कर्नाटक में नक्सलियों के आत्मसमर्पण की नीति पर अन्नामलाई ने उठाए सवाल

कर्नाटक में नक्सलियों के आत्मसमर्पण की नीति पर अन्नामलाई ने उठाए सवाल

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  • Publish Date - January 11, 2025 / 07:26 PM IST,
    Updated On - January 11, 2025 / 07:26 PM IST

उडुपी (कर्नाटक), 11 जनवरी (भाषा) भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की तमिलनाडु इकाई के अध्यक्ष के. अन्नामलाई ने कर्नाटक में नक्सलियों के आत्मसमर्पण और पुनर्वास की नीति पर चिंता जाहिर करते हुए इसकी प्रभावशीलता और पारदर्शिता पर सवाल उठाया है।

अन्नामलाई ने उडुपी में शनिवार को एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए सवाल उठाए। उन्होंने जनवरी 2015 से अगस्त 2016 के बीच उडुपी में पुलिस अधीक्षक (एसपी) और 2018 में कर्नाटक में नक्सलियों का गढ़ माने जाने वाले चिकमंगलुरु के पुलिस अधीक्षक (एसपी) के तौर पर कार्य किया था।

अन्नामलाई ने कहा कि नक्सलियों से संबंधित नीति का उद्देश्य नक्सलवाद का राह छोड़ चुके लोगों को मुख्यधारा में पुनः शामिल करना है, लेकिन इसके कार्यान्वयन को लेकर संदेह बना हुआ है।

उन्होंने बताया, ‘‘हाल ही में नक्सलियों द्वारा किए गए आत्मसमर्पण ने कई सवाल खड़े किए हैं। उपायुक्त और पुलिस अधीक्षक की मौजूदगी में होने वाली आत्मसमर्पण की प्रक्रिया नक्सलियों के लिए बहुत आसान बना दी गई है।’’

अन्नामलाई ने आत्मसमर्पण प्रक्रिया की विश्वसनीयता पर भी सवाल उठाया और कहा कि सरकार का दृष्टिकोण नीति की सुचिता पर संदेह पैदा कर सकता है। उन्होंने विक्रम गौड़ा मुठभेड़ का उदाहरण दिया, जिससे स्थानीय लोग चिंतित हैं।

उन्होंने कहा, ‘‘ऐसी खबरें हैं कि मुख्यमंत्री खुद आत्मसमर्पण प्रक्रिया में शामिल रहे थे और एक सुदूर जंगल वाले स्थान पर हथियारों को दिखाया गया था। जनता के लिए इस कथन पर विश्वास करना मुश्किल हो रहा है।’’

अन्नामलाई ने यह टिप्पणी ऐसे समय में की है जब कर्नाटक में नक्सलियों की समस्या से निपटने के तरीके पर बहस जारी है और इसमें नेता तथा कार्यकर्ता आत्मसमर्पण के प्रति सरकार के दृष्टिकोण पर सवाल उठा रहे हैं।

अन्नामलाई ने ‘सिटीजन्स फॉर सोशल जस्टिस’ द्वारा उडुपी में आयोजित एक कार्यक्रम में विकास कुमार पी द्वारा लिखित पुस्तक ‘‘संविधान बदलयिसिदा यारु?’’ (संविधान को किसने बदला) का विमोचन किया।

उन्होंने सोशल मीडिया मंच ‘एक्स’ पर एक पोस्ट में कहा, ‘‘यह पुस्तक कांग्रेस शासन के दौरान किए गए कई संशोधनों के बारे में बताती है, जिनका उद्देश्य हमारे नागरिकों के मौलिक अधिकारों, नागरिकों की स्वतंत्रता और यहां तक ​​कि संविधान की प्रस्तावना के अर्थ को भी कमजोर करना था।’’

भाषा

प्रीति धीरज

धीरज