‘आर्य समाज को विवाह प्रमाणपत्र जारी करने का कोई हक नहीं’ सुप्रीम कोर्ट ने मैरिज सर्टिफिकेट स्वीकार करने से किया इंकार

'आर्य समाज को विवाह प्रमाणपत्र जारी करने का कोई हक नहीं'! 'Arya Samaj has no right to issue marriage certificate': Supreme Court

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  • Publish Date - June 3, 2022 / 06:53 PM IST,
    Updated On - November 29, 2022 / 08:04 PM IST

नई दिल्ली: Arya Samaj marriage certificate इन दिनों भारत सहित दुनिया के कई देशों में प्रेम विवाह का प्रचलन बढ़ गया है। जात समाज के बंधर से ऊपर उठकर किसी भी जाति धर्म की युवक-युवतियां खुद के पसंद से शादी कर रहे हैं। लेकिन अक्सर देखा गया है कि लोग कोर्ट में जाकर शादी करने के बजाए आर्य समाज के मंदिर में जाकर एक दूसरे को पति-पत्नी मान लेते हैं। लेकिन आर्य समाज में शादी करने वालों को सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा झटका दिया है।

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Arya Samaj marriage certificate दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले की सुनवाई करते हुए आर्य समाज द्वारा जारी विवाह प्रमाण पत्र को स्वीकार करने से इनकार कर दिया। साथ ही कोर्ट ने यह भी कहा कि आर्य समाज को विवाह प्रमाणपत्र जारी करने का कोई हक नहीं है। लड़की के परिवार ने युवक के खिलाफ आईपीसी की धारा 363, 366, 384, 376(2)(एन) के अलावा 384 के तहत पोक्सो एक्ट की धारा 5(एल)/6 के तहत मामला दर्ज कराया है। देश की शीर्ष अदालत की यह टिप्पणी मध्य प्रदेश में प्रेम विवाह से जुड़े एक मामले में आई है।

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मिली जानकारी के अनुसार युवती के परिजनों ने युवक पर नाबालिग होने की बात कहकर अपहरण व दुष्कर्म का आरोप लगाते हुए प्राथमिकी दर्ज कराई थी। जस्टिस अजय रस्तोगी और बीवी नागरत्ना की अवकाशकालीन पीठ ने आरोपी के वकील के उस आरोप को खारिज कर दिया, जिसमें कहा गया कि दुष्कर्म का दावा करने वाली लड़की बालिग है और उसने आर्य समाज के तहत शादी की थी। पीठ ने कहा कि आर्य समाज का काम और अधिकार क्षेत्र विवाह प्रमाण पत्र जारी करना नहीं है।

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मामले में अदालत का कहना है कि विवाह प्रमाणपत्र जारी करने का काम सक्षम प्राधिकरण करते हैं। इसलिए, अदालत के सामने असली प्रमाणपत्र प्रस्तुत किए जाने चाहिए। बता दें कि आर्य समाज एक हिंदू सुधारवादी संगठन है और इसकी स्थापना स्वामी दयानंद सरस्वती ने 1875 में की थी। इस मामले में मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट अप्रैल में सुनवाई के लिए तैयार हो गया था। न्यायमूर्ति केएम जोसेफ और न्यायमूर्ति हृषिकेश रॉय की पीठ ने आर्य प्रतिनिधि सभा को विशेष विवाह अधिनियम 1954 की धारा 5, 6, 7 और 8 के प्रावधानों को एक महीने के भीतर अपने दिशा-निर्देशों में शामिल करने को कहा।

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