अहोम ‘मोईदाम’ को यूनेस्को की विश्व विरासत सूची में शामिल करने की सिफारिश की गयी

अहोम ‘मोईदाम’ को यूनेस्को की विश्व विरासत सूची में शामिल करने की सिफारिश की गयी

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  • Publish Date - July 4, 2024 / 12:45 PM IST,
    Updated On - July 4, 2024 / 12:45 PM IST

(त्रिदीप लहकर)

गुवाहाटी, चार जुलाई (भाषा) असम के चराईदेव जिले में अहोम साम्राज्य के शाही परिवारों के लिए बनी कब्रगाह ‘मोईदाम’ को यूनेस्को विश्व विरासत सूची में शामिल करने की सिफारिश की गयी है।

यूनेस्को के स्मारकों और स्थलों पर अंतरराष्ट्रीय परिषद (आईसीओएमओएस) ने यह अनुशंसा की है। उसने नयी दिल्ली में 21-31 जुलाई को होने वाले विश्व विरासत समिति के 46वें सामान्य सत्र के लिए ‘सांस्कृतिक और मिश्रित संपत्तियों के नामांकन का मूल्यांकन’ रिपोर्ट तैयार की है।

इस रिपोर्ट की प्रति ‘पीटीआई-भाषा’ के पास उपलब्ध है। इसमें दुनियाभर से मिले कुल 36 नामांकनों का मूल्यांकन किया गया। भारत की ओर से अहोम मोईदाम का आवेदन इकलौता है।

इसमें कहा गया है, ‘‘आईसीओएमओएस अहोम साम्राज्य की टीला-दफन प्रणाली को मानदंड (तृतीय) और (चतुर्थ) के आधार पर विश्व विरासत सूची में शामिल किए जाने की सिफारिश करता है।’’

इस सिफारिश के साथ ही मोईदाम संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) की विश्व विरासत सूची में औपचारिक रूप से शामिल होने से महज एक कदम पीछे है।

फ्रांस स्थित आईसीओएमओएस सांस्कृतिक विरासत के लिए यूनेस्को की एक परामर्शदात्री संस्था है। यह एक अंतरराष्ट्रीय गैर सरकारी संगठन है जिसमें पेशेवर, विशेषज्ञ, स्थानीय प्राधिकारियों के प्रतिनिधि, कंपनियां और विरासत संगठन शामिल हैं तथा यह दुनियाभर में वास्तुकला और परिदृश्य विरासत के संरक्षण और संवर्द्धन के लिए समर्पित है।

इस रिपोर्ट में कहा गया है कि 90 मोईदाम ऊंची भूमि पर स्थित चराईदेव कब्रिस्तान के भीतर पाए गए हैं। इसे ईंट, पत्थर या पृथ्वी पर एक टीला बनाकर निर्मित किया जाता था और इसके शीर्ष पर एक अष्टकोणीय दीवार के मध्य में एक मंदिर होता है।

चराईदेव में स्थित मोईदाम अहोम राजा और रानियों की कब्रें है। इनकी तुलना मिस्र के पिरामिडों से की जाती है।

रिपोर्ट में कहा गया है, ‘‘आईसीओएमओएस मानता है कि नामित संपत्ति चराईदेव में ताई-अहोम की 600 वर्ष की परंपराओं को दर्शाती है। आईसीओएमओएस का मानना ​​है कि नामांकित संपत्ति ताई-अहोम कब्रिस्तान का एक असाधारण उदाहरण है जो उनकी अंत्येष्टि परंपराओं और उससे जुड़े ब्रह्मांड विज्ञान का मूर्त रूप में प्रतिनिधित्व करता है।’’

ताई-अहोम 13वीं शताब्दी में असम में आकर बस गए थे और उन्होंने चराइदेव को अपनी पहली राजधानी तथा शाही कब्रिस्तान के लिए स्थान के रूप में चुना था। 19वीं सदी तक 600 वर्षों तक उन्होंने मोईदाम बनाए जो पहाड़ियों, जंगलों और पानी की प्राकृतिक विशेषताओं के अनुरूप हैं।

भाषा गोला वैभव

वैभव