नयी दिल्ली, 15 जनवरी (भाषा) पश्चिम बंगाल के सरकारी और वित्त-पोषित विद्यालयों में 25,753 शिक्षकों और शिक्षकेतर कर्मचारियों की नियुक्ति रद्द करने के फैसले के खिलाफ बुधवार को कई याचिकाकर्ताओं ने उच्चतम न्यायालय में दलील दी कि कलकत्ता उच्च न्यायालय के इस फैसले से बेदाग उम्मीदवारों के जीवन और आजीविका पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है।
प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार की पीठ ने कलकत्ता उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देने वाली लगभग 124 याचिकाओं पर सुनवाई की।
प्रधान न्यायाधीश ने दलीलें स्वीकार की और अवैधताओं से निपटने और वैसे नियुक्तियों के बीच संतुलन की आवश्यकता जताई जिसमें कोई अनियमितता नहीं हुई।
न्यायालय ने कहा कि जहां भी संभव हो, निर्दोष उम्मीदवारों को बचाने के लिए मामलों को अलग-अलग करने को प्राथमिकता दी जा सकती है।
उच्च न्यायालय के फैसले का हवाला देते हुए पीठ ने कहा, ‘‘इसमें केवल इतना कहा गया है कि जब इतनी अनियमितताएं थीं, तो यह जानना असंभव हो गया है कि किसकी नियुक्ति सही है और किसकी नियुक्ति में प्रक्रिया से छेड़छाड़ किया गया है।’’
एक सामान्य दलील यह दी गयी कि उच्च न्यायालय के आदेश से प्रतिकूल रूप से प्रभावित अधिकांश बेदाग चयनित उम्मीदवार अब किसी भी प्रतियोगी परीक्षा में बैठने के लिए जरूरी आयु सीमा पार कर चुके हैं, क्योंकि विवादित भर्ती प्रक्रिया 2016 की थी।
यह मामला पश्चिम बंगाल स्कूल सेवा आयोग (एसएससी) द्वारा आयोजित 2016 की भर्ती प्रक्रिया में कथित अनियमितताओं से उपजा है।
विवाद राज्य स्तरीय चयन परीक्षा-2016 में कथित भ्रष्टाचार के इर्द-गिर्द घूमता है।
कुल 24,640 पदों के लिए 23 लाख उम्मीदवारों ने भाग लिया था, जबकि कुल 25,753 नियुक्ति पत्र जारी किए गए।
कलकत्ता उच्च न्यायालय ने ‘ओएमआर शीट’ से छेड़छाड़ और रैंक-जंपिंग जैसी अनियमितताओं का हवाला देते हुए अप्रैल, 2024 में नियुक्तियों को अमान्य कर दिया।
याचिकाकर्ताओं की ओर से दुष्यंत दवे, मुकुल रोहतगी, कपिल सिब्बल, विकास सिंह और मेनका गुरुस्वामी सहित कई वरिष्ठ अधिवक्ताओं ने दलीलें पेश कीं।
पीठ ने याचिकाकर्ताओं के वकीलों की दलीलें सुन ली है और 27 जनवरी को अपराह्न दो बजे कार्यवाही फिर से शुरू करेगी।
भाषा सुरेश माधव
माधव