नई दिल्ली: सैकड़ों वर्षों के लंबे इंतजार के बाद सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या मामले में फैसला सुना दिया है। इससे पहले कोर्ट ने लगातार 40 दिन तक सभी पक्षों की दलील सुनकर फैसला अपने पक्ष में सुरक्षित रख लिया था। मामले में सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ के 5 जजों ने अपना फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि मुस्लिमों को वैकल्पिक जगह देने का आदेश दिया है। इससे पहले कोर्ट रूम पहुंचते ही सभी जजों ने फैसले पर हस्ताक्षर किया और अपना फैसला सुनाया। सभी 5 जजों ने एक मत में फैसला लिया है। मामले में फैसला सीजेआई रंजन गोगोई, जस्टिस एसए बोबड़े, जस्टिस अशोक भूषण, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस एस अब्दुल नजीर ने सुनाया। मामले में फैसला देते हुए सीजेआई ने विवादित भूमि में राम मंदिर बनाने का आदेश दिया है। साथ ही बाबरी मस्जिद के लिए 5 एकड़ जमीन देने का फैसला सुनाया है।
मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सिस वक्फ बोर्ड की याचिका खारीज कर दिया है। कोर्ट ने निर्मोही अखाड़ा की याचिका को भी खारीज कर दिया है। निर्मोही अखाड़ा को राम लला की सेवा का अधिकार से कोर्ट ने इनकार कर दिया है। कोर्ट ने पुरातत्व विभाग के सर्वे को वजन दिया है। राम जन्मभूमि न्यायीक व्यक्ति नहीं है। सुनवाई के दौरान जजों ने कहा के भारत में सभी धर्मों की रक्षा का अधिकार है। सभी दिन्दूओं ने अस्था को लेकर याचिका दायर की थी। निर्माही अखाड़ा ने भी सुप्रीम कोर्ट के सामने राम लला की सेवा के लिए याचिका दायर की थी। कोर्ट ने यह स्वीकार किया है कि सबसे पहले इस स्थान पर मंदिर था, जिसे तोड़कर ही विवादित ढांचा बनाया गया था। इस जगह पर हिन्दू धर्म के लोग पूजा करते थे।
Read More: Ayodhya Verdict LIVE UPDATE : अयोध्या अंतिम फैसला आज, देखिए पल-पल का लाइव अपडेट
साल 1950 : फैजाबाद सिविल कोर्ट में दो अर्जी दाखिल की गई। इसमें एक में राम लला की पूजा की इजाजत और दूसरे में विवादित ढांचे में भगवान राम की मूर्ति रखे रहने की इजाजत मांगी गई। 1959 में निर्मोही अखाड़ा ने तीसरी अर्जी दाखिल की।
साल 1961 : यूपी सुन्नी वक्फ बोर्ड ने अर्जी दाखिल कर विवादित जगह के पजेशन और मूर्तियां हटाने की मांग की।
साल 1984: विवादित ढांचे की जगह मंदिर बनाने के लिए 1984 में विश्व हिंदू परिषद ने एक कमिटी गठित की।
साल 1986: यू. सी. पांडे की याचिका पर फैजाबाद के जिला जज के. एम. पांडे ने 1 फरवरी 1986 को हिंदुओं को पूजा करने की इजाजत देते हुए ढांचे पर से ताला हटाने का आदेश दिया।
6 दिसंबर 1992 : बीजेपी, वीएचपी और शिवसेना समेत दूसरे हिंदू संगठनों के लाखों कार्यकर्ताओं ने विवादित ढांचे को गिरा दिया। देश भर में हिंदू-मुसलमानों के बीच दंगे भड़के गए, जिनमें 2 हजार से ज्यादा लोग मारे गए।
साल 2002 : हिंदू कार्यकर्ताओं को ले जा रही ट्रेन में गोधरा में आग लगा दी गई, जिसमें 58 लोगों की मौत हो गई। इसकी वजह से हुए दंगे में 2 हजार से ज्यादा लोग मारे गए।
साल 2010 : इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अपने फैसले में विवादित स्थल को सुन्नी वक्फ बोर्ड, रामलला विराजमान और निर्मोही अखाड़ा के बीच 3 बराबर-बराबर हिस्सों में बांटने का आदेश दिया।
साल 2011: सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या विवाद पर इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले पर रोक लगाई।
साल 2017 : सुप्रीम कोर्ट ने आउट ऑफ कोर्ट सेटलमेंट का आह्वान किया। बीजेपी के शीर्ष नेताओं पर आपराधिक साजिश के आरोप फिर से बहाल किए।
8 मार्च 2019: सुप्रीम कोर्ट ने मामले को मध्यस्थता के लिए भेजा। पैनल को 8 सप्ताह के अंदर कार्यवाही खत्म करने को कहा।
1 अगस्त 2019: मध्यस्थता पैनल ने रिपोर्ट प्रस्तुत की।
2 अगस्त 2019: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मध्यस्थता पैनल मामले का समाधान निकालने में विफल रहा।
6 अगस्त 2019: सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या मामले की रोजाना सुनवाई शुरू हुई।
16 अक्टूबर 2019: अयोध्या मामले की सुनवाई पूरी। सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा