2nd Union Budget of india: 1952-53 में देश का दूसरा पूर्ण बजट पेश किया गया था। यह बजट कांग्रेस के वित्तमंत्री सीडी देशमुख ने पेश किया था। यह उनका दूसरा बजट था। ये वह दौर था जब देश मौसम की मार झेल रहा था। खराब मानसून यानी अकाल के चलते सरकार पर देश में भुखमरी के हालत को रोकने का बड़ा जिम्मा था। इस बजट में ही तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की सरकार ने “ज्यादा अन्न उगाओ” का नारा देते हुए यह योजना लागू की। और इसी योजना ने देश के भीतर खाद्य संकट को टालने में महत्वपूर्ण भी भूमिका निभाई। इस दौर में विपक्ष भी सरकार के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रहा था। देश को इस भीषण संकट से बाहर निकालने के बारे में सोच रहा था।
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2nd Union Budget of india: इस बजट में ही राज्यों के वित्तीय हालातो पर विस्तार से चर्चा की गई थी। उनकी बिगड़ती माली हालत को उबारने के बारे में सोचा गया. केंद्र सरकार ने अपने बजट में इस बात का पूरा ध्यान रखा और राज्य की सरकारों के लिए बड़े पैमाने पर राशि आबंटित की गई ताकि राज्य की सरकारें अपने क्षेत्रो में विकास और इंन्फ्रास्टक्चर को मजबूत कर सके। हालाँकि विपक्ष ने तब आरोप लगाय था की कुछ इलाको में कम पैसे आबंटित किये जा रहे हैं जबकि कुछ राज्यों को ज्यादा। विपक्ष के साथ दक्षिणपंथी पार्टियों ने इसे तब के सरकार की वोट बैंक की राजनीति बताई थी।
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2nd Union Budget of india: इस बजट में किसानो का भी खास ख्याल रखा गया। कपास से निर्यात शुल्क हटा लिया गया तो जूट पर लगे लाइसेंसी रोक को भी हटा लिया गया। ये वो दौर था तब पूरी दुनिया दुसरे विश्वयुद्ध की विभीषिका से खुद को सम्हालने में जुटी थी। कोरियाई युद्द और दुसरे अंतर्राष्ट्रीय वजहों से खाद्य सामने के भंडार में भारी कमी आई। इसका नतीजा यह हुआ की कीमतों में भी भारी उछल आया। अब यह महंगाई सरकार के लिए एक बड़ी चिंता बन चुकी थी। सरकार ने इस दुसरे बजट में एक बड़ा फैसला लिया। उन्होंने खाद्य सामानो में दी जाने वालो 40 फ़ीसदी की सब्सिडी को वापिस ले लिया। सरकार के इस फैसले का जमकर विरोध हुआ। देशभर में महीने तक इसके खिलाफ प्रदर्शन भी हुए लेकिन सरकार अपने फैसलों पर अडिग रही। इस दुसरे बजट में सबसे राहत की चीज यह रही की सरकार ने अपने कर प्रणाली में कोई बदलाव नहीं किया। सरकार जानती थी की महंगाई के दौर में ऐसा कोई भी बदलाव उनकी अर्थव्यवस्था को तबाह कर सकता हैं।