उच्चतम न्यायालय में बड़े फैसलों वाला रहा गुजरता साल

उच्चतम न्यायालय में बड़े फैसलों वाला रहा गुजरता साल

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  • Publish Date - December 26, 2024 / 04:41 PM IST,
    Updated On - December 26, 2024 / 04:41 PM IST

(अभिषेक अंशु, पवन के सिंह और संजीव कुमार)

नयी दिल्ली, 26 दिसंबर (भाषा) राजनीतिक दलों को चंदा देने के लिए चुनावी बांड योजना को समाप्त करने, ‘बुलडोजर से भवनों को गिराने’ के सरकारी फैसलों के संबंध में दिशानिर्देश जारी करने और सभी अदालतों को धार्मिक स्थलों को लेकर विवादों पर सुनवाई नहीं करने का आदेश जारी करने जैसे फैसले इस साल उच्चतम न्यायालय के प्रमुख निर्णयों में रहे।

इस साल सर्वोच्च अदालत में नेतृत्व परिवर्तन भी हुआ।

भारत के प्रधान न्यायाधीश पद से न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ के सेवानिवृत्त होने के बाद न्यायमूर्ति संजीव खन्ना ने 11 नवंबर को यह जिम्मेदारी संभाली।

न्यायमूर्ति खन्ना ने लंबित मामलों को कम करने के लिए उच्चतम न्यायालय में मामलों को सूचीबद्ध करने के तरीके में अहम सुधार किया और तत्काल सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करने वाले मामलों में मौखिक उल्लेख की पुरानी प्रक्रिया को समाप्त किया।

इस साल देश में उपासना स्थलों को लेकर भी कई कानूनी विवाद सामने आए जिनमें से बहुत से मामले उच्चतम न्यायालय पहुंचे। ज्ञानवापी, मथुरा, भोजशाला और संभल जैसे कुछ मामलों में उपासना स्थलों पर एक समुदाय के दावों से जुड़े मामले न्यायालय में पहुंचे।

शीर्ष अदालत ने कृष्ण जन्मभूमि मंदिर विवाद में मथुरा में शाही ईदगाह मस्जिद में सर्वे की अनुमति देने के इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश पर 16 जनवरी को स्थगन लगा दिया था। उच्चतम न्यायालय ने 12 दिसंबर को एक महत्वपूर्ण आदेश में अगले आदेश तक देश की अदालतों को धार्मिक स्थलों, विशेषकर मस्जिदों और दरगाहों पर दावा करने संबंधी नए मुकदमों पर विचार करने और लंबित मामलों में कोई भी प्रभावी अंतरिम या अंतिम आदेश पारित करने से रोक दिया।

उच्चतम न्यायालय के कुछ फैसलों के राजनीतिक प्रभाव भी रहे। चुनावी बांड मामले में 15 फरवरी को एक ऐतिहासिक फैसले में पांच न्यायाधीशों की पीठ ने गुमनाम राजनीतिक चंदे की इस योजना पर रोक लगा दी और राजनीतिक जवाबदेही का रास्ता तय किया।

चुनाव के दौरान मतदान के लिए मतपत्रों का फिर से इस्तेमाल शुरू करने के अनुरोध वाली याचिकाओं को शीर्ष अदालत ने स्वीकार नहीं किया।

शीर्ष अदालत ने इस संबंध में मुख्य याचिका 26 अप्रैल को और पुनर्विचार याचिका 30 जुलाई को खारिज कर दी थी। उसने कहा था, ‘‘जब आप चुनाव जीत जाते हैं तब ईवीएम से छेड़छाड़ नहीं होती। जब आप चुनाव हार जाते हैं तो ईवीएम से छेड़छाड़ हो जाती है।’’

जब कुछ राज्यों में सरकारों ने दंडात्मक कार्रवाई के रूप में आरोपियों के घरों को गिराने के आदेश दिए तो शीर्ष अदालत ने 13 नवंबर को पूरे देश के लिए दिशानिर्देश बनाए।

इसमें कहा गया कि कारण बताओ नोटिस के बिना और 15 दिन तक उसका जवाब देने की सीमा से पहले संपत्ति को ध्वस्त नहीं किया जाना चाहिए।

उच्चतम न्यायालय ने नीट-यूजी 2024 की परीक्षा में धांधली के दावों के बाद 23 जुलाई को इस परीक्षा को स्थगित करने से मना कर दिया और कहा कि परीक्षा की शुचिता का क्रमबद्ध तरीके से उल्लंघन करने का कोई प्रमाण नहीं हैं।

बड़े कॉर्पोरेट समूहों के मामले भी देश की सर्वोच्च अदालत में पहुंचे। न्यायालय में तीन जनवरी को अदाणी समूह को उस समय बड़ी राहत मिली जब शीर्ष अदालत ने उस पर शेयर मूल्यों में छेड़छाड़ संबंधी आरोपों में जांच को किसी विशेष जांच दल या सीबीआई को हस्तांतरित करने से इनकार कर दिया।

हालांकि वेदांता समूह को झटका लगा जब न्यायालय ने तमिलनाडु के थूतूकुड़ी में उसके कॉपर स्मेल्टिंग संयंत्र को फिर से खोलने के अनुरोध को नहीं माना। प्रदूषण संबंधी चिंताओं के कारण संयंत्र मई 2018 से बंद है।

शीर्ष अदालत ने सात नवंबर को जेट एयरवेज के परिसमापन का आदेश दिया, जो अप्रैल 2019 से बंद है। अदालत ने सफल बोलीदाता द्वारा लगाए गए 200 करोड़ रुपये को जब्त करने के निर्देश जारी किए और एसबीआई के नेतृत्व वाले ऋणदाताओं को 150 करोड़ रुपये की निष्पादन बैंक गारंटी को भुनाने की अनुमति भी दी।

उच्चतम न्यायालय ने इस साल के एक अहम फैसले में व्यवस्था दी कि राज्यों को खनिज अधिकार पर कर लगाने का विधायी अधिकार है तथा खनिजों पर अदा की जाने वाली रॉयल्टी को कर नहीं माना जा सकता।

एक अन्य व्यवस्था में राज्यों को औद्योगिक अल्कोहल के विनिर्माण, वितरण और उत्पादन के विनियमन की अनुमति दी गई।

ऐसे मामले भी सामने आए जिनमें उच्चतम न्यायालय ने सख्त रुख अपनाया और लंबे समय से जेलों में बंद आरोपियों को जमानत नहीं दी।

इस साल शीर्ष अदालत ने दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, पूर्व उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया, बीआरएस की नेता के. कविता तथा द्रमुक नेता वी सेंथिल बालाजी जैसे राजनीतिक दिग्गजों को जमानत दे दी और कहा कि ‘‘जमानत नियम है और जेल अपवाद है’’।

इस साल कुछ संविधान पीठों ने महत्वपूर्ण फैसलों पर व्यवस्था दी। इनमें अनुसूचित जातियों में आरक्षण आधारित उप-वर्गीकरण, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय का अल्पसंख्यक दर्जा, एलएमवी ड्राइविंग लाइसेंस की जरूरत और सरकारी कर्मचारियों की नियुक्ति जैसे विषय रहे।

करोड़ों लोगों की भावनाओं को ध्यान में रखते हुए उच्चतम न्यायालय ने तिरुपति में प्रसाद के लड्डू बनाने में पशु वसा इस्तेमाल होने के दावों की जांच के लिए पांच सदस्यीय विशेष जांच दल का गठन किया।

देश के शीर्षस्थ न्यायालय ने कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में नौ अगस्त को एक प्रशिक्षु चिकित्सक से दुष्कर्म और उसकी हत्या के मामले में देशभर में पैदा हुए आक्रोश का संज्ञान लिया और पश्चिम बंगाल पुलिस की शुरुआती जांच पर रोक लगाई तथा सीबीआई जांच पर नजर रखी।

न्यायालय ने चिकित्सकों और अन्य स्वास्थ्य पेशेवरों की सुरक्षा की गारंटी वाली नीति बनाने के लिए 10 सदस्यीय राष्ट्रीय कार्य बल का गठन किया।

शीर्ष अदालत ने दिल्ली में हरित क्षेत्र बढ़ाने के लिए पेड़ों की गिनती करने का आदेश दिया। राजधानी में प्रदूषण से लड़ाई के क्रम में सर्वोच्च न्यायालय ने कई आदेश जारी किए।

उच्चतम न्यायालय ने राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र वाले राज्यों को साल भर पटाखों पर रोक लगाने के दिल्ली सरकार के फैसले का अनुसरण करने पर विचार करने को कहा।

न्यायालय ने उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों के कुछ बयानों का संज्ञान भी लिया।

इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति शेखर कुमार यादव एक सार्वजनिक समारोह में विवादास्पद बयान देने को लेकर उच्चतम न्यायालय के कॉलेजियम के समक्ष पेश हुए तो कर्नाटक उच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति वी श्रीशानंद की भी उनके एक बयान के लिए आलोचना हुई।

उच्चतम न्यायालय द्वारा साल के उसके अंतिम कार्य दिवस पर दिल्ली और नोएडा को जोड़ने वाले डीएनडी फ्लाईवे को टोल मुक्त रखने के फैसले से उन हजारों लोगों को स्थायी राहत मिली जो रोजाना दोनों बड़े शहरों की दूरी तय करते हैं।

साल 2025 में भी शीर्ष अदालत के हाथ में महत्वपूर्ण और बड़े मामले होंगे। वह वैवाहिक बलात्कार, धार्मिक स्थलों पर कानून की वैधता पर याचिकाओं और जवाबी याचिकाओं, हिजाब प्रतिबंध और नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं जैसे महत्वपूर्ण मामलों से निपटेगा।

नए साल में शीर्ष अदालत में तीन प्रधान न्यायाधीश होंगे। न्यायमूर्ति खन्ना 13 मई को पद छोड़ेंगे और सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश न्यायमूर्ति बी आर गवई एक दिन बाद पदभार संभालेंगे और 23 नवंबर तक पद पर बने रहेंगे। न्यायमूर्ति सूर्यकांत 24 नवंबर को प्रधान न्यायाधीश के रूप में शपथ लेंगे और 9 फरवरी, 2027 तक पद पर बने रहेंगे।

भाषा

वैभव माधव

माधव