politicians raising questions on court decisions
रायपुर: देश में लोकसभा चुनाव अब अपने अंतिम चरण की ओर हैं। लेकिन बीते कुछ दिनों में हमने देश के विभिन्न राजनीतिक दलों के कई नेताओं के कुछ ऐसे बयान सुने हैं। जिसके बाद एक तरफ प्रश्न राजनेताओं की मंशा पर तो दूसरी तरफ अदालत के फैसलों पर भी प्रश्न उठ रहे हैं। लोगों में द्विविधा की स्थिति ये है कि क्या राजनेताओं का कोर्ट के फैसलों पर सवाल उठाना सही है या अदालत के आचरण में भी परिवर्तन आया है।(politicians raising questions on court decisions) इस लेख में आगे हम इस बात को कुछ उदाहरणों के जरिए समझते हैं।
सबसे पहले हम बात करते हैं पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी की, जिन्होंने हाल ही में यानि बीते 22 मई को कलकत्ता हाईकोर्ट के फैसले को ही भरे मंच में चुनौती दे दी। दरअसल, कलकत्ता हाईकोर्ट ने बुधवार को 2010 के बाद पश्चिम बंगाल में जारी किए गए सभी अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के जाति प्रमाणपत्र रद्द कर दिए हैं। इसके बाद इस मामले पर चुनावी सीजन में राजनीति तेज हो गई।
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने साफ तौर पर कहा कि कहा कि वो और उनकी सरकार कलकत्ता हाई कोर्ट के इस फैसले को स्वीकार नहीं करेगी। उन्होंने इस फैसले को ऊपरी अदालत में चुनौती देने की बात कही। सीएम ममता बनर्जी ने बुधवार को उत्तर 24 परगना जिले के हरदाहा में एक जनसभा को संबोधित किया। इस दौरान उन्होंने कहा, मैं कलकत्ता हाईकोर्ट के इस आदेश को स्वीकार नहीं करती हूं। हाल ही में हाईकोर्ट ने सरकारी स्कूलों में लगभग 26 हजार नौकरियां रद्द कर दी थीं। मैंने वह आदेश भी स्वीकार नहीं किया था। उन्होंने आगे कहा कि मुझे आदेश मिल गया है और अब मैं खेला खेलूंगी। उन्होंने आगे कहा, ”मैं किसी का नाम नहीं लूंगी। इसे किसी ने भी पारित किया हो, लेकिन मैं यह जरूर कहूंगी कि यह आदेश बीजेपी के पक्ष में है। इसलिए हम इसे स्वीकार नहीं करेंगे।”
वहीं इसके पहले कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कोर्ट के फैसले पर सवाल उठाते हुए कहा कि दिल्ली के सीएम अरविंद केजरी वाल को बेल मिल गई जबकि आदिवासी सीएम सोरेन को बेल नहीं मिली। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने हरियाणा के पंचकुला में ‘संविधान सम्मान सम्मेलन’ को संबोधित किया। इस दौरान उन्होंने बीजेपी पर जमकर हमला बोलते हुए बड़ी बात कह दी। उन्होंने कहा कि दो सीएम जेल गए एक को नहीं मिली जमानत.. राहुल गांधी ने इशारों में ही सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर सवाल उठाए। (politicians raising questions on court decisions)क्यों कि झारखंड के सीएम रहे हेमंत सोरेन भी जेल में उन्हे शीर्ष अदालत ने जमानत नहीं दी। हालाकि उन्होंने सीएम पद से इस्तीफा दे दिया था।
इधर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भी बुधवार को ही कहा कि अगर ‘इंडिया’ गठबंधन सत्ता में आता है तो वह न्यायपालिका को मौजूदा ‘अत्यधिक दबाव’ से मुक्त करेगा और साथ ही पांच जून को जेल से उनकी रिहाई भी सुनिश्चित करेगा। अंतरिम जमानत पर तिहाड़ जेल से रिहा होने के बाद केजरीवाल अपनी चुनावी रैलियों में कहते रहे हैं कि अगर विपक्षी ‘इंडिया’ गठबंधन जीतता है, तो चार जून को लोकसभा चुनाव के नतीजे घोषित होने के अगले दिन वह जेल से मुक्त हो जाएंगे।
पीटीआई वीडियो को दिए गए साक्षात्कार में केजरीवाल से पूछा गया कि वह ऐसा बयान कैसे दे सकते हैं, जिसका अर्थ है कि उनके खिलाफ भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों के बावजूद ‘इंडिया’ गठबंधन उन्हें मुक्त कराने के लिए अदालत की बांह मरोड़ देगा। केजरीवाल ने कहा, ‘न्यायपालिका इस समय काफी दबाव में है। हर कोई जानता है कि वह अब कितने दबाव में काम कर रही है।’ यह पूछे जाने पर कि क्या उनका मतलब यह है कि जीतने की स्थिति में ‘इंडिया’ गठबंधन की सरकार भी उन्हें रिहा कराने के लिए अदालतों पर दबाव डालेगी। केजरीवाल ने कहा, “हम कोई दबाव नहीं डालेंगे, लेकिन अगर न्यायपालिका से दबाव हटा दिया जाए तो न्याय निष्पक्षता से मिलना शुरू हो जाएगा।”
बता दें कि केजरीवाल को उनकी सरकार की आबकारी नीति से संबंधित धनशोधन मामले में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने 21 मार्च को गिरफ्तार किया था। इस मामले में उनके पूर्व शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया, एक अन्य मंत्री सत्येन्द्र जैन भी तिहाड़ में बंद हैं। केजरीवाल को मौजूदा लोकसभा चुनाव में अपनी पार्टी के प्रचार अभियान में शामिल होने के लिए एक जून यानी आखिरी चरण के मतदान तक के लिए उच्चतम न्यायालय से 10 मई को अंतरिम जमानत मिली है।
इसके पहले अरविंद केजरी को अंतरिम जमानत दिए जाने पर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर सवालिया निशान लगाए थे। समाचार एजेंसी एएनआई को दिए एक इंटरव्यू के दौरान अमित शाह ने कहा था कि ”दिल्ली उत्पाद शुल्क नीति मामले में 21 मार्च को ईडी द्वारा गिरफ्तार किए गए केजरीवाल को अंतरिम जमानत देना एक सामान्य निर्णय नहीं था। उन्होंने कहा कि देश के कई लोगों का मानना है कि उन्हें विशेष तरजीह दी गई है।”
हालाकि इस मामले में बीते गुरूवार 16 मई को प्रवर्तन निदेशालय और अरविंद केजरीवाल के वकीलों के बीच सुप्रीम कोर्ट में तीखी बहस हुई। इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उसने लोकसभा चुनाव प्रचार के लिए दिल्ली के मुख्यमंत्री को 1 जून तक के लिए अंतरिम जमानत देते समय कोई विशेष छूट नहीं दी है। कोर्ट ने यह भी कहा कि हम इसको लेकर होने वाली आलोचनाओं का स्वागत करते हैं। शीर्ष अदालत ने कहा कि हमने वही किया जो हमें न्यायोचित लगा।
कोर्ट ने मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के उस बयान पर ईडी की आपत्तियों को दरकिनार करते हुए यह टिप्पणी की, जिसमें उन्होंने चुनावी सभा को संबोधित करते हुए कहा था कि यदि जनता अधिक से अधिक ‘आप’ के झाड़ू चुनाव चिह्न पर मतदान करती है तो उन्हें 2 जून को दोबारा जेल नहीं जाना होगा। इस पर कोर्ट ने कहा कि यह केजरीवाल की धारणा है, हम इसमें पड़ना नहीं चाहते हैं। कोर्ट ने कहा कि हमारा आदेश इस बारे में बहुत साफ है कि केजरीवाल को कब आत्मसमर्पण करना है।
नेताओं के इन बयानों से साफ है कि राजनीतिक एजेंडे को सही साबित करने के लिए नेता कोर्ट के फैसलों पर भी सवाल उठा रहे हैं। सवाल यह है कि क्या इस तरह से सुप्रीम कोर्ट या हाईकोर्ट के फैसलों पर सवाल उठाना सही है? या फिर दूसरा सवाल यह कि जैसा खुद यही नेता कह रहे हैं कि कोर्ट के आचार व्यवहार भी सवाल उठाने लायक हो गए हैं? और कोर्ट राजनीतिक दबाव में दोहरा मापदंड अपना रही है? यह सवाल हम आपके लिए छोड़कर जा रहे हैं चिंतन मनन जरूर करिएगा।
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