘‘मुझे लगता है कि वे सोचते हैं कि अपने तरीके से वे एक मुख्यधारा की पार्टी हैं। इसलिए इसे परिभाषित करना हमारे लिए नहीं है मुख्यधारा क्या है और ‘ऑफ स्ट्रीम’ (मुख्य धारा से बाहर) क्या है। पार्टियां वास्तव में अपने अनुभव से सीखती हैं।’’

भट्टाचार्य ने नेपाल का उदाहरण दिया और कहा कि वहां माओवादी पार्टी हुआ करती थी और कई वर्षों तक वे संसदीय राजनीति में नहीं थे, लेकिन बाद में उसने अपना रास्ता बदला।

अन्य वाम दलों की स्थिति और लोकसभा में इनके कुल आठ सदस्य रह जाने के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि वाम दलों की स्थिति अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग है।

उन्होंने कहा, ‘‘उदाहरण के लिए बंगाल में वाम मोर्चा 34 वर्षों तक सत्ता में था। जब वाम मोर्चा सत्ता में था, हम कभी भी वाम मोर्चा का हिस्सा नहीं रहे। हमने एक स्वतंत्र वाम दल के रूप में अपना स्वतंत्र अस्तित्व बनाए रखा।’’

चुनाव जीतने के लिए वाम दलों की गठबंधन पर निर्भरता के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि यह ‘‘परस्पर निर्भरता’’ है।

भाषा हक

हक दिलीप

दिलीप