कोलकाता। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस अध्यक्ष ममता बनर्जी और हाल तक उनका दाहिना हाथ समझे जाने वाले पूर्व मेदिनीपुर ज़िले के कद्दावर नेता शुभेंदु अधिकारी के आपसी संबंध अब उस मुकाम तक पहुंच गए हैं जिसे ’प्वॉयंट ऑफ़ नो रिटर्न’ कहा जाता है। बुधवार तक तो शुभेंदु को मनाने की कवायद जारी थी और उनके कम से कम विधायक के तौर पर पार्टी में बने रहने के कयास लगाए जा रहे थे, लेकिन बुधवार शाम शुभेंदु ने विधानसभा की सदस्यता से अपना इस्तीफ़ा सौंप दिया। इसके बाद गुरूवार को फिर एक विधायक जितेंद्र तिवारी ने टीएमसी छोड़ दी और आज यानि शुक्रवार को फिर से एक विधायक शीलभद्र दत्ता ने टीएमसी को बड़ा झटका दिया और पार्टी से किनारा कर लिया। तीन दिनों में तीन विधायकों के पार्टी छोड़ने से टीएमसी में हड़कंप मच गया, वहीं कुछ लोग इसे बीजेपी का मिशन बंगाल की नजरों से देख रहे हैं।
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जितेंद्र तिवारी ने गुरुवार दोपहर को संवाददाताओं से कहा, ’मैंने आसनसोल नगर निगम प्रशासक मंडल के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया है। मुझे काम नहीं करने दिया जा रहा था, ऐसे में मैं इस पद को रख कर क्या करूंगा? इसलिए मैंने इस्तीफा दे दिया है।’ इसके कुछ घंटों के बाद तिवारी ने घोषणा की कि उन्होंने तृणमूल कांग्रेस की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया है और जिला अध्यक्ष पद छोड़ रहे हैं। उन्होंने आरोप लगाते हुए कहा कि तृणमूल कांग्रेस में बने रहने का कोई तुक नहीं है क्योंकि मुझे लोगों के लिए काम करने नहीं दिया जा रहा है। हालांकि, पांडाबेश्वर सीट से विधायक तिवारी ने विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा नहीं दिया है।
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पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस के किले में एक-एक करके सेंध लगती जा रही है। नेताओं के बीच पार्टी छोड़ने की भगदड़ जैसी मची है। शुक्रवार को पार्टी की अल्पसंख्यक सेल के महासचिव कबीरुल इस्लाम ने भी इस्तीफा सौंप दिया। उनसे पहले, वरिष्ठ नेता शीलभद्र दत्ता ज्डब् की सदस्यता त्याग चुके थे। पिछले दो दिन में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को चार झटके लगे हैं। वहीं तृणमूल कांग्रेस में बड़े नेताओं के बागी होने के बाद पार्टी की चिंता बढ़ने लगी है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने शुक्रवार को टीएमसी की इमर्जेंसी की मीटिंग बुलाई है। हालांकि, टीएमसी के सूत्रों का कहना है कि यह कोई इमर्जेंसी मीटिंग नहीं है, बल्कि यह पार्टी की नियमित बैठकों का ही एक हिस्सा है।
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बता दें कि अगले साल बंगाल की 294 सीटों पर विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। इससे पहले सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस में मचीं भगदड़ कई सवालों को जन्म दे रही है। चुनाव से पहले भाजपा की तैयारियों का जायजा लेने के लिए केंद्रीय गृहमंत्री और पार्टी के पूर्व अध्यक्ष अमित शाह शुक्रवार रात को राज्य के दो दिवसीय दौरे पर कोलकाता पहुंचेंगे। उनका यह दौरा ऐसे समय हो रहा है जब सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस बगावत के दौर से गुजर रही है। कयास लगाए जा रहे हैं कि तृणमूल कांग्रेस और राज्य मंत्रिमंडल में कैबिनेट मंत्री का पद छोड़ने वाले प्रभावशाली नेता सुवेंदु अधिकारी, शीलभद्र दत्ता और जितेंद्र तिवारी जैसे तृणमूल कांग्रेस के कुछ असंतुष्ट नेता, शाह के बंगाल दौरे के दौरान भाजपा में शामिल होंगे।
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उन्होंने बताया, ‘‘शनिवार सुबह शाह का एनआईए के अधिकारियों के साथ बैठक करने का कार्यक्रम है। इसके बाद वह उत्तरी कोलकाता स्थित स्वामी विवेकानंद के आवास पर जाकर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करेंगे।’’ भाजपा नेता ने बताया, ‘‘ इसके बाद शाह मिदनापुर जाएंगे और क्रांतिकारी खुदीराम बोस को श्रद्धांजलि अर्पित करेंगे और दो मंदिरों में पूजा अर्चना करेंगे।’’ उन्होंने बताया कि इसके बाद गृहमंत्री एक किसान के घर में दोपहर का भोजन करेंगे और फिर मिदनापुर के कॉलेज मैदान में आयोजित जनसभा को संबोधित करेंगे। भाजपा नेता ने बताया, ‘‘ ऐसी संभावना है कि तृणमूल कांग्रेस के कई नेता रैली के दौरान भाजपा में शामिल होंगे। इस रैली के बाद शाह कोलकाता वापस लौट आएंगे और यहां राज्य के नेताओं के साथ बैठक करेंगे और संगठन का जायजा लेंगे।’’ अमित शाह का रविवार को शांति निकेतन स्थित विश्व भारती विश्वविद्यालय जाने और बाउल गायक के घर पर दोपहर का खाना खाने का कार्यक्रम है। भाजपा नेता ने बताया, ‘‘इसके बाद शाह बोलपुर में रोड शो करेंगे और उसके बाद संवाददाता सम्मेलन। इसके बाद वह दिल्ली के लिए रवाना हो जाएंगे।’’
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उल्लेखनीय है कि शाह का दौरा केंद्र और राज्य सरकार के बीच बढ़ी खींचतान के बीच हो रहा है जिसकी शुरुआत गृह मंत्रालय द्वारा तीन आईपीएस अधिकारियों को राज्य सरकार द्वारा कार्यमुक्त कर केंद्र में प्रतिनियुक्ति पर भेजने के निर्देश के बाद हुई। राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इस निर्देश का विरोध करते हुए इसे ‘असंवैधानिक’ और ‘अस्वीकार्य’ करार दिया है। पश्चिम बंगाल के भाजपा प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष ने कहा है कि विधानसभा चुनाव होने तक शाह और पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा हर महीने पश्चिम बंगाल का दौरा करेंगे। इधर उच्चतम न्यायालय से भी ममता बनर्जी सरकार को झटका लगा है, कोर्ट ने शुक्रवार को पश्चिम बंगाल पुलिस को निर्देश दिया कि राज्य में भाजपा के उन पांच नेताओं पर किसी भी तरह की दंडात्मक कार्रवाई नहीं की जाए जिनके खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हैं। इन नेताओं में मुकुल रॉय के अलावा दो सांसद कैलाश विजयवर्गीय और अर्जुन सिंह भी शामिल हैं।
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बीजेपी ने अपने मिशन बंगाल को अंजाम देने के लिए कोई कोर कसर नहीं छोड़ना चाहती है, यही कारण है कि बीते कई महीनों से बीजेपी के बंगाल प्रभारी कैलाश विजयवर्गीय प्रदेश में काफी सक्रिय हैं और वह लगातार ममता सरकार पर हमलावर हैं। ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस ने बीते महींनों में कई भाजपा कार्यकर्ताओं की हत्या के आरोप बीजेपी ने लगाए हैं। जाहिर है कि पश्चिम बंगाल में इस बात की सहानुभूमि बीजेपी को मिल सकती है, बीजेपी ने ममता बनर्जी पर लोकल चुनावों में भी लोकतंत्र की हत्या का आरोप लगाया था। बीजेपी का कहना है कि राज्य सरकार के इशारे पर ही उनके कार्यकर्ताओं की हत्याएं हो रही हैं। बीजेपी ने राज्य में निश्पक्ष चुनाव को लेकर भी चिंता जताया है और कें्रदीय ईकाई से चुनाव प्रक्रिया कराने की मांग की है। उनका कहना है कि राज्य के अधिकारी पूरी तरह से सरकार के दबाव में काम कर रहे हैं। ऐसे में निश्पक्ष चुनाव नहीं हो सकते।
इधर बीते 9 और 10 दिसंबर को भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के काफिले पर हमले को केंद्र सरकार ने गंभीरता से लिया और केंद्र सरकार ने राज्य के मुख्य सचिव अलपन बंद्योपाध्याय और डीजीपी वीरेंद्र को राज्य की “बिगड़ती“ कानून एवं व्यवस्था की स्थिति पर चर्चा करने के लिए 14 दिसंबर को तलब किया था।
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पश्चिम बंगाल के मुख्य सचिव और पुलिस महानिदेशक को दिल्ली तलब किए जाने पर ममता बनर्जी और मोदी सरकार आमने-सामने है। केंद्रीय गृह मंत्रालय एक बार फिर से समन भेजकर दोनों पश्चिम बंगाल के दोनों टॉप अफसरों- राज्य सरकार ने मुख्य सचिव और पुलिस महानिदेशक को आज शाम मीटिंग में शामिल होने को बुलाया है। हालांकि, यह देखने वाली बात होगी कि ये दोनों टॉप अफसर आज केंद्रीय गृह मंत्रालय की बैठक में शामिल होते हैं या नहीं। हालांकि, इससे पहले ममता बनर्जी कह चुकी हैं कि कोरोना संकट पर एक बैठक की वजह से उन्हें नहीं भेजा जा सकता है।
इसके पहले मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने मंगलवार को एक चुनावी रैली में भाजपा पर निशाना साधते हुए कहा कि भाजपा असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम को बंगाल में लाने का प्रयास कर रही है। वहीं, ममता के इस आरोप पर ऑल इंडिया मजलिस ए इत्तेहादुल मस्लिमीन (एआईएमआईएम) के प्रमुख और हैदराबाद सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने कहा है कि आज तक कोई पैदा नहीं हुआ है, जो असदुद्दीन ओवैसी को पैसे से खरीद सके। जानकारों की माने तो यदि ओवैसी की पार्टी पश्चिम बंगाल में चुनाव लड़ती है तो इससे तृणमूल का वोट कटेगा और भाजपा को इसका लाभ होगा। जाहिर है भाजपा इस हथियार को भी खोना नहीं चाहेगी और ओवैसी के चुनाव लड़ने पर उसे कोई आपत्ति नहीं होगी।
बहरहाल जिस प्रकार से बंगाल चुनाव से पहले टीएमसी और बीजेपी के बीच ठनी है उससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि आगे के 5 से 6 महीने यह तनातनी और बयानबाजी और तेज होती जाएगी, लेकिन तिनका तिनका बिखरती तृणमूल के लिए खतरे की घंटी बज गई है, जिस प्रकार से बड़े नेताओं के पार्टी छोड़ने की रफ्तार बढ़ी है उससे भाजपा का मिशन कितना सफल होगा ये तो आने वाला समय ही बताएगा।