अरविंद केजरीवाल : फैसलों से हमेशा चौंकाने वाले ‘ऐक्टिविस्ट’ और नेता

अरविंद केजरीवाल : फैसलों से हमेशा चौंकाने वाले ‘ऐक्टिविस्ट’ और नेता

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  • Publish Date - September 17, 2024 / 07:58 PM IST,
    Updated On - September 17, 2024 / 07:58 PM IST

नयी दिल्ली, 17 सितंबर (भाषा) अरविंद केजरीवाल एक ऐसे नेता हैं, जिन्हें संभवत: लोगों को चौंकाने में मजा आता है। भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे आम आदमी पार्टी (आप) के राष्ट्रीय संयोजक ने दिल्ली के मुख्यमंत्री पद से मंगलवार को इस्तीफा दे दिया और लोगों से कहा कि वे “ईमानदारी की उनकी राजनीति” के आधार पर उनके भविष्य का फैसला लें।

केजरीवाल ने लगभग 11 साल के अपने सियासी सफर में दूसरी बार मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दिया है।

कथित आबकारी नीति घोटाले से जुड़े धन शोधन मामले में तिहाड़ जेल से रिहा होने के दो दिन बाद ‘आप’ नेता ने रविवार को लोगों को उस समय चौंका दिया, जब उन्होंने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने की घोषणा की और कहा कि वह मुख्यमंत्री की कुर्सी पर तभी बैठेंगे, जब दिल्ली के लोग आगामी विधानसभा चुनाव में उन्हें “ईमानदारी का प्रमाणपत्र” देंगे। किसी घटनाक्रम को नाटकीय प्रभाव देने के लिए मशहूर केजरीवाल ने राष्ट्रीय राजधानी में समय पूर्व चुनाव कराने की मांग भी की।

केजरीवाल ने अपने पत्ते समझदारी से खेले हैं या फिर जोखिम का गलत आकलन किया है, इसका फैसला दिल्ली में फरवरी में प्रस्तावित विधानसभा चुनाव से होगा। लेकिन यह तो स्पष्ट है कि मंगलवार को आतिशी को नया मुख्यमंत्री बनाने और उपराज्यपाल वीके सक्सेना को अपना इस्तीफा सौंपने वाले केजरीवाल (55) को कुछ अप्रत्याशित करने में मजा आता है।

दिसंबर 2013 में केजरीवाल ने पहली बार दिल्ली के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली थी। महज 49 दिन बाद, 14 फरवरी 2014 को गठबंधन सहयोगी कांग्रेस के उनके प्रमुख प्रोजेक्ट ‘जनलोकपाल बिल’ का विरोध करने के बाद उन्होंने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया।

केजरीवाल पहली बार भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना हजारे के आंदोलन के दौरान सुर्खियों में आए थे। उन्होंने एक ऐसे व्यक्ति के रूप में अपनी छवि कायम की थी, जो अपने उसूलों को दिल के करीब रखता है।

‘आप’ के एक वरिष्ठ नेता ने नाम न जाहिर करने की शर्त पर कहा, “केजरीवाल के पास अपना खुद का दिमाग है और वह प्रयोग करने तथा जोखिम उठाने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं। वह संभवत: भारत के सियासी इतिहास के सबसे धुरंधर नेता बनने की राह पर हैं।”

केजरीवाल की कोई राजनीतिक पृष्ठभूमि नहीं थी। उन्होंने किसी स्थापित दल से जुड़ने के बजाय जमीनी स्तर के लोगों को शामिल करते हुए खुद की पार्टी बनाने का फैसला किया। वह आम आदमी पार्टी का नेतृत्व अकेले ही करते आ रहे हैं।

मुफ्त बिजली, पानी, शिक्षा एवं स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराकर खुद को जन कल्याण पहल के ‘चैंपियन’ के रूप में पेश करने वाली ‘आप’ ने देश के राजनीतिक परिदृश्य में बहुत तेजी से अपनी छाप छोड़ी।

वर्ष 2013 में चुनावी राजनीति में दस्तक देने वाली ‘आप’ ने दिल्ली की 70 विधानसभा सीट में से 28 पर कब्जा जमाया था। अब वह भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और कांग्रेस के बाद तीसरी सबसे बड़ी राष्ट्रीय पार्टी बन गई है।

निर्वाचन आयोग ने चार राज्यों-गोवा, पंजाब, गुजरात और दिल्ली के विधानसभा चुनावों में प्रदर्शन के आधार पर ‘आप’ को पिछले साल अप्रैल में राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा दिया था।

दिल्ली में ‘आप’ केजरीवाल की लोकप्रियता के बल पर 2015 और 2020 में क्रमश: 67 और 62 विधानसभा सीट जीतकर सरकार बनाने में सफल रही। मार्च 2022 में पार्टी पंजाब की 117 विधानसभा सीट में से 92 पर जीत दर्ज कर राज्य में पहली बार सत्ता में आई।

हालांकि, दिल्ली और पंजाब के बाहर दबदबा कायम करने की केजरीवाल की कोशिशें कुछ खास कामयाब नहीं हो सकी हैं।

इस साल लोकसभा चुनाव से पहले केजरीवाल विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ (इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इंक्लूसिव अलायंस) में शामिल हो गए, जिसके कई नेताओं को उन्होंने भ्रष्टाचार के मुद्दे पर घेरा था। इस समय ‘आप’ के लोकसभा में तीन और राज्यसभा में 10 सदस्य हैं।

मुफ्त तीर्थयात्रा योजना की शुरुआत और दिल्ली विधानसभा में ‘जय श्री राम’ के नारे लगाने के बाद केजरीवाल पर ‘नरम हिंदुत्व’ का रुख अपनाने के आरोप लगे थे। देश की आर्थिक समृद्धि के लिए एक बार उन्होंने भारतीय नोट पर गणेश-लक्ष्मी की तस्वीर मुद्रित करने की मांग की थी।

हरियाणा के हिसार से आने वाले केजरीवाल ने भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) खड़गपुर से इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल की और फिर भारतीय राजस्व सेवा (आईआरएस) में शामिल हो गए।

साल 2000 में आयकर विभाग की नौकरी छोड़ने के बाद उन्होंने सूचना का अधिकार (आरटीआई) कार्यकर्ता के रूप में काम किया और दिल्ली की झुग्गियों में रहने वाले लोगों की समस्याओं को समझने के लिए उनके बीच रहे। 2011 में वह अन्ना हजारे के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन से जुड़ गए।

केजरीवाल बिजली, पानी, शिक्षा, स्वास्थ्य जैसे मुद्दों को अपनी राजनीति और शासन के केंद्र में रखने में कामयाब रहे। उनके विरोधियों ने उन पर “मुफ्त की रेवड़ी बांटने की राजनीति” करने का आरोप भी लगाया।

इस साल मार्च में केजरीवाल भ्रष्टाचार के एक मामले में गिरफ्तार हुए और पांच महीने से अधिक समय तक सलाखों के पीछे रहे। उन्हें मुख्यमंत्री आवास में मरम्मत एवं साज-सज्जा कार्य के लिए सरकारी धन के दुरुपयोग के आरोपों का भी सामना करना पड़ा था।

भाषा पारुल दिलीप

दिलीप