Inflation in India : नई दिल्ली। बढ़ती महंगाई को लेकर न केवल भारत बल्कि पूरी दुनिया परेशान है। चाहे बात थोक महंगाई की करें या खुदरा महंगाई की। दोनों ने ही अभी आम आदमी की कमर तोड़ दी है। महंगाई ने आम लोगों की जेब पर सीधा प्रहार किया है। बढ़ती महंगाई से न सिर्फ आम लोग परेशान है बल्कि इसके कारण सरकार भी बहुत परेशान है।>>*IBC24 News Channel के WhatsApp ग्रुप से जुड़ने के लिए Click करें*<<
बता दें पिछले दिनों से भारत सरकार ने महंगाई पर काबू पाने के लिए लगातार बड़े कदम उठाए है। चलिए हम आपको बताते है केंद्र सरकार ने महंगाई पर काबू करने के लिए एक के बाद एक सख्त कदम क्यों उठाए इन फैसलों से आम जनता को कितना राहत मिलेगा।
सरकारी आंकड़ों की माने तो अप्रैल 2022 में खुदरा महंगाई (Retail Inflation) की दर 7.8 प्रतिशत रही। बता दें मई 2014 के बाद ये प्रतिशत सबसे ज्यादा है। ठीक इसी प्रकार थोक महंगाई की दर भी इस साल बढ़कर 15.08 फीसदी पहुंच गई है। थोक महंगाई की ये दर दिसंबर 1998 के बाद से सबसे ज्यादा है। अप्रैल महीने में रिकॉर्ड की गई महंगाई की दरों के लिए फूड एंड फ्यूल इंफ्लेशन जिम्मेदार रहे। फूड इंफ्लेशन की बात करें तो यह मार्च के 7.68 फीसदी की तुलना में उछलकर अप्रैल में 8.38 फीसदी पर पहुंच गई।
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गौरतलब है कि रूस और यूक्रेन के बीच पिछले 3 महीने से लगातार युद्ध जारी है। इसके साथ चीन में महामारी की नई लहर ने ग्लोबल सप्लाई चेन (Global Supply Chain) को तबाह कर दिया है। इन कारणों की वजह से खाने-पीने की चीजों और डीजल-पेट्रोल की कीमतें लगातार बढ़ी हैं।
Inflation in India : इस महीने की शुरुआत में रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने अचानक से एमपीसी की आपात बैठक की। इस बैठक में RBI गवर्नर शक्तिकांत दास ने जानकारी दी की एमपीसी ने रेपो रेट को 0.40 फीसदी बढ़ाने का निर्णय लिया है। इसके बाद रेपो रेट बढ़ गया और इसकी दर 4.40 फीसदी हो गई। करीब 4 साल बाद पहले रेपो रेट को बढ़ाया गया और 2 साल में पहली बार इसमें कोई बदलाव किया गया। कोरोना महामारी को देखते हुए सेंट्रल बैंक ने रेपो रेट को लगातार घटाया था औ यह रिकॉर्ड 4 फीसदी के निचले स्तर पर था। जून में एमपीसी की होने वाली बैठक में भी रेपो रेट को और बढ़ाने के संकेत साफ हैं। रेपो रेट बढ़ने से मार्केट में अनावश्यक डिमांड पर ब्रेक लगता है, जो अंतत: महंगाई को कम करने में मुख्य भूमिका निभाता है।
भारत में अन्य चीजों के साथ पेट्रोल-डीजल के दाम भी आसमान छू रहे हैं। महंगे क्रूड ऑयल (Crude Oil) के कारण सरकारी तेल कंपनियां लगातार डीजल और पेट्रोल के दाम बढ़ा रही थीं। जिसके कारण भारत के ज्यादातर क्षेत्रों में पेट्रोल के दाम 100 रुपये लीटर के पार निकल गए थे। यहां तक कि कई जगहों पर डीजल भी 100 रुपये लीटर के पार निकल गया था। इसे देखते हुए केंद्र सरकार ने लोगों को राहत देने के लिए इस महीने एक बार फिर से पेट्रोल-डीजल पर एक्साइज ड्यूटी कम करने का फैसला लिया। यह ऐलान भी रविवार (22 मई) को किया गया। बता दें सरकार ने पेट्रोल पर एक्साइज ड्यूटी में 8 रुपये और डीजल पर 6 रुपये की कटौती की। डीजल-पेट्रोल के दाम का व्यापक असर होता है और इससे लगभग हर चीजों के दाम प्रभावित होते हैं।
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भारत सरकार ने अंतरराष्ट्रीय बाजारों में गेहूं के बढ़े भाव का फायदा उठाने के लिए पहले इसके निर्यात पर फोकस किया। भारत ने अपने पारंपरिक बाजारों को छोड़ कई नए बाजारों में भी एंट्री ली। इस बीच अचानक बढ़े हीट वेव से रबी फसलों की उपज पर संकट आ गया। दूसरी ओर नए बाजारों में निर्यात की राह खुलने से डिमांड बढ़ी, जिसके कारण घरेलू बाजार में भी गेहूं के दाम बढ़ने लगे। बदली परिस्थितियों में केंद्र सरकार ने 13 मई को अचानक से सारे प्राइवेट गेहूं निर्यात पर रोक लगाने का फैसला लिया। यह फैसला इस लिहाज से महत्वपूर्ण हो जाता है कि हीट वेव के कारण 2022-23 में गेहूं की टोटल उपज का अनुमान 113.5 मिलियन टन से घटकर 105 मिलियन टन रह गया है।
Inflation in India : खुदरा महंगाई के आंकड़ों के अनुसार फूड बास्केट को चढ़ाने में खाने के तेल की अधिक कीमतों से खुदरा महंगाई ज्यादा बढ़ी है। इसके मद्देनजर केंन्द्र सरकार ने सबसे पहले पॉम ऑयल पर ड्यूटी को घटाकर अब तक के सबसे निचले स्तर पर ला दिया। बाद में इसे और घटाकर फरवरी में 5.5 फीसदी कर दिया गया। इंडोनेशिया में पॉम ऑयल के निर्यात पर लगी रोक को हटाए जाने से भी भारत को राहत मिलने की उम्मीद है। ऐसा इसलिए क्योंकि भारत सबसे ज्यादा इंडोनेशिया से ही पॉम ऑयल खरीदता है। इसके अलावा सरकार ने खाने के तेलों के दाम को काबू करने के लिए पॉम ऑयल के अलावा अन्य तेलों के इस्तेमाल को बढ़ावा देने की योजना तैयार की। इसके बाद सरकार ने क्रूड सोयाबीन तेल और सूरजमुखी तेल के सालाना 20 लाख मीट्रिक टन के आयात पर कस्टम ड्यूटी और एंग्रीकल्चर इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट सेस को पूरी तरह से हटा दिया। इसके अलावा कुछ रॉ मटीरियल्स पर भी ड्यूटी में कमी की गई।
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इन फैसलों के साथ ही केंद्र सरकार ने मंगलवार को महंगाई को काबू करने के लिए एक और बड़े फैसले की घोषणा की। देश में चीनी का पर्याप्त भंडार सुनिश्चित करने के लिए छह साल में पहली बार इसके निर्यात पर रोक लगाई गई। इस फैसले के बाद भारत से चीनी का निर्यात 01 जून से बंद हो जाएगा। नए फैसले के बाद अब चालू सीजन में चीनी के निर्यात का आंकड़ा 100 LMT के आस-पास रह जाएगा। बता दें भारत में चीनी की औसत मासिक खपत करीब 24 LMT है। इस फैसले से चीनी के दाम पर लगाम लगेगी और घरेलू बाजार में इसकी उपलब्धता बनी रहेगी।
सरकार के इन सभी फैसलों के बाद अब मुख्य सवाल ये उठता है कि जब रेपो रेट बढ़ाने से महंगाई काबू हो पाया जा सकता है, तो सरकार इसके बाद भी बजट पर बोझ डालकर क्यों अपने राजस्व के स्रोत को कम कर रही है? बता दें रेपो रेट बढ़ाने से हर तरह के ब्याज महंगे हो जाते हैं। कैपिटल कॉस्ट बढ़ने से डिमांड तो काबू होती है, लेकिन यह ग्रोथ रेट पर उल्टा असर डालता है। सरकार चाहती है कि महंगाई भी काबू में रहे और ग्रोथ रेट पर भी बुरा असर नहीं पड़े। ऐसा तभी संभव है कि महंगाई को काबू करने के लिए ब्याज दरें बढ़ाने के बजाय अन्य उपाय किए जा सकते है। केंद्र सरकार चाहती है कि अगले एक महीने में खुदरा महंगाई की दर उसके प्रयासों से 0.60-0.70 फीसदी तक नीचे आ जाए। अगर ऐसा होता है तो रिजर्व बैंक के ऊपर रेपो रेट को ज्यादा बढ़ाने का प्रेशर नहीं होगा।