नयी दिल्ली, 17 जनवरी (भाषा) सातवीं दिल्ली विधानसभा अपने पांच साल के कार्यकाल में सिर्फ 74 दिन ही चली, जो पिछली सभी विधानसभाओं की तुलना में सबसे कम आंकड़ा है। यह जानकारी ‘थिंक टैंक’ ‘पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च’ की एक रिपोर्ट में दी गयी है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि विधानसभा सत्र हर साल बुलाए जाते थे और कई भागों में विभाजित किए जाते थे। प्रत्येक वर्ष, सत्रों को बिना सत्रावसान के स्थगित कर दिया जाता था और उन्हें कई हिस्सों में विभाजित कर दिया जाता था। रिपोर्ट के अनुसार, इसके परिणामस्वरूप कई मौकों पर सदन की बैठक सिर्फ एक या दो दिन ही हुई।
रिपोर्ट में कहा गया है कि उपराज्यपाल सत्र बुलाते और स्थगित करते हैं, लेकिन सत्र के दौरान बैठक बुलाने का काम अध्यक्ष का होता है।
सातवीं दिल्ली विधानसभा का पहला सत्र 20 फरवरी, 2020 को शुरू हुआ था और पांच भागों में आयोजित होने के बाद तीन मार्च, 2021 को इसका सत्रावसान कर दिया गया था।
दूसरा सत्र तीन मार्च, 2021 को शुरू हुआ और चार भागों के बाद आठ मार्च, 2022 को इसका सत्रावसान किया गया।
तीसरा सत्र आठ मार्च, 2022 को ही शुरू हुआ और चार भागों में सदन चलने के बाद नौ मार्च, 2023 को इसका सत्रावसान कर दिया गया।
चौथा सत्र नौ मार्च, 2023 को बुलाया गया और सात फरवरी, 2024 को इसका सत्रावसान हुआ। इस बार भी चार भागों में ही इसे आहूत किया गया। पांचवां सत्र सात फरवरी, 2024 को आहूत किया गया और अभी तक इसका सत्रावसान नहीं किया गया है।
रिपोर्ट के अनुसार, पांच वर्षों में केवल 14 विधेयक पारित किए गए, जो इसके पिछले सभी कार्यकालों के बाद से सबसे कम संख्या है। चौदह विधेयकों में से पांच विधायकों के वेतन से संबंधित थे।
रिपोर्ट में कहा गया है कि सभी विधेयक या तो उसी दिन या अगले दिन पारित किए गए। कुल 74 दिनों के सत्र के दौरान प्रश्नकाल केवल नौ दिन ही हुए।
रिपोर्ट के मुताबिक, 2020 से 2025 के बीच दिल्ली के विधायकों ने हर साल औसतन 219 सवाल पूछे। इसके विपरीत, 2019 से 2024 के बीच लोकसभा में सांसदों ने हर साल औसतन 8,200 सवाल पूछे।
दिल्ली में पांच फरवरी को मतदान होगा और आठ फरवरी को मतों की गिनती होगी।
भाषा सुरेश माधव
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