भारत के 85 प्रतिशत जिलों पर विपरीत जलवायु का प्रभाव : अध्ययन

भारत के 85 प्रतिशत जिलों पर विपरीत जलवायु का प्रभाव : अध्ययन

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  • Publish Date - September 6, 2024 / 03:44 PM IST,
    Updated On - September 6, 2024 / 03:44 PM IST

नयी दिल्ली, छह सितंबर (भाषा) भारत के 85 प्रतिशत से अधिक जिले बाढ़, सूखे और चक्रवात जैसे कठोर जलवायु घटनाओं के प्रभाव में हैं। एक नवीनतम अध्यनन में यह दावा किया गया है।

आईपीई ग्लोबल और ईएसआरआई इंडिया द्वारा किए गए अध्ययन में यह भी पाया गया कि 45 प्रतिशत जिलों में ‘स्वैपिंग’ की प्रवृत्ति देखी जा रही है, जहां पारंपरिक रूप से बाढ़ का खतरा रहा लेकिन अब सूखे की स्थिति पैदा हो रही है और इसी प्रकार सूखे के खतरे वाले इलाके में बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हो रही है।

अध्ययन के दौरान पांच दशक के आंकड़ों का विश्लेषण किया गया और स्थानिक एवं लौकिक मॉडलिंग का उपयोग किया। अध्ययन में 1973 से 2023 तक 50 वर्ष की अवधि के दौरान चरम जलवायु घटनाओं की एक सूची तैयार की गई।

इसमें कहा गया है कि अकेले पिछले दशक में इन जलवायु चरम स्थितियों में पांच गुना वृद्धि देखी गई तथा चरम बाढ़ की घटनाओं में चार गुना वृद्धि हुई। पूर्वी भारत के जिले भीषण बाढ़ की घटनाओं के प्रति अधिक संवेदनशील हैं, इसके बाद देश के उत्तरपूर्वी और दक्षिणी भागों का स्थान है।

अध्ययन से यह भी तथ्य सामने आया कि सूखे की घटनाओं में दो गुना वृद्धि हुई है, विशेष रूप से कृषि और मौसम संबंधी सूखे में, तथा चक्रवात की घटनाओं में चार गुना वृद्धि हुई है।

अध्ययन के मुताबिक बिहार, आंध्र प्रदेश, ओडिशा, गुजरात, राजस्थान, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और असम के 60 प्रतिशत से अधिक जिले एक से अधिक चरम जलवायु घटनाओं का सामना कर रहे हैं।

आईपीई ग्लोबल में जलवायु परिवर्तन और स्थिरता लाने के तौर तरीकों के प्रमुख एवं अनुसंधान पत्र के लेखक अविनाश मोहंती ने कहा, ‘‘विनाशकारी जलवायु की वर्तमान प्रवृत्ति की वजह से 10 में से 9 भारतीयों को चरम जलवायु घटनाओं के खतरे का सामना करना पड़ रहा है जो पिछली शताब्दी में 0.6 डिग्री सेल्सियस तापमान वृद्धि का परिणाम है।’’

उन्होंने कहा, ‘‘हाल ही में केरल में मूसलाधार और असमान बारिश के कारण भूस्खलन, गुजरात में बाढ़, ओम पर्वत की बर्फ की चादर का गायब होना और अचानक और अप्रत्याशित बारिश से शहरों का ठप हो जाना इस बात का प्रमाण है कि जलवायु बदल गई है। हमारा विश्लेषण बताता है कि 2036 तक 147 करोड़ से अधिक भारतीय कठोर मौसमी घटनाओं से प्रभावित होंगे।’’

अध्ययन के मुताबिक 45 प्रतिशत से अधिक जिलों में परिपाटी में विपरीत बदलाव देखने को मिल रहा है। अर्थात कुछ बाढ़ की आशंका वाले जिले सूखे के प्रति अधिक संवेदनशील होते जा रहे हैं और इसके विपरीत सूखे वाले जिले बाढ़ के प्रति अधिक संवेदनशील होते जा रहे हैं।

अध्ययन के मुताबिक बाढ़ से सूखे की स्थिति में आने वाले जिलों की संख्या, सूखे से बाढ़ की स्थिति में आने वाले जिलों से अधिक है। इसमें कहा गया कि त्रिपुरा, केरल, बिहार, पंजाब और झारखंड के जिलों में पांरपरिक जलवायु परिस्थिति में बदलाव की प्रवृत्ति सबसे अधिक देखी गई है।

अध्ययन में जलवायु जोखिम वेधशाला की स्थापना की सिफारिश की गई है, जो राष्ट्रीय कार्यक्रम के तहत राष्ट्रीय, राज्य, जिला और शहर स्तर पर नीति निर्माताओं के लिए जोखिम संबंधी निर्णय लेने का ‘टूलकिट’ है। साथ ही जलवायु के अनुकूल बुनियादी ढांचे में निरंतर निवेश का समर्थन करने और स्थानीय स्तर पर संचालित जलवायु कार्रवाइयों को बढ़ावा देने के लिए एक बुनियादी ढांचा जलवायु कोष का निर्माण करने की भी अनुशंसा की गई है।

आईपीई ग्लोबल के संस्थापक और प्रबंध निदेशक अश्वजीत सिंह ने कहा, ‘‘जलवायु लक्ष्यों को पूरा करने के लिए, भारत को अपने बजट का ध्यान शमन से अनुकूलन की ओर स्थानांतरित करना होगा।’’

उन्होंने कहा कि वर्तमान व्यवस्था जलवायु अनुकूल व्यवस्था को कम वित्तपोषित करती हैं, जिससे दीर्घकालिक स्थिरता को खतरा है।

सिंह ने बताया कि भारत ने, विशेष रूप से, जलवायु प्रभावों के कारण 2022 में आठ प्रतिशत जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) हानि और 7.5 प्रतिशत की संचयी पूंजीगत संपत्ति में कमी का अनुभव किया है।’’

भाषा धीरज नरेश

नरेश