UP Lok Sabha Election Result 2024 : लखनऊ। उत्तरप्रदेश में पिछले दो आम चुनावों से अनुसूचित जाति (दलित) के लिए आरक्षित लोकसभा सीटों पर श्रेष्ठ प्रदर्शन करती आ रही भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को ताजा चुनाव परिणामों में इन सीटों पर भी जबरदस्त झटका लगा है। राज्य में लोकसभा की 80 सीटों में से दलितों के लिए आरक्षित 17 सीटों में से इस बार विपक्षी दलों ने नौ सीटों पर जीत हासिल कर भाजपा की बढ़त रोक दी।
फैजाबाद (अयोध्या) की सामान्य सीट पर जब सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने नौ बार के विधायक और दलित समाज से आने वाले अवधेश प्रसाद को उम्मीदवार घोषित किया तो लोग चौंके थे, लेकिन प्रसाद ने वहां दो बार के सांसद व पूर्व मंत्री लल्लू सिंह को पटखनी दे दी। आरक्षित सीटों में सपा ने सात, कांग्रेस ने एक और दलित राजनीति के नये सूरमा आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) के प्रमुख चंद्रशेखर आजाद ने भी एक सीट (नगीना) जीत ली। यह अलग बात है कि दलितों की बुनियाद पर कभी सियासत और सत्ता के शीर्ष पर पहुंचने वाली मायावती की अगुवाई वाली बहुजन समाज पार्टी (बसपा) अपना खाता भी नहीं खोल सकी।
इस करारी हार के पीछे बसपा के एक कार्यकर्ता का कहना था, ” ऐन चुनाव के बीच में ही बहन जी (मायावती) द्वारा अपने भतीजे और उत्तराधिकारी आकाश आनन्द को सभी पदों से हटाये जाने की घोषणा करने से हमें नुकसान उठाना पड़ा है।” भाजपा ने 2014 के लोकसभा चुनाव में सभी आरक्षित 17 सीटों पर एकतरफा जीत दर्ज की थी लेकिन उसे 2019 में इन 17 सीटों में से सिर्फ नगीना और लालगंज सीटें बसपा के हाथों गंवानी पड़ी थी। शेष 14 सीटें भाजपा ने खुद और राबर्ट्सगंज की एक सीट भाजपा के सहयोगी अपना दल (एस) ने जीती थी। 2024 के आम चुनाव में भाजपा को बुलंदशहर, हाथरस, आगरा, शाहजहांपुर, हरदोई, मिश्रिख, बांसगांव और बहराइच कुल आठ आरक्षित सीटों पर ही जीत मिली है।
वहीं राबर्ट्सगंज, मछलीशहर, लालगंज, कौशांबी, जालौन, मोहनलालगंज और इटावा सीटें सपा ने जीतीं। बाराबंकी से कांग्रेस और नगीना से आजाद समाज पार्टी को विजय मिली है। बांसगांव सीट पर भाजपा के कमलेश पासवान तो मात्र 3150 मतों के अंतर से विजयी घोषित हुए। वहीं, मोदी सरकार के केंद्रीय मंत्री कौशल किशोर (मोहनलालगंज) और भानु प्रताप वर्मा (जालौन) जैसे दिग्गज नेताओं को भी इस बार हार का सामना करना पड़ा। उआधी से अधिक आरक्षित सीटों पर विपक्षी दलों का कब्जा होने से राजनीतिक समीक्षक दावा करने लगे हैं कि भाजपा आरक्षित सीटों पर प्रबंधन के मामले में फेल हो गयी।
बाबा साहब अंबेडकर केंद्रीय विश्वविद्यालय लखनऊ के इतिहास विभाग के प्रोफेसर और ”लोकतंत्र में जाति और राजनीति” पुस्तक के लेखक डॉक्टर सुशील पांडेय ने कहा, ”अभी इसमें तात्कालिक निर्णय देना जल्दबाजी होगी, लेकिन इससे इंकार नहीं किया जा सकता है कि भाजपा के प्रत्याशी चयन को लेकर मतदाताओं की नाराजगी और विपक्षी दलों द्वारा संविधान बचाओ, आरक्षण की हिफाजत और राशन की मात्रा बढ़ाने का नारा देने से दलितों का आकर्षण विपक्षी दलों की ओर बढ़ा है।”
चुनाव प्रचार के दौरान कांग्रेस नेता राहुल गांधी और सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने सत्तारूढ़ भाजपा पर आरोप लगाया था कि अगर राजग ने 400 से अधिक सीटें जीतीं तो वह संविधान बदल देगी और आरक्षण समाप्त कर देगी। विपक्षी नेताओं ने इंडिया गठबंधन की सरकार बनने पर पांच किलोग्राम की जगह 10 किलोग्राम अनाज देने का भी वादा किया था।
भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने नाम सार्वजनिक नहीं करते हुए कहा, ”हम बसपा के कमजोर होने और पांच किलोग्राम अनाज दिये जाने से उसके परंपरागत वोट बैंक को अपना मानते रहे, लेकिन बड़ी संख्या में दलित संविधान और आरक्षण बचाने के नाम पर विपक्षी गठबंधन के नेताओं के प्रभाव में आ गये।” उउन्होंने कहा, ”इसका असर सिर्फ दलितों के लिए आरक्षित सीटों पर ही नहीं, बल्कि सामान्य सीटों पर भी पड़ा जहां विपक्षी दलों के उम्मीदवारों को उनका (दलित) मत मिला है।” भाजपा या राजनीतिक विश्लेषण दलित फैक्टर को लेकर जितनी वजह गिनाएं लेकिन ‘इंडिया’ गठबंधन ने 29 फीसद आबादी वाले इस समाज को साधने के लिए नये प्रयोग भी किये हैं।
अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण और भगवान श्री रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के बाद भाजपा के शीर्ष नेता विपक्षी दलों पर प्राण प्रतिष्ठा का निमंत्रण ठुकराने और सनातन विरोधी होने का आरोप लगा रहे थे। लेकिन उसी अयोध्या में सामान्य वर्ग की फैजाबाद संसदीय सीट पर समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव ने दलित समाज से आने वाले नौ बार के विधायक व पूर्व मंत्री अवधेश प्रसाद को उम्मीदवार बनाकर चौंका दिया।
सपा प्रमुख की यह रणनीति इतनी कारगर रही कि प्रसाद ने भाजपा उम्मीदवार और दो बार के सांसद, राज्य सरकार के पूर्व मंत्री और राम मंदिर आंदोलन के कारसेवक लल्लू सिंह को चारों खाने चित्त कर दिया। राजनीतिक विश्लेषक और दलित चिंतक गाजीपुर निवासी राकेश कुमार ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा कि निश्चित तौर पर अखिलेश यादव ने सामान्य सीट पर दलित उम्मीदवार को उतारकर बहुत बड़ा जोखिम लिया लेकिन उसका लाभ सिर्फ अयोध्या में ही नहीं बल्कि राज्य की दूसरी सीटों पर भी मिला।”
उत्तर प्रदेश में नगीना, बुलंदशहर, हाथरस, आगरा, शाहजहांपुर, हरदोई, मिश्रिख, इटावा, बहराइच, मोहनलालगंज, जालौन, कौशांबी, बाराबंकी, लालगंज, मछलीशहर, बांसगांव और राबर्ट्सगंज लोकसभा सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं।