नईदिल्ली। केंद्र सरकार ने धारा 370 और 35 ए के ज़्यादातर प्रावधान खत्म करने का फैसला करते हुए कश्मीर के पुनर्गठन का प्रस्ताव पेश किया। अब जम्मू-कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश होगा, जबकि लद्दाख को भी अलग कर केंद्र शासित प्रदेश बना दिया गया। भारत के बाहर भी इसे लेकर पाकिस्तानी मीडिया में किस तरह से प्रतिक्रिया आ रही हैं।
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पाकिस्तान के प्रमुख मीडिया समूह द नेशन ने तल्ख प्रतिक्रिया दर्ज कराते हुए लिखा है कि भारत सरकार ने कश्मीर से एक पूरी नस्ल का सफ़ाया करने की राह पकड़ ली है। पाकिस्तानी पोर्टल द नेशन ने एक ओपिनियन के ज़रिए लिखा है कि भारत का यह फैसला ‘मोदी की युद्ध नीति’ का सबूत है। भारत सरकार कश्मीर में एक ‘नस्ल के सफाये’ के लिए इज़रायली मॉडल को अपना रही है। इस ओपिनियन में लिखा गया है कि भारत सरकार अपने मंसूबों के लिए पांच नीतियां अपना सकती है।
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वहीं पाकिस्तानी समाचार पोर्टल द न्यूज़ ने लिखा कि भारत सरकार ने सुरक्षा के नाम पर कश्मीर को ताले में बंद किया और कारण बताया कि आतंकी खतरा था। द न्यूज़ ने महबूबा मुफ्ती और उमर अब्दुल्ला जैसे कश्मीरी नेताओं को नज़रबंद किए जाने और कश्मीर में कर्फ्यू लगाए जाने के हालात को भी प्रमुखता से छापा।
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पाकिस्तानी मीडिया पोर्टल डॉन ने लिखा कि राज्यसभा में गृह मंत्री अमित शाह के अभिभाषण के बाद हंगामा मचा। डॉन ने विपक्षी खेमे के नेता गुलाम नबी आज़ाद के कोट को छापा जिसमें आज़ाद ने कहा था, ‘भाजपा ने आज संविधान की हत्या की’। भारत में कैबिनेट बैठक और कश्मीर में कर्फ्यू जैसे हालात व संचार सेवाएं बंद किए जाने की सूचना भी डॉन ने छापी।
डॉन ने दूसरे लेख में कश्मीर के ताज़ा हालात को लेकर भारत सरकार को हिंदू राष्ट्रवादी नेतृत्व करार दिया और भारत के इस फैसले के आलोचकों का हवाला देते हुए लिखा कि आर्टिकल 370 को खत्म कर भारत सरकार की मंशा ये है कि कश्मीर की जनसांख्यिकी के समीकरणों को बदल दिया जाए। डॉन ने साफ लिखा कि भारत सरकार का यह कदम असल में, बड़ी हिंदू आबादी को बसाने से कश्मीर की मुस्लिम बहुल आबादी को रिप्लेस किए जाने की कोशिश होगी।
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जिओ टीवी के पोर्टल ने भारत सरकार के इस फैसले पर पाकिस्तान की प्रतिक्रिया को प्रमुखता से छापते हुए पाकिस्तान नेता प्रतिपक्ष शहबाज़ शरीफ के हवाले से लिखा कि भारत सरकार का यह फैसला ‘अस्वीकार्य’ और ‘संयुक्त राष्ट्र के खिलाफ द्रोह’ है। वहीं, इस पोर्टल ने पीपीपी के प्रमुख बिलावल भुट्टो ज़रदारी का बयान छापते हुए लिखा कि कट्टर व अतिवादी भारत सरकार की मंशाएं ज़ाहिर हो चुकी हैं इसलिए राष्ट्रपति को फौरन संसद का संयुक्त सत्र बुलाना चाहिए।