संघर्षों के समाधान के लिए शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के बौद्ध सिद्धांतों को अपनाना आवश्यक है: राजनाथ

संघर्षों के समाधान के लिए शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के बौद्ध सिद्धांतों को अपनाना आवश्यक है: राजनाथ

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  • Publish Date - November 21, 2024 / 01:23 PM IST,
    Updated On - November 21, 2024 / 01:23 PM IST

(फोटो के साथ)

नयी दिल्ली, 21 नवंबर (भाषा) रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने बृहस्पतिवार को लाओस में क्षेत्रीय सुरक्षा सम्मेलन में कहा कि दुनिया को अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था के समक्ष जारी संघर्षों और चुनौतियों का समाधान खोजने के लिए बौद्ध सिद्धांतों को अपनाना चाहिए।

उन्होंने सम्मेलन में चीन के डोंग जून सहित कई देशों के उनके समकक्षों की उपस्थिति में कहा कि भारत ने जटिल अंतरराष्ट्रीय मुद्दों के समाधान के लिए हमेशा से संवाद की वकालत की है तथा सीमा विवादों से लेकर व्यापार समझौतों तक, अंतरराष्ट्रीय चुनौतियों की एक विस्तृत श्रृंखला को लेकर अपना दृष्टिकोण जाहिर किया है।

रक्षा मंत्री ने लाओस की राजधानी विएंतियान में 10 देशों के संगठन आसियान समूह और उसके कुछ वार्ता साझेदारों के सम्मेलन में ये टिप्पणी की।

उन्होंने कहा, ‘‘विश्व तेजी से गुटों और खेमों में बंटता जा रहा है, जिससे स्थापित विश्व व्यवस्था पर दबाव बढ़ रहा है। इसलिए समय आ गया है कि शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के बौद्ध सिद्धांतों को सभी लोग और अधिक गहराई से अपनाएं।’’

उन्होंने कहा, ‘‘इन सिद्धांतों का पालन करते हुए भारत ने जटिल अंतरराष्ट्रीय मुद्दों के समाधान के लिए सदैव बातचीत की वकालत की है और इसे अपनाया भी है।’’

रक्षा मंत्री सिंह ने कहा कि खुले संवाद और शांतिपूर्ण वार्ता के प्रति भारत की प्रतिबद्धता, सीमा विवादों सहित कई अंतरराष्ट्रीय चुनौतियों के प्रति उसके दृष्टिकोण से स्पष्ट होती है।

उन्होंने आसियान (दक्षिण पूर्वी एशियाई राष्ट्रों का संघ) रक्षा मंत्रियों की बैठक आसियान डिफेंस मिनिस्टर्स मीटिंग प्लस (एडीएमएम-प्लस) समूह के सम्मेलन में कहा, ‘‘खुली बातचीत विश्वास, समझ और सहयोग को बढ़ावा देती है तथा स्थायी साझेदारी की नींव रखती है। बातचीत की ताकत हमेशा प्रभावी साबित हुई है, जिसके ठोस परिणाम सामने आए हैं जो वैश्विक मंच पर स्थिरता और सद्भाव में योगदान करते हैं।’’

हिंद-प्रशांत को लेकर भारत के दृष्टिकोण को रेखांकित करते हुए रक्षा मंत्री ने कहा कि भारत क्षेत्र में शांति एवं समृद्धि के लिए आधारशिला के रूप में 10 देशों के आसियान (दक्षिण पूर्व एशियाई राष्ट्र संघ) की महत्वपूर्ण भूमिका को स्वीकारता है।

उन्होंने कहा, ‘‘दक्षिण चीन सागर के लिए आचार संहिता पर जारी चर्चाओं के संबंध में भारत एक ऐसी संहिता देखना चाहेगा, जिससे उन देशों के वैध अधिकारों और हितों पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़े, जो इन चर्चाओं में पक्षकार नहीं हैं।’’

दक्षिण चीन सागर के लिए आचार संहिता पर उनकी टिप्पणी ऐसे समय में आई है जब क्षेत्र में चीन की बढ़ती सैन्य ताकत की पृष्ठभूमि में विभिन्न देश इस संबंध में आचार संहिता की आवश्यकता पर जोर दे रहे हैं।

चीन इस आचार संहिता का दृढ़ता से विरोध करता है।

सिंह ने कहा, ‘‘यह संहिता अंतरराष्ट्रीय कानून, विशेष रूप से संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून 1982 के बिल्कुल अनुरूप होनी चाहिए।’’

उन्होंने कहा कि भारत नौवहन और उड़ान की स्वतंत्रता, बेरोकटोक वैध वाणिज्य और अंतरराष्ट्रीय कानून के पालन का पक्षधर रहा है।

दक्षिण चीन सागर हाइड्रोकार्बन का एक बड़ा स्रोत है। समूचे दक्षिण चीन सागर पर चीन के व्यापक दावों को लेकर वैश्विक स्तर पर चिंताएं बढ़ रही हैं।

वियतनाम, फिलीपीन और ब्रुनेई सहित क्षेत्र के कई देश भी दक्षिण चीन सागर को लेकर अपने अपने दावे करते हैं।

जटिल चुनौतियों के प्रति भारत के दृष्टिकोण पर प्रकाश डालते हुए सिंह ने कहा कि उनका मानना ​​है कि वैश्विक समस्याओं का वास्तविक और दीर्घकालिक समाधान तभी प्राप्त किया जा सकता है जब देश रचनात्मक रूप से जुड़ेंगे, एक-दूसरे के दृष्टिकोण का सम्मान करेंगे तथा सहयोग की भावना से साझा लक्ष्यों की दिशा में काम करेंगे।

उन्होंने कहा, ‘‘हम ऐसे समय में लाओस में मिल रहे हैं जब विश्व के विभिन्न भागों में संघर्ष जारी हैं और अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था के समक्ष चुनौतियां हैं। लाओस ने लंबे समय से अहिंसा और शांति के बौद्ध सिद्धांतों को आत्मसात किया है।’’

सिंह ने तर्क दिया कि बौद्ध धर्म न केवल लोगों के बीच शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व बल्कि प्रकृति के साथ लोगों के सह-निवास का भी आदर्श विचार प्रदान करता है।

उन्होंने कहा, ‘‘अपने पूरे जीवन में बुद्ध प्रकृति के करीब रहे। वह प्राय: वन और खुली जगहों पर ध्यान करते थे तथा शिक्षा देते रहे। अपनी शिक्षाओं में उन्होंने पृथ्वी के साथ जीवन के जुड़ाव पर जोर दिया।’’

रक्षा मंत्री ने आसियान क्षेत्र के साथ भारत के घनिष्ठ संबंधों पर भी प्रकाश डाला और कहा कि 21वीं सदी ‘एशिया की सदी’ है।

उन्होंने कहा, ‘‘विशेष रूप से आसियान क्षेत्र हमेशा से आर्थिक रूप से गतिशील रहा है तथा हजारों वर्षों से व्यापार, वाणिज्य और सांस्कृतिक गतिविधियों से भरा रहा है। इस परिवर्तनकारी यात्रा के दौरान भारत इस क्षेत्र का एक विश्वसनीय मित्र बना रहा है।’’

इस संदर्भ में सिंह ने रवींद्रनाथ टैगोर के एक कथन का भी उल्लेख किया, जो उन्होंने 1927 में दक्षिण पूर्व एशिया की यात्रा के दौरान कहा था। टैगोर ने कहा था, ‘‘मैं हर जगह भारत को देख सकता हूं, फिर भी मैं इसे पहचान नहीं सका।’’

रक्षा मंत्री ने कहा कि यह बयान इस बात का प्रतीक है कि भारत और दक्षिण पूर्व एशिया के बीच सांस्कृतिक और ऐतिहासिक संबंध कितने गहरे और व्यापक हैं।

उन्होंने कहा, ‘‘यह मित्रता और साझेदारी आज भी उतनी ही प्रासंगिक है जितनी तब थी तथा आने वाले समय में इसे और मजबूत करने की जरूरत है।’’

उनहोंने कहा, ‘‘भारत की ‘एक्ट ईस्ट’ नीति का एक दशक पूरा हो गया है और हम आसियान तथा हिंद-प्रशांत देशों के साथ भारत के संबंधों को मजबूत बनाने में इसके लाभ देख रहे हैं। इस दृष्टिकोण ने हमारे राष्ट्र की नीति के आधार के रूप में आसियान की महत्वपूर्ण भूमिका पर पुनः जोर दिया है।’’

सिंह ने मुख्य रूप से ‘एडीएमएम-प्लस’ बैठक में भाग लेने के लिए बुधवार को विएंतियान की अपनी तीन दिवसीय यात्रा शुरू की।

‘एडीएमएम-प्लस’ एक मंच है जिसमें 10 आसियान देश और इसके आठ वार्ता साझेदार – भारत, चीन, ऑस्ट्रेलिया, जापान, न्यूजीलैंड, कोरिया गणराज्य, रूस और अमेरिका शामिल हैं।

लाओस ‘एडीएमएम-प्लस’ के वर्तमान अध्यक्ष के रूप में इस बैठक की मेजबानी कर रहा है।

भाषा सुरभि नरेश

नरेश