रायपुर: Atal Bihari Vajpayee Birthday: आज अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म दिन है, वो अगर आज हमारे बीच होते तो 98 साल के होते। एक वट वृक्ष जिसने भारत के लोकतंत्र को छोटी-छोटी कलियों से होकर एक युवा , मजबूत पेड़ होते देखा, उनके हृदय में कश्मीर को लेकर विशेष स्नेह शुरू से रहा। पहली बार 1957 में सांसद बनने से लेकर आखिरी तक उन्होंने कश्मीर के मसले को कश्मीरी दृष्टिकोण से सुलझाने के पक्ष में रहे। कश्मीर पर क्या रही अटल बिहारी वाजपेयी की राय आपको विस्तार से बताते हैं?
Atal Bihari Vajpayee Birthday: जम्मू कश्मीर से धारा 370 को हटाया जाना महज़ एक संविधानिक फैसला नहीं था, बल्कि ये 72 साल के बड़े अंतराल के बाद जम्मू कश्मीर को देश के अन्य राज्यों की तरह एक संविधान, एक कानून में पिरोने की मोदी सरकार की सबसे बड़ी कवायद थी। ये वो स्वप्न था जो कभी देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने देखा था। ये वो विचार था जिसकी नींव श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने रखी थी और ये वो समस्त देशवासियों की आकांक्षा थी जो देश के अखंड और एकरूपता के समर्थक थे। आज नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार जिन रास्तों पर चल रही है, दरअसल वो अटल बिहारी वाजपेयी के विचारों का पथ है। जहां राष्ट्र की एकता और अखंडता का विचार सर्वोपरी है, जहां राष्ट्र की सुरक्षा और उनके लोकजनों की चिंता सर्वोच्च है और जहां “देशज” का स्थान सर्वश्रेष्ठ है। आज मोदी सरकार के सभी फैसले अटल बिहारी वाजपेयी के विचारों की नुमाइंदगी करते हैं। या यूं कहें कि मोदी सरकार, वाजपेयी के विचारों की प्रतिलिपी है।
आज भी यदि शेष भारत और कश्मीर के बीच में खाई रखी जायेगी तो फिर कोई उस खाई का लाभ उठाएगा, फिर से नया संकट खड़ा होगा। इसीलिए भारत के संविधान को पूरी तरह से कश्मीर पर लागू कर देना चाहिए।
वाजपेयी जब सत्ता में थे तब उनके पास संख्या बल का अभाव था। तब 24 छोटे छोटे दलों के समर्थन की मिलीजुली सरकार चल रही थी, जिसके चलते वाजपेयी वो फैसले नहीं ले पाए। इसके लिए एक बड़े बहुमत की आवश्यकता होती है। लेकिन आज जब बीजेपी के पास 300 से अधिक सीटें लोक सभा में है,तो मोदी सरकार, वाजपेयी के हर उस स्वप्न को पूरा कर रही है। इसे किसी जमाने में जनसंघ, जनता पार्टी और बीजेपी देखती आ रही थी और इन्ही उद्देश्यों में सबसे बड़ा लक्ष्य था जम्मू कश्मीर से धारा 370 का उन्मूलन।
जम्मू कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा मिलते ही 50 के दशक में “परमिट सिस्टम” की शुरुआत हुई, जिसके अनुसार भारत के अन्य राज्यों के नागरिकों को जम्मू कश्मीर जाने के लिए परमिट की जरूरत होती थी। कोई भी भारत सरकार से बिना परमिट लिए हुए जम्मू-कश्मीर की सीमा में प्रवेश नहीं कर सकता था। ये देश के एकरूपता पर सबसे बड़ा प्रहार था, जिसका सर्वप्रथम विरोध जनसंघ के संस्थापक पंडित श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने किया था।
पंडित मुखर्जी परमिट सिस्टम को तोड़ने के लिए 1953 में जम्मू-कश्मीर के लिए रवाना हुए। बगैर परमिट के जम्मू कश्मीर में प्रवेश करने पर डॉ. मुखर्जी को 11 मई 1953 में शेख अब्दुल्ला के नेतृत्व वाली सरकार ने हिरासत में ले लिया। इसके बाद उन्हें कश्मीर में 44 दिनों तक जेल में रखा गया। 23 जून 1953 को संदिग्ध स्थिति में उनकी मौत हो गई। जम्मू-कश्मीर में परमिट सिस्टम को तोड़ने के दौरान ही श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने अपने साथ आए युवा अटल बिहारी वाजपेयी से कहा था कि “जाओ अटल दुनिया को बताओ कि श्यामा ने परमिट सिस्टम को तोड़ दिया है”। उनके ही निधन के बाद 1959 में यहां परमिट सिस्टम खत्म हुआ था।
”पर अन्यायी की लंका अब न रहेगी, आने वाली संतानें यूँ न कहेगी।
पुत्रो के रहते का जननि का माथा, चुप रहे देखते अन्यायों की गाथा।
अब शोणित से इतिहास नया लिखना है, बलि-पथ पर निर्भय पाँव आज रखना है।
आओ खण्डित भारत के वासी आओ, काश्मीर बुलाता, त्याग उदासी आओ।’
अटल बिहारी वाजपेयी की ये कविता उनकी किताब “मेरी 51 कविताएं” के जम्मू की पुकार भाग की है, जिसमें कश्मीर को लेकर उनकी ह्रदय की भावनाओं सामने आ रही हैं। कश्मीर के विषय पर स्पष्ट विचार वाजपेयी के अखण्ड भारत का पहला बिगुल था, जो कभी किसी विषय-वस्तु के सामने बदला नहीं। चाहे वो लोकसभा हो या राज्यसभा, चाहे यूनाइटेड नेशन हो प्रेस वार्ता, वाजपेयी इस मुद्दे को लेकर हर जगह मुखर थे।
प्रश्न ये है कि जम्मू कश्मीर और शेष भारत के बीच यह द्वैत कब तक चलेगा? ये दुविधा कब तक चलेगी? जहां दुविधा है,वहां पृथक्करण है,अलगाव है।
जम्मू कश्मीर की अलग नागरिकता को लेकर उन्होंने सरकारों को जमकर घेरा। वे कश्मीर के अलग ध्वज का वाज़िब सवाल हर मंच पर उठाते रहे।
जम्मू कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है, लेकिन जम्मू कश्मीर का संविधान अभी तक अलग है। जम्मू कश्मीर भारत का अटूट भाग है, लेकिन जम्मू कश्मीर की नागरिकता पृथक है। कश्मीर को हम भारत माता का किरीट कहते हैं,मुकुट मणि कहते हैं,लेकिन कश्मीर का झंडा अलग है। मैं जानना चाहता हूँ कि इसका क्या कारण है? भारत का संविधान जब शेष सब राज्यों के लिए उपयुक्त है तो क्या वह जम्मू कश्मीर राज्य के लिए उपयुक्त नहीं है? भरत की जो नागरिकता भारत के 50 करोड़ नागरिकों के लिए आदर और गौरव का विषय है,वो जम्मू कश्मीर के 40 लाख नागरिकों के लिए गौरव का विषय क्यों नहीं है?
अटलबिहारी वाजपेयी का स्पष्ट मानना था कि चाहे ध्वज हो या पृथक नागरिकता हो या कश्मीर पर हो रहे खर्च की जानकारी की मांग हो ,ये सभी विषय समस्त देशवासियों के सम्रग होना चाहिए। वाजपेयी जी ने कश्मीर पर होने वाले खर्च के ब्यौरे को लेकर ऑडिटर जनरल के अधिकार के विस्तार की मांग लोकसभा में रखी थी।
कश्मीर के विकास के लिए हम केंद्र से करोड़ों रुपया खर्च कर रहे हैं। ये आवश्यक है क्योंकि कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है। कश्मीर विकास का उत्तरदायित्व हमारे ऊपर है, लेकिन यह रुपया ठीक तरह से खर्च हो रहा है या नहीं, इसकी जांच करने का ऑडिटर जनरल को अधिकार होना चाहिए। कश्मीर की सभा ने एक प्रस्ताव पास किया, लेकिन उसे कार्यान्वित नहीं किया गया। अभी तक हमारे ऑडिटर जनरल कश्मीर के हिसाब किताब की जांच नहीं कर पाए।
धारा 370, पृथक नागरिकता, पृथक ध्वज, पृथक लेखा जोखा और लद्दाख की उपेक्षा …वाजपेयी जी के इन 5 आकांक्षाओ को मोदी सरकार ने 5 अगस्त 2019 को पूरा कर कश्मीर को एक नई पहचान दी और अटल जी के अखण्ड भारत के स्वप्न को प्रचंड विजय दिलाई।
वाजपेयी कश्मीर में अलगाववाद और आतंकवाद का जड़ धारा 370 को ही मानते थे। वे हमेशा कहते थे कि पृथक संविधान और और धारा 379 के कारण जम्मू कश्मीर में एक मनोवैज्ञानिक दीवार खड़ी हो गयी है, जिसका परिणाम ये हुआ कि पाकिस्तान जैसे देशों से कश्मीर को अलग करने के लिए आतंकवाद का सहारा लिया। लेकिन वाजपेयी मानते थे कि इसका सामना हमें प्रशासनिक दृढ़ता के साथ करना होगा। मोदी सरकार द्वारा चलाई जा रही “ऑपरेशन ऑल ऑउट” में प्रशासन और सेना मिलकर आतंकवाद की कमर तोड़ रहे हैं। इस अभियान की शुरूआत साल 2016 में की गई थी। और अबतक तकरीबन 600 से अधिक आतंकी मारे जा चुके हैं.और इसी वर्ष जम्मू कश्मीर के DGP दिलबाग सिंह ने बताया कि 120 आतंकी ढ़ेर हो चुके हैं। इस अभियान के तहत आतंकवादी संगठन के कई बड़े चेहरे जैसे रियाज़ नाइकू का भी खात्मा कर दिया गया है।
अटल जी के विचारों के रास्ते और मोदी सरकार के क्रियान्वयन के जरिए कश्मीर अब आतंकवाद मुक्त होने के कगार पर है। अटल जी कहते थे कि किसी भी समस्या का समाधान संवाद से है और यही रास्ता अपनाकर आप कश्मीर 21वीं सदी में आगे बढ़ रहा है।