Bihar Caste Survey: नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने बिहार सरकार को जाति आधारित जनगणना करने को हरी झंडी देने वाले पटना हाईकोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट के समक्ष चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अपना पक्ष रखते हुए कहा कि संविधान के तहत केंद्र के अलावा कोई अन्य निकाय के पास जनगणना या इस प्रकार कोई कार्रवाई करने का अधिकार नहीं है। बिहार में जाति आधारित गणना को लेकर सोमवार को सर्वोच्च न्यायालय में दायर अपने हलफनामे में केंद्र सरकार ने संशोधन किया है। हलफनामे से पैराग्राफ 5 को हटा लिया गया है, जिसमें इस बात का जिक्र था कि जनगणना कराने का अधिकार सिर्फ केंद्र सरकार को है, राज्य सरकार ऐसा नहीं करा सकती है।
बिहार के बाद अब अन्य राज्यों में भी जाति जनगणना की मांग उठ रही है। हाल ही में मध्य प्रदेश दौरे पर पहुंचे कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने एक जनसभा को संबोधित करते हुए कहा कि अगर हम सत्ता में आते हैं तो मध्य प्रदेश में जाति जनगणना कराएंगे। उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव भी जाति जनगणना का मुद्दा उठाते रहते हैं।
दरअसल, सोमवार को केंद्र की ओर से जो हलफनामा पहले सुप्रीम कोर्ट में दायर किया था गया था, उसमें इस बात का उल्लेख था कि जनगणना अधिनियम 1948 के तहत जनगणना कराने का अधिकार सिर्फ केंद्र सरकार के पास है, राज्य सरकार ऐसा नहीं कर सकती है। अधिनियम 3 का हवाला देते हुए यह भी कहा था कि जनगणना की घोषणा करते हुए केंद्र सरकार यह बताती है कि देश में जनगणना कराई जा रही है। इसके साथ ही जनगणना कराने के आधार को भी स्पष्ट करना होता है। डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव ने आरोप लगाया था कि बीजेपी और भारत सरकार नहीं चाहती कि बिहार में जाति आधारित गणना हो, इसलिए पेंच पंसाया जा रहा है। अब केंद्र ने नया हलफनामा दायर कर अपनी स्थिति स्पष्ट कर दी है।
Bihar Caste Survey: केंद्रीय गृह मंत्रालय के रजिस्ट्रार जनरल के कार्यालय ने दो पन्नों के हलफनामे में कहा है कि केंद्र सरकार संविधान के प्रावधानों और लागू कानून के अनुसार एससी/एसटी/एसईबीसी और ओबीसी के उत्थान के लिए सभी सकारात्मक कार्रवाई करने के लिए प्रतिबद्ध है। हलफनामे में कहा गया है कि जनगणना अधिनियम 1948 केवल केंद्र सरकार को उक्त अधिनियम की धारा 3 के तहत जनगणना करने का अधिकार देता है।
पटना हाईकोर्ट ने एक अगस्त को राज्य में जाति जनगणना कराने के बिहार सरकार के 6 जून 2022 के फैसले को मंजूरी दे दी थी। उच्च न्यायालय ने कहा था कि यह अभ्यास पूरी तरह से वैध था और ‘न्याय के साथ विकास’ प्रदान करने के वैध उद्देश्य के साथ उचित क्षमता के साथ शुरू किया गया था।